
कानूनी अनुमति न हो तो फोन टेपिंग जीवन व स्वतंत्रता के हक का उल्लंघन
बिलासपुर @ राजीव द्विवेदी .छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (Highcourt Bilaspur) ने एक मामले में कहा है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत अनुमति नहीं दी गई हो, तो टेलीफोन टेपिंग भारत के संविधान (Constitution of india) के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन जीने और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। साथ ही बिना टेप की सत्यता जांचे और सुनवाई के बिना कार्रवाई भी गलत है।
कोर्ट ने सुनवाई में पाया कि फोन टेपिंग की सीडी में बातचीत के आधार पर याचिकाकर्ताओं के सम्पर्क कुख्यात अपराधी से होने के आरोप लगाए और सेवाएं समाप्त कर दी गईं। न तो सीडी के स्रोत का खुलासा किया गया था और न ही सीडी याचिकाकर्ताओं को दी गई ताकि वे अपना पक्ष रख सकें। बातचीत याचिकाकर्ताओं की है, इसकी पुष्टि फोरेंसिक विशेषज्ञ द्वारा भी नहीं कराई गई। कथित टेलिफोनिक बातचीत में याचिकर्ताओं की आवाज किस तरह पहचानी गई, यह भी स्प्ष्ट नहीं किया गया।
अनुच्छेद 21 में दिए जीवन की स्वतंत्रता का उल्लंघन
सुनवाई के दौरान जस्टिस गौतम भादुड़ी की सिंगल बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लेख करते हुए कहा कि बर्खास्तगी आदेश पारित करने से पहले मामले की पूर्ण विभागीय जांच की जानी थी। फोन पर बात के आधार पर कार्रवाई अनुच्छेद 21 में दिए जीवन व स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का उचित अवसर देकर और प्राकृतिक न्याय के नियमों के पालन के बाद विभाग उचित आदेश पारित कर सकता है।
रायपुर के मौदहापारा थाने का मामला
रायपुर के मौदहापारा थाने के प्रधान आरक्षक तोमन लाल साहू और आरक्षक चंद्रभान सिंह भदौरिया की एक मामले में कुख्यात अपराधी छोटा अन्नु उर्फ अनवर से बातचीत की सीडी वर्ष 2011 में तत्कालीन गृहमंत्री के पास भेजी गई थी। मामला उछलने पर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने दोनों पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया था। दोनों ने वकील डॉ निर्मल शुक्ला व आरके केशरवानी के माध्यम से याचिका दायर कर कार्रवाई को चुनौती दी। हाईकोर्ट ने कार्रवाई को निरस्त कर दिया।
Published on:
07 May 2021 04:21 pm
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