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अभी सैंपलिंग शुरू नहीं, दिवाली में बिकेगी मिलावटी मिठाइयां, मोबाइल लैब वैन खड़े-खड़े खा रही है धूल

- राज्य में सिर्फ एक एनालिस्ट, एक माह बाद मिलती है रिपोर्ट

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Adulteration In Sweets: अभियान चलेगा तो धड़ाधड़ कार्रवाई, नहीं तो गिनती के सैम्पल

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रायपुर। इसी माह दिवाली है, लेकिन अब तक खाद्य विभाग ने मिठाइयों की सैंपलिंग शुरू नहीं की है। जबकि सैंपलिंग के बाद रिपोर्ट आने तक दिवाली बीत चुकी होगी। करोड़ों की मिठाइयां लोग खरीद चुके होंगे। विभाग को केंद्र सरकार की ओर से मोबाइल वैन मौके पर जांच के लिए मिली है, लेकिन बीते तीन साल में वैन सिर्फ त्योहारी सीजन में आठ से दस दिन के लिए निकलती है। यदि एक सप्ताह बाद भी सैंपलिंग होती है तब भी देर हो चुकी है। जांच की अवधि इतनी लंबी है कि मिलावट का पता चलने तक माल बिक चुका रहता है।

पब्लिक फूड एनालिस्ट की कमी

सैंपलिंग समय पर न होना और पब्लिक फूड एनालिस्ट की कमी इसका सबसे बड़ा कारण है। रायपुर के कालीबाड़ी स्थित प्रयोगशाला में हो रही हजारों जांच का भारी दबाव प्रदेश में उपलब्ध सिर्फ एक पब्लिक फूड एनालिस्ट के कंधों पर है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) के पैमानों के तहत न तो सैंपलिंग तो लगातार हो रही, न ही नमूनों की जांच होती है।

त्योहार में बढ़ जाती है खपत
त्योहारों के लिए तैयार होने वाली मिठाइयां, स्नैक्स व अन्य व्यंजनों में मिलावट की संभावना अधिक होती है। जांच के दौरान प्रतिष्ठानों में साफ-सफाई का विधिवत ध्यान नहीं रखे जाने पर एफएसएसएआई के नियमों का कड़ाई से पालन करने के निर्देश दिए जाते हैं। समय-समय पर अर्थदंड की कार्रवाई भी की जाती है। त्योहार के मौके पर मिठाई की खपत अचानक कई गुना बढ़ जाती है, जिनकी गुणवत्ता परखने लिए गए मिठाइयों के सैंपल जांच के लिए विभागीय प्रयोगशाला भेज दिए जाएंगे।

लाइसेंस-पंजीयन से करोड़ राजस्व

वर्ष 2012 से लेकर जिले में अब तक की स्थिति में लाइसेंस व पंजीयन के जरिए ही खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने शासन को करीब आठ करोड़ रुपये का राजस्व कमाकर दिया है। इसके बाद भी लैब कर्मी व एडीसी की नियुक्ति को लेकर विभाग गंभीर नहीं है। सिर्फ कमाई की ओर ध्यान दे रहा है। लोगों के स्वास्थ्य की ओर नहीं।

कितने गंभीर है अधिकारी
सैंपलिंग की जानकारी के लिए अस्टिेंट ड्रग कंट्रोलर कमलाकांत पाटनवार को कई बार कॉल व मैसेज किया गया उन्होंने रिस्पांस देना उचित नहीं समझा। इससे पता चलता है कि अधिकारी जनता के स्वास्थ्य को लेकर कितने गंभीर हैं।