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रिश्वतकांड में अभियुक्त बनी सहायक आयुक्त आदिवासी विकास

उच्च न्यायालय के आदेश पर कार्रवाई

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vikram ahirwar

Mar 02, 2016


रतलाम.
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम न्यायालय के विशेष न्यायाधीश एमएस चंद्रावत ने बुधवार देर शाम ढाई साल पुराने अनुकंपा नियुक्ति पर रिश्वत लेने के मामले में तत्कालीन सहायक आयुक्त आदिवासी विकास मधु गुप्ता को अभियुक्त बनाने के आवेदन पर स्वीकृति प्रदान कर दी है। कोर्ट ने अभियोजन को निर्देश दिए कि वह सहायक आयुक्त के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति प्राप्त कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करें।


न्यायालय में फरियादी गजेंद्र कुमार ररोतिया ने 18 नवंबर 2014 को सहायक आयुक्त मधु गुप्ता को रिश्वत कांड में महत्वपूर्ण अभियुक्त बताते हुए अभियुक्त के रूप में जोड़े जाने का निवेदन किया था। इसको 6 दिसंबर 2014 को विशेष न्यायालय ने निरस्त कर दिया था। निरस्ती आदेश के विरुद्ध फरियादी ने म.प्र. उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ में पुनरीक्षण याचिका प्रस्तुत की थी। जिस पर उच्च न्यायालय ने विशेष न्यायालय के आदेश को अपास्त कर उसे उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित न्याय दृष्टांत के आधार पर आवेदन का निराकरण करने के आदेश दिए थे।

उच्च न्यायालय के आदेश पर कार्रवाई


उपसंचालक अभियोजन एसके जैन ने बताया कि विशेष न्यायाधीश चंद्रावत ने उच्च न्यायालय द्वारा मिले निर्देशों के आधार में उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित न्याय दृष्टांत के परिपेक्ष्य में सहायक आयुक्त के खिलाफ कार्यवाही करना उचित माना। सहायक आयुक्त वर्तमान में होशंगाबाद में पदस्थ हैं। लोक सेवक होने से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत उसके खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति के बिना संज्ञान नहीं लिया जा सकता है। इसलिए न्यायालय ने अभियोजन को मधु गुप्ता के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति प्राप्त कर न्यायालय में प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।


अनुकंपा नियुक्ति के लिए रिश्वत कांड


फरियादी गजेंद्र कुमार ररोतिया ने सहायक आयुक्त आदिवासी विकास कार्यालय में अपने पिता के स्थान पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया था। सहायक आयुक्त मधु गुप्ता ने अपने अधीनस्थ बाबू रामलाल मालवीय के माध्यम से 15 हजार रुपए की रिश्वत मांगी थी। लोकायुक्त पुलिस ने गजेंद्र कुमार की शिकायत पर 24 अगस्त 2013 को बाबू रामलाल मालवीय को 5 हजार रुपए की रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया था। लोकायुक्त पुलिस द्वारा केवल बाबू के खिलाफ ही प्रकरण दर्ज कर न्यायालय में चालान पेश किया गया। इससे असंतुष्ट होकर फरियादी ने सहायक आयुक्त को अभियुक्त बनाने के लिए न्यायालय का द्वार खटखटाया था।


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