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कारगिल विजय दिवस 2022: पराक्रम और शौर्य की कहानी, वीर दीपचंद की जुबानी

कारगिल युद्ध में छत्तीसगढ़ के वीर सपूतों ने भी हिस्सा लिया था और वीरता का परिचय देते हुए दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए थे.

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रायपुर. कारगिल युद्ध की यादें अभी भी लोगों के मन में ताजा हैं. आगामी 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के तौर पर मनाया जाएगा. कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने गजब के जीवट का परिचय देते हुए पाकिस्तानियों के दांत खट्टे कर दिए थे. इस युद्ध में भारत के 527 वीर जवान शहीद हुए थे और 1363 जवान घायल हुए थे. कारगिल युद्ध में छत्तीसगढ़ के वीर सपूतों ने भी हिस्सा लिया था और वीरता का परिचय देते हुए दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए थे.
साल 1999 में मई का महीना था. आतंकियों का सफाया करने भारतीय सेना कश्मीर में ऑपरेशन ‘रक्षक’ चला रही थी.

मैं भी इसमें शामिल था. 8 बड़े दहशतगर्दों को मारने के बाद घाटी में शांति बहाली को लेकर हमारा मनोबल मजबूत हो चुका था. उस दिन मेरी ड्यूटी उरी सेक्टर में थी जब पहली बार एलओसी (लाइन ऑफ कंट्रोल) में घुसपैठ की खबर के साथ सेना के 5 लोग शहीद होने की खबर आई. हम गुस्से में थे लेकिन हमें ऊपर से स्टैंड बाय मोड पर रहने के निर्देश थे.

मैं श्रीनगर पहुंचा. पता चला कि नीचे की टुकड़ियों यानी मेरठ, अंबाला और आसपास के इलाकों में तैनात फोर्स को यहां पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. ऐसे में हमें मोर्चा संभालने कहा गया. ये मेरे लिए सौभाग्य की बात थी. 1889 मिसाइल रेजीमेंट के बख्तरबंद टैंकर्स के साथ मैं कारगिल की ओर बढ़ा. पाक सेना पहाड़ों की आड़ लेकर छिपी थी. युद्ध क्षेत्र में इसे अच्छी स्थिति माना जाता है. वे हमें उकसाने के लिए गालियां दे रहे थे. मुंह से जवाब देने के बजाय मैंने उनकी धज्जियां उड़ाना बेहतर समझा इसलिए टैंक से पहला गोला भी मैंने ही दागा. इसके बाद हमारी रेजीमेंट ने लगातार 10000 से ज्यादा गोले दागे.

युद्ध में भारत की ओर से भी कई सैनिक शहीद हुए. क्षत-विक्षत शवों को देखकर मैं कभी हताश या निराश नहीं हुआ, बल्कि साथियों की मौत का बदला लेने के लिए हर बार दोगुने उत्साह के साथ खड़ा हुआ. आखिरकार 2 माह 17 दिन तक लड़ने के बाद हमने पाक सेना को भागने को मजबूर कर दिया.
बम विस्फोट में दोनों पैर गंवाए

कारगिल वार के बाद सन 2001 में संसद पर हमला हुआ. उस दौरान नायक दीपचंद राजस्थान बॉर्डर पर डॺूटी कर रहे थे. लोडिंग-अनलोडिंग के दौरान एक बम फट पड़ा जिसमें उनका एक हाथ अलग हो गया. इलाज के लिए हॉस्पिटल ले जाया गया तो डॉक्टरों ने बताया कि दोनों पैर भी काटने पड़ेंगे. इस तरह देश की सेवा करते हुए नायक दीपचंद ने अपना एक हाथ और दोनों पैर गंवा दिए. हालांकि, इसके बाद भी उनका मनोबल नहीं गिरा. वे कहते हैं कि देश की रक्षा के लिए अभी भी दुश्मनों की लाशों का ढेर लगाने से पीछे नहीं हटूंगा.