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अगर जा रहे हैं स्मार्ट कार्ड से इलाज कराने तो पढ़ लें यह खबर, लग सकता है बड़ा झटका

पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क द्वारा स्मार्ट कार्ड को लेकर एक सर्वे में चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां लाभार्थियों से भारी भरकम वसूली की जा रही

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स्मार्ट कार्ड से 50 हजार रुपए तक का इलाज फ्री लेकिन निजी अस्पतालों में

आवेश तिवारी/रायपुर. छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना पूरी तरह से फ्लाप शो साबित हुई है। योजना से जुड़े निजी अस्पतालों द्वारा लाभार्थियों से भारी भरकम वसूली की जा रही है। वहीं अनावश्यक तौर से जटिल और महंगी प्रक्रियाओं द्वारा इलाज किया जा रहा है। यह सच्चाई पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क द्वारा राज्य के अलग-अलग जिलों और शहरों में किए गए सर्वे एवं सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण में सामने आई है।

गौरतलब है कि गरीबी रेखा से नीचे वालों के लिए छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना 2009 में शुरू की गई थी। बाद में मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत इसका विस्तार सभी परिवारों के लिए कर दिया गया। चुनावी वादों के अनुरूप राज्य सरकार ने बीमा की राशि 30 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रुपए कर दी है। आम जनता के बीच यह माना जाता है कि यह दोनों योजनाएं पूरी तरह से नि:शुल्क हैं, लेकिन जब वो अस्पताल जा रहे हैं तो उन्हें अपनी जेब ढीली करनी पड़ रही है।

आखिर कहां जाएं आदिवासी
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इस बीमा योजना का कोई बड़ा लाभ आदिवासियों को नहीं मिल पा रहा है। इसकी बड़ी वजह यह है कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल जिलों में निजी अस्पतालों की संख्या बेहद कम है। आंकड़े बताते हैं कि सरगुजा और बस्तर संभाग के 12 आदिवासी जिलों से कुल लाभार्थियों की तुलना में केवल 16 फीसदी क्लेम आए हैं और इनमे से भी ज्यादातर सरकारी अस्पतालों के हैं।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ के तीन बड़े शहरों रायपुर , बिलासपुर और दुर्ग में ही निजी क्षेत्र के 63 फीसदी अस्पताल हैं। पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क ने अपने एक अध्ययन का हवाला देते हुए दावा किया है कि 2016 में विलुप्तप्राय जनजातियों में शामिल बैगा लोगों में से अस्पताल में भर्ती हुए केवल 13 फीसदी ने ही बीमा योजना का लाभ लिया था और सिर्फ 38 फीसदी बैगा परिवारों के पास बीमा स्मार्टकार्ड था।

रायपुर में 96 फीसदी को चुकाने पड़े पैसे
राजधानी रायपुर के स्लम एरिया में किए गए सर्वे में पता चला है कि 96 फीसदी लोगों को अस्पताल में अपने इलाज के लिए अतिरिक्त पैसे चुकाने पड़े हैं और कार्ड के इस्तेमाल से खर्चे पर कोई फर्क नहीं पड़ा। जिन लोगों का बीमा था, उनको औसतन 7530 रुपए देने पड़े। वहीं जिनका बीमा नहीं था, उनको 8624 रूपए खर्च करने पड़े हैं।

बीमाधारकों को निजी अस्पतालों में सरकारी अस्पतालों की तुलना में इलाज के लिए चार गुना ज्यादा रकम देनी पड़ी है। आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि सरकार द्वारा प्रति परिवार 376 रुपए का प्रीमियम भरा गया, जो कि 2016 में बढ़कर 816 रुपए हो गया। मतलब साफथा कि राज्य के स्वास्थ्य बजट में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी भी बढ़ गई।

निजी अस्पताल कर रहे बेहिसाब कमाई
बीमा योजना का सर्वाधिक दुखद पहलू यह है कि निजी अस्पतालों द्वारा स्मार्टकार्ड से इलाज के लिए आने वालों से जानबूझकर ज्यादा से ज्यादा जटिल प्रक्रिया अपनाई जा रही है, जिससे ज्यादा से ज्यादा कमाई की जा सके। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में पिछले वर्ष निजी अस्पतालों द्वारा लगभग 47 फीसदी प्रसव सी सेक्शन यानी कि ऑपरेशन के द्वारा किए गए हैं।

राज्य में जरूरी नहीं होते हुए भी महिलाओं के गर्भाशय निकाल देने की घटना सामने आई है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले वर्ष 50 फीसदी से ज्यादा क्लैम दांत या फिर आंखों से जुड़े हुए थे, जबकि बीमा योजना लागू होने से पहले सरकारी अस्पतालों में नियमित तौर पर आंखों के कैम्प लगाए जाते थे। अब हाल यह है कि ज्यादातार ऑपरेशन निजी अस्पतालों द्वारा ही किए जाने लगे और सरकारी अस्पतालों में आंख के इलाज से सम्बंधित सुविधाएं कम होती चली गई।

सेवाओं का हाल और भी बदतर
पब्लिक हैल्थ रिसोर्स नेटवर्क स्टेट कन्वेनर सुलक्षणा नंदी ने कहा कि इन बीमा योजनाओं की वजह से सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का हाल और भी बदतर हुआ है। इस स्कीम को कैशलेश स्कीम कहा गया, लेकिन यह डिस्काउंट स्कीम बन गई है।

स्वास्थ्य बीमा योजना राज्य नोडल अधिकारी विजयेन्द्र कटरे ने कहा कि अस्पतालों पर हमने अलर्ट सिस्टम लगा दिया है और क्लेम की आडिट करा रहे हैं। सिस्टम को और मजबूत किया जाएगा।