सवा लाख आमों का भोग लगाने से पूर्व साफ कर उनके मुंह को काटा जाता है। भोग लगाने के बाद ये आम सेवाकर्मियों, राजभोग झांकी के सैकड़ों दर्शनार्थियों में बंटते हैं। मंदिर में एक-दो दिन पहले ही देशभर से श्रद्धालु-वैष्णव हापुस, केसर, नीलम, रत्नागिरि सहित कई किस्म के आम भेजते हैं। श्रीनाथजी मंदिर मंडल भी प्रतिवर्ष ८० क्विंटल आम खरीदता है। मुख्य निष्पादनअधिकारी जितेन्द्र ओझा ने बताया कि इस बार ८० क्विंटल आम का भुगतान जूनागढ़ के श्रद्धालु वैष्णव करेंगे। गुजरात से भी कई श्रद्धालु ट्रक भरकर आम भिजवाते रहे हैं।
स्नान यात्रा से एक दिन पूर्व श्रृंगार की झांकी के दर्शन के बाद मंदिर के तिलकायत परिवार के सदस्य, श्रीनाथजी के बड़े मुखिया, द्वितीय मुखिया व लाड़ले लालनजी के मुखिया, भीतरिया, मंदिर के सेवाकर्मी मोतीमहल क्षेत्र स्थित भीतर की बावड़ी से स्वर्ण एवं रजत घट में स्नान का जल भरकर लाते हैं। इस जल का भावात्मक एवं स्वरूपात्मक होने से कुमकुम-चंदन से पूजन कर व भोग धरकर अधिवासन किया जाता है। कदम्ब, कमल, मोगरा की कली, जूही, तुलसी विभिन्न प्रकार के पुष्प, चंदन, केसर, बरास, गुलाबजल, यमुना जल आदि का अधिवासन होता है। ज्येष्ठाभिषेक के जल यमुनाजी का जल मानकर पूजन किया जाता है।
मंदिर की दहलीज को हल्दी से लीपा जाता है। आशापाल के पत्तों से बंदनवार बांधी जाती है। मंगला झांकी में श्रीजी बावा की मंगला आरती होती है, फिर ज्येष्ठाभिषेक के लिए विशेष वस्त्र धराए जाएंगे। तिलकायत श्रीजी के श्रीभाल पर कुमकुम से तिलक लगा अक्षत धराएंगे। शंखनाद, जालर घंटा वादन के साथ मंदिर के पंड्या की उपस्थिति में मंत्रोच्चार के साथ केसरयुक्त सुवासित जल से ज्येष्ठाभिषेक कराया जाता है। इस दौरान कीर्तनकार राग बिलावल के साथ विशेष कीर्तन ‘मंगल ज्येष्ठ जेष्ठा पून्यो करत स्नान गोवर्धनधारी, दधि और दूब मधु ले सखीरी केसरघट जल डारत प्यारी…, अरगजा अंग-अंग प्रतिलेपन कालिंदी मध्य केलि विहारी… आदि पदों का गान करते हैं।