
लोकेश्वरी, अर्पिता, राहुल गुप्ता ने साझा किए विचार ( Photo - Patrika )
World Children Day 2025: आज विश्व बाल दिवस पर, हमने नब्बे के दशक का बचपन जीने वाले लोगों से बात की, जो उस आखिरी 'गैर-डिजिटल' पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। ( CG News ) अर्पित अग्रवाल कहते हैं, वक्त के साथ सुविधाएं बढ़ीं पर खुशियों की कीमत बढ़ी है। 1 रुपए की पेप्सी ट्यूब वाली खुशी आज 500 रुपए के बर्गर से नहीं मिलती। नजीब अहमद ने 'पित्तुल' और 'भौरे' जैसे लुप्त होते खेलों पर दुख जताया।
लोकेश्वरी साहू के अनुसार, 90s में मनोरंजन के साधन सीमित थे (जैसे दूरदर्शन पर हफ़्ते में एक बार फिल्म)। तब बच्चे छुपन-छुपाई, गिल्ली-डंडा, या किराये की साइकिल चलाकर दिन बिताते थे। लेकिन आज का दौर बदल गया है।
विभूति ने महत्वपूर्ण बात रखी कि पहले मोहल्ले का फ्रेंड सर्कल होता था, अब सोशल मीडिया फ्रेंड सर्कल है और गेट-टुगेदर कम हो गए हैं। बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन है और पेरेंट्स के अधिक प्रोटेक्टिव होने के कारण बच्चे बाहर नहीं खेलते।
राहुल गुप्ता के अनुसार, 90s का बचपन संघर्ष और असली अनुभवों से बना था, जबकि आज बच्चे एक्सेस (डिजिटल जानकारी) से बड़े हो रहे हैं, पर उनमें धैर्य और ग्राउंड एक्सपोजर कम है।
जब हम छोटे थे, तो स्कूल से लौटकर क्रिकेट, बिल्स, गिल्ली-डंडा, भंवरा और कांटी-पच्चीसा जैसे खेल खेलते थे। आज की पीढ़ी बाहर खेलने में उतनी रुचि नहीं दिखाती, जिसके कारण ये पारंपरिक खेल धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। हम टाइम पास के लिए चमक कॉमिक पढ़ते थे और सुबह 10 बजे मॉल गुडी डेज या दूसरे बच्चों के कार्यक्रम देखते थे। आज के बच्चे हमसे कहीं ज्यादा आधुनिक हैं। 6-8 साल की उम्र में ही उनकी समझ और सीखने की क्षमता काफी तेज होती है। वे टेक्नोलॉजी में बेहद माहिर हैं। अगर इन्हें सही मार्गदर्शन मिले, तो ये देश को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं।
लोकेश्वरी साहू ने सबसे बड़ी चिंता जताई कि डिजिटल माध्यम से बच्चे स्मार्ट हो रहे हैं, पर फोन की लत से जिद्दी हो गए हैं, उनकी आंखें खराब हो रही हैं और कम उम्र में ही वे बीमारियों का शिकार होने लगे हैं। 90s किड्स को गर्व है कि उनके पास 'टच स्क्रीन' फोन नहीं थे पर वे एक-दूसरे के 'टच' (संपर्क) में रहते थे।
Updated on:
20 Nov 2025 01:59 pm
Published on:
20 Nov 2025 01:53 pm
बड़ी खबरें
View Allरायपुर
छत्तीसगढ़
ट्रेंडिंग
