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गनीमत रही, वरना कयामत टूट पड़ती, अगर कुछ हो जाता तो कौन होता जिम्मेदार…पढ़े पूरा मामला

राजसमंद जिले के खमनोर ब्लॉक में झालों की मदार के एक स्कूल में कमरे की छत का प्लस्तर गिरा गया। यह तो गनीमत रही की चूना गिरने शुरू होते ही बच्चे वहां से उठकर बाहर निकल गए। उनके निकलते ही पूरा प्लास्टर नीचे गिर गया।

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खमनोर. ब्लॉक की झालों की मदार ग्राम पंचायत के ओरिया तालाब गांव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय में हुई घटना शनिवार सुबह करीब 8 बजे की है, जब कक्षा चल रही थी। इधर, शिक्षक कमरे से बाहर निकले कि उधर से उसी जगह छत का प्लस्तर उखडकऱ बड़े-बड़े टुकड़ों में फर्श पर आ गिरा। इससे चंद फीट की दूरी पर बैठे बच्चे सहम गए। किसी बच्चे को कंक्रीट पत्थरों की मामूली चोट लगी तो किसी ने मासूमियत में कमरे से बाहर भागकर जान बचाने की कोशिश की। कमरे से बाहर गए शिक्षक का मलबे के धमाके से दिल दहल गया। ये मंजर उन जिम्मेदारों के अंतस को शायद ही हिला पाएगा, जिन्हें स्कूलों की जर्जर हालत को रोजमर्रा की ड्यूटी मानकर हल्के में लेने की आदत सी है।

कुर्सी लगाकर बैठे थे शिक्षक, निकले तो बच गए

कक्षा-कक्ष की छत का प्लस्तर जिस जगह से उखडकऱ गिरा, उसी कमरे के एक हिस्से में शिक्षक खुद कुर्सी लगाकर बैठे थे। शिक्षक ने बताया कि छत का प्लस्तर गिरा उससे मात्र एक मिनट पहले ही वह कुर्सी से उठकर बाहर की तरफ गए थे। इसी कमरे में और जर्जर छत के नीचे शिक्षक की कुर्सी के सामने 10-12 बच्चे बैठे थे, जिन्हें शिक्षक घटना से थोड़ी देर पहले ही पढ़ाने में मशगूल थे। शिक्षक यदि वहीं होते तो उनकी भी जान पर बन आती।

आधा हिस्सा टूटा, पूरा टूटता तो कल्पना से परे होता मंजर

कमरे में जहां बच्चे बैठे थे, उससे कुछ फीट की दूरी पर छत का प्लस्तर टूटकर गिरा। उसमें से उछले गिट्टी के कंकरों से तीन-चार बच्चों को हल्की-फुल्की चोटें आईं। गनीमत रही कि आधी छत का प्लस्तर ही टूटा और वह भी सीधा बच्चों पर नहीं गिरा। छत का टूटता प्लस्तर बीच में लगे लोहे के गार्डर तक आकर रुक गया। उघड़ता प्लस्तर यदि गार्डर से आगे बढ़ता तो हादसे का मंजर कल्पना से परे हो सकता था। क्योंकि फिर कमरे का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं बचता जहां मलबे का ढेर नहीं लगा होता।

लोहे के डेस्क पिचक गए, सोचो- नन्हीं जानों का क्या होता

स्कूल के कक्षा-कक्ष में सब कुछ करीने से जमाकर रखा गया था, मगर छत का प्लस्तर गिरते ही पलभर में कमरे की सूरत बदल गई। कमरे में रखा हुआ लोहे का फर्नीचर और बच्चों के अध्ययन से जुड़ी सामग्री तहस-नहस हो गए। जहां हादसा हुआ, उस कमरे में बच्चों के जमीन पर बैठकर पढऩे के लिए लोहे के डेस्क (स्टडी टेबल) रखे हुए थे। छत का प्लस्तर 5-5 और 10-10 किलो के रेती-सीमेंट, कंक्रीट के बड़े-बड़े टुकड़ों के रूप में उखडकऱ 12 फीट से भी अधिक ऊंचाई से गिरे। भारी-भरकम टुकड़े नन्हीं जानों की जान पर बन आने के लिए काफी थे। माएं जब स्कूल में अपने मासूमों को लेने आईं तो वे कमरे की हालत देखकर अवाक् रह गईं। बच्चों को बचाने पर भगवान का शुक्रिया अदा कर रही थीं। वे यह भी महसूस कर रहीं थी कि जिम्मेदारों की अनदेखी से उन पर कितना बड़ा पहाड़ टूट सकता था।

एक कक्षा-कक्ष में हादसा, दूसरे की भी हालत खराब

विद्यालय भवन कुल तीन कमरों का है। इनमें से एक कार्यालय व दो कक्षा-कक्ष हैं। एक कक्षा-कक्ष में शनिवार को हादसा हो गया। दूसरे कक्षा-कक्ष सहित पूरे भवन की भी हालत खराब है। अस्थाई व्यवस्था के तौर पर कुछ बच्चों को एक कमरे में तो कुछ को पतरों की छत वाली जगह पर बैठाकर शिक्षण कार्य करवाया जा रहा था। हादसे के बाद बच्चों के अभिभावक व ग्रामीण भी स्कूल में पहुंच गए और बच्चों को संभाला।

ढाई-तीन साल पहले ही हुई थी छत की मरम्मत

बताया गया कि स्कूल की छत पहले भी खराब स्थिति में थी, जिसकी वर्ष 2022-23 के दौरान मरम्मत की गई थी। ग्राम पंचायत की ओर से करीब 2 लाख रुपए की स्वीकृति से स्कूल की टूट-फूट सहित मरम्मत का कार्य करवाया गया था। मरम्मत के दौरान ही ग्रामीणों ने कथित तौर पर घटिया निर्माण की शिकायत की थी, लेकिन तब जिम्मेदारों ने उसे भी अनसुना किया था।

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