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करोड़ों खर्च, फिर भी नहीं मिट सका कुपोषण का कलंक

कुपोषित बच्चों में सबसे ज्यादा श्रमिकों की महिलाओं के मासूम शामिल

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veerendra singh

Jul 29, 2017

Raisen

Raisen


रायसेन.
हर साल जिला महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा बच्चों के कुपोषण से जंग लडऩे में करोड़ों का बजट खर्च किया जाता है। बावजूद इसके जिले के कुपोषित बच्चों का कुपोषण सही तरीके से दूर नहीं हो पा रहा है। हर महीने जिले के पोषण पुर्नवास केंद्रों में कुपोषित बच्चों को भर्ती करके उनको संतुलित आहार व जरुरी दवाईयां दी जाती है।

बच्चों की माताओं को भी आहार दिया जा रहा है। इसके बाद भी कुपोषण जैसा कलंक रायसेन जिले से विदा होने का नाम नहीं ले रहा है। सर्वाधिक कुपोषित बच्चे मुरम पत्थर खदानों, गिट्टी क्रेशरों में मजदूरी काम से जुड़ी महिलाओं के बच्चों में शामिल हैं। यह महिलाएं तंबाकू गुटखा का सेवन भी करती हैं। पिछले वर्ष कुपोषित पांच बच्चों की मौत भी हो चुकी है। इसे लेकर जिले में राजनीति गर्मायी थी काफी हंगामा भी हुआ था।

पोषण पुर्नवास केंद्र रायसेन की प्रभारी दीपा दुबे ने बताया कि पिछले दो सालों में यहां जिले के 384 कुपोषित बच्चे दाखिल हुए हैं। इनमें अति कुपोषत बच्चे के आंकड़े भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2016 में 234 कुपोषित बच्चे एनआरसी रायसेन में दाखिल हुए। इनमें 117 बालक, 117 बालिका शामिल हैं। जनवरी 2017 से जून 2017 तक 6 माह से कम आयु के 8 कुपोषित बच्चे और 6 माह से दो साल के बीच 196 बच्चे कुपोषित मिले।

दो साल से बड़े 30 कुपोषित बच्चे एनआरसी रायसेन में दाखिल हुए। उनको संतुलित पौष्टिक आहार नियमित देने के साथ ही जरु री दवाईयां इलाज भी किया गया। पूर्णत: स्वस्थ होने के बाद ही उन्हें डिस्चार्ज किया गया। इस दौरान उनकी माताओं को भी उनकी तंबाकू सेवन सहित सभी बुरी आदतों को सुधारने की हिदायत भी दी जाती है। लेकिन कई महिलाओं की ये आदत नहीं सुधर पा रही है। इस कारण कुपोषित बच्चों की सेहत ठीक तरीके से सुधर नहीं पाती है।

बच्चों को आंगनबाडिय़ों में पढ़ाई और मनोरंजन के साथ ही कुपोषण से दूर करने के लिए भोजन से लेकर पोषण आहार और नाश्ते में विभाग द्वारा राशि खर्च की जाती है। बच्चों को सुगंधित दूध बांटने के भी प्रबंध किए गए थे। फिलहाल यह योजना बंद पड़ी है। नमकीन दलिया, चावल और पूड़ी, रोटी दाल आंगनबाडिय़ों में नियमित बांटा जा रहा है। मेन्यु के अलावा नाश्ता बांटने के निर्देश जिम्मेदारों द्वारा दिए गए हैं। लेकिन जिन महिला स्व-समूहों के पास भोजन वितरण की जिम्मेदारी है।

वह मेन्यु का कड़ाई से पालन नहीं कर रहे हैं। बेस्वाद खाना चखने के बाद बच्चे या ता फेंक देते हैं या फिर मवेशियों के सामने पटक कर घर चले जाते हैं। पालक मान सिंह कुशवाहा, नैन सुख, कुलभूषण, नईम खान आदि का कहना है किआंगनबाडिय़ों में भोजन की गुणवत्ता ठीक नहीं है। इसमें सुधार होना बेहद जरुरी है। मॉनीटरिंग अधिकारी सुपरवाइजर से लेकर विभागीय टीम कभी इन आंगनबाडिय़ों में जाकर निरीक्षण नहीं करते हैं। जबकि भोजन नाश्ते के नाम से हर साल करोड़ों का बजट खर्च होना दर्शाया जाता है। यही हालात गांवों तहसील कस्बों की आंगनबाडिय़ों के बने हुए हैं।

गिट्टी क्रेशरों और खदानों में काम करने वाली महिला मजदूरों द्वारा दो जून की रोटी जुगाडऩे में हाड़ तोड़ काम करती हैं। मजदूरी के दौरान अपने जिगर के टुकड़े के लालन पालन से लेकर उनकी भूख प्यास पर सही तरीके से ध्यान नहीं दे पाती। जिससे बच्चे कमजोर व दुबले होकर कुपोषित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में पिछले साल जिले क ी इन खदानों में 5-6 कुपोषित बच्चों की मौत भी हो चुकी है।

रायसेन जिले में छह पोषण पुर्नवास केंद्र बनाए गए हैं। इनमें कुपोषित बच्चों के पोषण आहार व दवाओं के प्रबंध हैं। जिला अस्पताल के समीप पोषण पुर्नवास केंद्र है। इसके अलावा बेगमगंज, सिलवानी, बरेली, उदयपुर और मंडीदीप में भी एनआरसी यानि पोषण पुर्नवास केंंद्र हैं। यहां कुपोषित बच्चों को भर्ती कर उनको पौष्टिक भोजन, नाश्ता, दूध और दवाईयां सीरप का डोज दिया जाता है। इन केंद्रों में बच्चों के मनोरंजन के लिए खेल, खिलौने, हाथी,घोड़े आदि भी दिए जाते हैं। तााकि बच्चे खिलौनों से खेलकर समय पास कर सकें।

कुपोषित बच्चों को संतुलित पौष्टिक आहार व आवश्यक दवाईयां आदि की सुविधा आंगनवाड़ी केन्द्र एवं पोषण पुर्नवास केंद्रों में उपलब्ध हैं। आंगनबाड़ी केंद्र की कार्यकत्र्ता व सहायिकाएं इन बच्चों को चिन्हित कर भर्ती कराने का कार्य करती हैं। पोषण आहार मेें मेन्यु का कड़ाई से पालन कराने के लिए स्वसहायता समूह संचालकों को निर्देशित किया जाएगा। -ज्ञानेश्वर खरे, प्रभारी जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी