
राजसमंद।यह तो एक
बानगी है। ऎसे अनेक अवसर आए, जब पिंजरे के अभाव में विभाग को दो-दो हाथ करने पड़े।
जिले में अभयारण्य क्षेत्र के बाहर पैंथरों को आतंक बढ़ रहा है।
जिले के
कहीं न कहीं से पैंथर की मौजूदगी के समाचार मिलते हैं। जहां पैंथर को पकड़ने के लिए
पिंजरे की मांग उठती है, ताकि पैंथर को पकड़ा जा सके तथा ग्रामीण व पालतू मवेशी
सुरक्षित रह सके, लेकिन विभाग असहाय है।
पिंजरों का अभाव
वर्तमान में
उप वनसंरक्षक विभाग के पास मात्र तीन पिंजरे हैं, जबकि अभयारण्य क्षेत्र के अलावा
पूरे जिले के रह रहे लोग व पालतू मवेशियों की हिंसक जानवरों से रक्षा करने का
दायित्व भी निभाना पड़ रहा है। पैंथरों को पकड़ने की मांग गांव-गांव से उठ रही है।
पशुपालक चिंतित हैं, लेकिन तीन पिजरों से पैंथरों को काबू करना मुश्किल हो रहा है।
क्षेत्र में अलग-अलग स्थानों पर आए दिन पैंथर की मौजूदगी की सूचना मिल रही
है।
विभाग चाह कर भी उपलब्धता के अभाव में पिंजरे नहीं लगा पा रहा है। वन
विभाग के दो डीएफओं के अलग-अलग कार्यालय जिले में हैं। उपवन संरक्षक, वन्यजीव के
पास चार पिंजरे हैं। इनका भी उपयोग वन विभाग कर रहा है। सात पिजरों में से छह को तो
विभिन्न स्थानों पर लगा रखा है। एक पिंजरा आपातकाल के लिए आरक्षित है।
यहां
लगे हैं पिंजरे
वर्तमान में नाथद्वारा क्षेत्र के घोड़च व हल्दीधाटी में
दो पिंजरे लगा रखे हैं। इसी प्रकार आमेट क्षेत्र के नारूजी का गुड़ा व राज्यावास के
पास देवगांव में एक पिंजरा लगा रखा है। एक पिंजरा आपालकाल के लिए आरक्षित है। गर्मी
का मौसम शुरू हो चुका है।
अभयारण्य क्षेत्रों में पानी का संकट होने की
आशंका के चलते आस-पास के क्षेत्रों में पैंथरों की दस्तक और बढ़ेगी। ऎसे में विभाग
और ग्रामीणों की परेशानी और बढ़ सकती है।
पिंजरों की कमी के बारे में विभाग
के आला अधिकारियों को पत्र लिख है। बजट आवंटन होते ही पिंजरों की व्यवस्था की
जाएगी।
कपिल चन्दवाल, उप वन संरक्षक, राजसमन्द
केस-1
जिले के जिले
के नमाणा पंचायत के करीब छह गांवों में इन दिनों पैंथर का आतंक है। पैंथर आए दिन
गंावों में घुसकर पालतू मवेशियों का शिकार कर रहा है। ग्रामीणों ने वन विभाग से
इसकी शिकायत करते हुए पिंजरा लगाने की मांग की, लेकिन करीब सात दिन बाद भी क्षेत्र
में पिंजरा नहीं लगाया जा सका।
केस - 2
गत दिनों आमेट क्षेत्र के
नारूजी का गुड़ा गांव में पैंथर के आतंक से ग्रामीण भयभीत थे। पैंथर आए दिन पालतू
मवेशियों का शिकार कर रहा था। इसकी सूचना ग्रामीणों ने वन विभाग को दी तथा पिंजरा
लगाने का आग्रह किया। विभाग ने केलवा से पिंजरा हटाकर उसे नारूजी का गुड़ा में
लगाना पड़ा।
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