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माँ ने कपड़े सिलकर पढ़ाया, एक बेटा बेल्जियम में इंजीनियर तो दूसरा दुबई में कर रहा MBA

मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है। दुनियां में किसी के लिए कोई सबसे प्यारा और महत्वपूर्ण होता है तो वह है 'मां।

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रायपुर . जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है, मां दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है। दुनियां में किसी के लिए कोई सबसे प्यारा और महत्वपूर्ण होता है तो वह है 'मां। हो भी क्यों न करुणा, ममता, प्यार और सहारे का का दूसरा नाम 'मां होता है।जब कोई मुसीबत में होता है और जन्म लेने के बाद यही शब्द होता जो जुबां पर आता है।

एेसा माना जाता है कि मां ही एक एेसी होती है जिसे भविष्य की स्थिति ज्ञात हो जाती है। इसलिए मां को भगवान से ऊपर माना जाता है। मदर्स डे के अवसर पर हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं शहर के कुछ एेसे लोगों से जिन्होंने अपनी मां के बारें में बताया कि उनकी सफलता के पीछे उनकी मां का क्या योगदान है।

मैं जब अपनी मां के चेहरे पर खुशी देखती हूं तो लगता है कि असली मेडल यही है। मैं आज जो भी हूं उसका पूरा श्रेय मैं अपनी मां मनीषा बिस्सा को देती हूं। उन्होंने हमेशा मुझे सपोर्ट किया और दूसरों की मदद करने के लिए मोटिवेट किया। ये कहना है राजधानी की प्रियंका बिस्सा का। वे एनएसएस से जुड़ी हुई हैं और हाल ही में इसी साल इंडिया की पहली यूथ पर्लियामेंट की विनर रही हैं जिसे पीएम मोदी द्वारा चुना गया था। उन्होंने बताया कि मेरी मां मेरी आइडल हैं।

मेरी दुनियां मेरी मां है। मुझे वो दिन आज भी याद हैं जब घर की आर्थिक स्थिति एेसी नहीं थी कि हम दो भाईयों की पढ़ाई का खर्च उठा सकें। पापा की डेथ उस समय हो गई थी जब मैं ६ साल का था और मेरा छोटा भाई गौरव सवा साल का था। उस समय मेरी मां प्रमिला धुर्वे ने लोगों के कपड़े सिल-सिलकर घर चलाया। यह कहना है राजधानी के वैभव धुर्वे का। वैभव आज वेल्जियम की एक नामी कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं और गौरव अमेटी यूनिवर्सिटी दुबई में एमबीए कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज हम लोग जिस मुकाम पर पहुंचे है उसका पूरा श्रेय मेरी मां को जाता है,क्योंकि पापा का चेहरा तो अच्छे से देखा भी नहीं। मेरी मां डाक विभाग में कार्य करती हैं, लेकिन उस समय घरा का गुजारा नहीं होता था।

मेरी मां निरंजना शर्मा हाउसवाइफ है, लेकिन परिवार में जब कोई समस्या आती थी या आती है तो वे बड़ी बहादुरी से उसको फेस करती हैं। उनके इस विहैवियर ने मुझे समस्याओं से सामना करने की ताकत दी। यह कहना है सांइस कॉलेज की डिफेंस प्रोफेसर डॉ. वर्णिका शर्मा का।

उन्होंने बताया कि जब मैं स्टडी करती थी तो मेरी मां कहती थी कि इतनी टफ पढ़ाई ले ली है, लेकिन लोगों से मेरी तारीफ करती थी। आज मैं जो भी हूं अपनी मां की वजह से हूं। मैं अपने बेटे प्रथम को भी यही शिक्षा देती हूं कि वो कुछ भी बनने से पहले वह देश का अच्छा नागरिक बनें तथा राष्ट्र चिंतक बनकर समाज के सामने उभरकर आए।