
धिक्कार है ऐसे लोगों के जीवन पर जो जानते हुए भी... : महाकवि कालिदास
एक बार घूमते-घूमते महाकवि कालिदास जी बाजार गये। वहां एक तरफ अलग ही एक महिला बैठी मिली। उसके पास एक मटका था और कुछ प्यालियां पड़ी थी। कालिदास जी ने उस महिला से पूछा तुम क्या बेच रही हो? महिला ने जवाब दिया- महाराज जी मैं पाप बेचती हूं। महाकवि कालिदास जी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा पाप और मटके में, वह कैसे? महिला बोली हां महाराज जी मटके में पाप ही है।
महाकवि कालिदास जी ने पूछा अच्छा बताओं तो, इस मटके में कौन-सा पाप है? महिला बोली महाराज जी इस मटके में आठ पाप है। मैं चिल्लाकर कहती हूं की मैं पाप बेचती हूं पाप… और लोग पैसे देकर पाप ले जाते हैं। अब महाकवि कालिदास जी को और आश्चर्य हुआ और पूछा, क्या लोग पैसे देकर लोग पाप ले जाते हैं? महिला ने कहा हाँ महाराज जी, पैसे से खरीदकर लोग पाप अपने साथ ले जाते हैं। महाकवि कालिदास ने बात को आगे बढ़ाते हुए पूछा- अच्छा ये बताओं कि तुम्हारे इस मटके में आठ पाप कौन-कौन से है? महिला बोली महाराज जी मेरे इस मटके में- क्रोध, बुद्धिनाश, यश का नाश, स्त्री एवं बच्चों के साथ अत्याचार और अन्याय, चोरी, असत्य आदि दुराचार, पुण्य का नाश, और स्वास्थ्य का नाश ये है कुल आठ प्रकार के पाप मेरे इस घड़े में है। महाकवि कालिदास जी को कौतुहल हुआ की यह तो बड़ी विचित्र बात है। किसी भी शास्त्र में नहीं आया है की मटके में आठ प्रकार के पाप होते हैं।
कालिदास जी को महिला की बात समझ में नहीं आई तो वे बोले- सही सही बताओं तो तुम्हारे इस मटके में आखिरकार रखा क्या है? महिला बोली महाराज जी इसमें शराब है शराब, कालिदास जी उस महिला की कुशलता पर प्रसन्न होकर बोले, तुझे धन्यवाद है, शराब में आठ प्रकार के पाप है यह तू जानती है और ‘मैं पाप बेचती हूं ‘ ऐसा कहकर बेचती है फिर भी लोग ले जाते हैं। धिक्कार है ऐसे लोगों के जीवन पर।
***************
Published on:
08 Nov 2019 05:56 pm
बड़ी खबरें
View Allधर्म और अध्यात्म
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
