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छत्तीसगढ़ में आज भी जीवित है गुरुकुल की वैदिक परंपरा, देखें वीडियो

सिर पर छोटे बाल, धोती-कुर्ता, माथे पर चंदन-तिलक, एक साथ जमीन पर बैठकर शिक्षा प्राप्त करते विद्यार्थी का यह दृश्य देखकर आपको गुरुकुल की याद आ गई होगी।

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Teachers Day:

रायपुर. सिर पर छोटे बाल, धोती-कुर्ता, माथे पर चंदन-तिलक, एक साथ जमीन पर बैठकर शिक्षा प्राप्त करते विद्यार्थी का यह दृश्य देखकर आपको गुरुकुल की याद आ गई होगी। आप पुरानी वैदिक गुुरुकुल अध्ययन को याद कर रहे होंगे, लेकिन राजधानी यह परंपरा आज भी जीवित है। यहां पुरानी बस्ती स्थित रामचंद्र संस्कृत उच्च माध्यमिकविद्यालय में आज भी विद्यार्थी पुरानी संस्कृति का पालन कर रहे हैं। यहां वैदिक रीति-रिवाज से शास्त्र और संस्कृति की शिक्षा दी जाती है। बच्चे संस्कृत के श्लोक पढ़ते नजर आते हैं। विद्यालय के प्राचार्य डॉ. बंशीधर शर्मा बताते हैं कि १९१९ ई. में यह विद्यालय शुरु हुआ था। इसमें संस्कृति और वेद शास्त्र की सभ्यता की शिक्षा दी जाती है।

ये हैं छत्तीसगढ़ के पद्मश्री गुरु, जिनके चेले भी हैं मुख्यमंत्री, पद्मश्री और प्रोफेसर

मनुष्य जिस तरह पौधे को सींच कर वृक्ष बनाता है, ठीक उसी तरह शिक्षक भी अपने विद्यार्थी को गुण रूपी अमृत देकर योग्य इंसान बनाते हैंं। इसलिए जीवन में माता-पिता से बढ़कर गुरु का स्थान है। वास्तव में यदि गुरु नहीं होते तो अच्छे जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती थी। पूर्व काल से लेकर आज तक सभी के जीवन में गुरुओं का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसी तरह शहर भी एक एेसे गुरु हैं, जिन्होंने एेसे विद्यार्थी तैयार किए जो शासन-प्रशासन और राजनीति के माध्यम से देश की सेवा कर रहे हैं। बात कर रहे हैं एेसे शिक्षक , स्वतंत्रता सेनानी व पद्मश्री महादेव प्रसाद पाण्डेय जिन्होंने देश की आजादी में योगदान दिया। उसके बाद एक शिक्षक के पद पर आयुर्वेद स्कूल से शुरुआत की, जो आज आयुर्वेदिक महाविद्यालय के नाम से जाना है। यहां से उन्होंने एेसे छात्र तैयार किए जो प्रदेश के मुख्यमंत्री, राज्यसभा सांसद, पद्मश्री और प्रोफेसर हैं। उन्होंने बताया कि आज जो मुख्यमंत्री हैं, वह कभी मेरा छात्र था। बात १९७५ की है, जब वह कवर्धा से रायपुर बीएएमएस करने आया था, जो आज प्रदेश का मुख्यमंत्री रमन सिंह है।







पिता और पुत्र को दी शिक्षा

आयुर्वेद कॉलेज के प्रो. डॉ.हरीन्द्र मोहन शुक्ल ने बताया कि मेरे पिता डॉ. रामेन्द्र नारायण शुक्ल को सन् १९६१ और मुझे १९९० में महादेव प्रसाद पाण्डेय ने शिक्षा दी है। एक शिक्षक के रूप में उनका स्वभाव पॉजीटिव रहा है। हमारी हर समस्या का समाधान निकालते थे। जब वे हमारे कॉलेज के प्राचार्य थे, तब कभी भी हमें प्राचार्य के रूप में नहीं, एक शिक्षक के रूप में शिक्षा दिए।

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जब मेरा नाम पद्मश्री के लिए घोषित किया गया था, तब सुरेन्द्र दिल्ली में था। उसने ही मुझे सूचित कर बताया कि गुरुदेव आपको पुरस्कार दिया जा रहा है। उस समय एक शिष्य की खुशी को मैंने फोन पर महसूस किया था। पद्मश्री से उसे भी नवाजा गया। शिक्षक होने के नाते मुझे उस पर गर्व है।