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शास्त्रों में पृथ्वी की वंदना का महत्त्व, ऐसे समझें

- सुबह सबसे पहले भूमि वंदना करने से आते हैं जीवन में बदलाव- भूमि वंदना बनाती है क्षमाशील और धैर्यवान- नए जीवन, पोषण, विकास और जमीनीपन का प्रतीक है धरा - सनातन संस्कृति में सुबह उठते ही भूमि को दाएं हाथ से स्पर्श कर हथेली को माथे से लगाने की है परंपरा

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Deepesh Tiwari

Aug 26, 2023

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पृथ्वी आदरणीय है। भारतीय संस्कृति में धरती को मां कहा गया है। बात शास्त्रों की करें, तो पृथ्वी की वंदना की गई है। शास्त्रों में हमारे आराध्य के चरणों से पृथ्वी की तुलना की गई है। सुबह उठते ही धरा को दाएं हाथ से स्पर्श कर हथेली को माथे से लगाने की परंपरा है। सब धरती के ऋणी हैं। कई कार्यों को करने से पहले भूमि पूजन किया जाता है और खास मंत्रों से भूमि की प्रार्थना की जाती है। नए घर में प्रवेश करने से पूर्व देहरी की पूजा की जाती है।

कृतज्ञता प्रकट कर दिन की शुरुआत करें-
दिन की शुरुआत पृथ्वी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करके की जानी चाहिए। सुबह उठते ही धरती का स्पर्श करना इस बात की तरफ इशारा करता है कि आप पूरे दिनभर में जो भी कार्य करेंगे उसके लिए पृथ्वी का आशीर्वाद आपके साथ बना रहेगा।

धरती हमारी पालनकर्ता है। इसलिए धरती को देवी मां का स्थान प्राप्त है। सुबह पांव जमीन पर रखने से पहले बिस्तर पर बैठे हुए ही हाथ से धरती पर स्पर्श कर प्रणाम करना चाहिए। दाहिने हाथ से पृथ्वी का स्पर्श कर अपने माथे से लगाना चाहिए।

पांच तत्त्वों से मिलकर बना है शरीर-
हमारा शरीर पांच तत्त्वों से मिलकर बना है, जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश हैं। छिती जल पावक गगन समीरा, पंचतत्त्व रचित अधम सरीराष् यानी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से हमारी काया बनी हुई है। धैर्य और सहनशक्ति की पर्याय धरती पर जीवन है। अन्न, वस्त्र, आवास और आश्रय सब हमें इसी पर मिलता है। प्रात: उठकर सबसे पहले पृथ्वी का स्पर्श इसके प्रति आभार और सम्मान दिखाने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है। भूमि वंदना के लिए एक मंत्र है।

समुद्र-वसने देवि, पर्वत-स्तन-मंडिते। विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे॥ अर्थात समुद्र रूपी वस्त्र धारण करने वाली, पर्वत रूपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी है माता पृथ्वी! आप मुझे पाद स्पर्श के लिए क्षमा करें।

अहंकार से दूर क्षमा भाव-
पृथ्वी की पूजा हमारे भीतर क्षमा का भाव पैदा करती है। इससे अहंकार का भाव हावी नहीं होता है। धरा के प्रति कृतज्ञ रहने से हम क्षमाशील बनते हैं। व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो भूमि वंदना सहनशील, धैर्यवान और क्षमाशील जीवन जीने का संदेश देती है। धरती भी कितना कुछ सहन करती है। हमें धरती मां का माथा टेक कर शुक्रिया करते रहना चाहिए। मान्यता है कि घर की नींव में चांदी का सर्प रखा जाता है। शास्त्रों में माना गया है कि हमारी पृथ्वी सर्प के फन पर टिकी हुई है।