
गणेशजी की आरती
गणेश चतुर्थी : गणेशजी ने समय-समय पर कई अवतार लिए हैं। लेकिन मुख्य रूप से 8 स्वरूप महोत्कट विनायक, गजानन विनायक, गजमुख विनायक, मयूरेश्वर विनायक, सिद्धि विनायक, बल्लालेश्वर विनायक और वरद विनायक की पूजा अर्चना करते लोग अधिक देखे जाते हैं। इन्हें अष्ट विनायक कहते हैं। आइये जानते हैं अष्ट विनायक की कहानियां।
गणेशजी के अवतारों में सिद्धि विनायक स्वरूप को सबसे मंगलकारी माना जाता है। सिद्धटेक पर्वत पर इस स्वरूप का प्राकट्य होने के कारण इन्हें सिद्धि विनायक कहा जाता है। मान्यता है कि सिद्धि विनायक की पूजा से हर बाधा दूर होती है।
एक मान्यता यह भी है कि सृष्टि रचना से पूर्व सिद्धटेक पर्वत पर भगवान विष्णु ने सिद्धि विनायक की पूजा की थी। इसके बाद भगवान ब्रह्मा ने निर्विघ्न सृष्टि की रचना की। सिद्धि विनायक का स्वरूप चतुर्भुजी है। इनके साथ इनकी पत्नियां रिद्धि और सिद्धि भी विराजमान हैं।
सिद्धि विनायक के ऊपर के हाथों में कमल और अंकुश, नीचे के हाथ में मोती की माला और मोदक से भरा पात्र रहता है। इनकी पूजा से सभी तरह के विघ्न दूर होते हैं। हर तरह के कर्ज से मुक्ति मिलती है, इनकी आराधना से घर परिवार में सुख समृद्धि और शांति आती है। साथ ही संतान की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा के लिए सबसे आसान मंत्र ऊँ सिद्धिविनायक नमो नमः मंत्र का जाप करना चाहिए।
भगवान गणेश ने सतयुग में देवांतक और नरांतक के आतंक से सृष्टि को मुक्त करने के लिए महर्षि कश्यप और देव माता अदिति के यहां यह अवतार लिया था। महोत्कट विनायक की दस भुजाएं थीं, इनका वाहन सिंह था और ये अत्यंत तेजोमय थे।
गणेशजी के गजानन अवतार की कई कहानियां हैं। इनमें से एक है गणेशजी को गुफा के द्वार पर बैठाकर माता पार्वती स्नान के लिए चली गईं थीं, जब भगवान शिव आए तो गणेशजी ने उन्हें भीतर जाने से रोक दिया। इससे क्रुद्ध भगवान शिव ने उनका मस्तक काट दिया, बाद में घटनाक्रम बदलने पर गज का सिर लगाकर जीवन दान दिया। इसके बाद से गणपति गजानन बन गए।
प्राचीन समय में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का आश्रम था, यहां ऋषि और उनकी पत्नी मनोमयी रहती थीं। एक दिन ऋषि लकड़ी लेने वन में गए थे, तभी कौंच नाम का गंधर्व आ गया। उसने ऋषि पत्नी का हाथ पकड़ लिया, इसी बीच ऋषि भी आ गए।
ऋषि को कौंच को मूषक होने का शाप दे दिया। इस पर गंधर्व क्षमा मांगने लगा। बाद में ऋषि सौभरि ने कहा कि द्वापर युग में महर्षि पराशर के यहां गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे तब तू उनका डिंक नामक वाहन बन जाएगा, तब देवता भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे।
गणेशजी का यह अवतार त्रेतायुग में दैत्यराज सिंधु के वध के लिए हुआ था। इनका वाहन मयूर है, वर्ण श्वेत और ये छह भुजा वाले हैं। इसको लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं।
इसके अनुसार मयूरेश्वर ने माता से कहा कि माता मैं विनायक दैत्यराज सिंधु का वध करूंगा,तब माता पिता के आशीर्वाद से मोर पर बैठकर गणपति ने दैत्य सिंधु की नाभि पर वार किया, उसका अंत कर देवताओं को विजय दिलाई। इसलिए इन्हें मयूरेश्वर की पदवी प्राप्त हुई।
कथा के अनुसार महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के पाली गांव में कल्याण और इंदुमति नाम के सेठ रहते थे, उनका इकलौता बेटा बल्लाल गणेशजी का भक्त था। वह व्यापार में ध्यान नहीं देता था और दोस्तों से भी गणेशजी की पूजा अर्चना की बात करता था। इससे उसके दोस्तों के माता पिता सेठ से शिकायत करते थे। एक दिन सेठ गुस्से में बल्लाल को ढूंढ़ने निकला तो वह गणेशजी की आराधना करता मिला। इससे नाराज सेठ ने बल्लाल को पीटा और गणेश प्रतिमा को खंडित कर दिया और उसे पेड़ से बांधकर छोड़ दिया।
सेठ के जाने के बाद गणेशजी ब्राह्मण वेश में प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर बल्लाल ने उनसे उसके क्षेत्र में स्थापित होने के लिए कहा। इसके बाद गणेशजी ने स्वयं को एक पाषाण प्रतिमा में स्थापित कर लिया। बाद में यहां बल्लाल विनायक मंदिर बनवाया गया। मंदिर के पास ही बल्लाल के पिता द्वारा फेंकी प्रतिमा ढुंढी विनायक नाम से प्रसिद्ध है।
रायगढ़ जिले के कोल्हापुर तालुका के महाड़ गांव में आठ पीठों में से एक वरद विनायक का मंदिर है। वरदविनायक गणेश का नाम लेने मात्र से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। प्रत्येक महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को इनका व्रत रखा जाता है।
एक बार ब्रह्माजी ने सूर्य देव को कर्म राज्य का स्वामी बना दिया। इससे उनमें घमंड आ गया। इसी बीच राज करते हुए सूर्य देव को छींक आ गई, जिससे दैत्य की उत्पत्ति हुई जिसका नाम पड़ा अहम, जो बाद में अहंतासुर बना। उसने गणेशजी से वरदान प्राप्त कर अत्याचार शुरू कर दिया। इस पर देवताओं के आह्वान पर गणेशजी ने धूम्र वर्ण अवतार लिया। धूम्रवर्ण का रंग धुएं जैसा था, वे काफी विकराल थे। उनके एक हाथ में भीषण पाश थे, जिससे भयंकर ज्वालाएं निकल रहीं थीं। इस अवतार ने अहंतासुर का वध कर देवताओं को अत्याचार से मुक्ति दिलाई।
Updated on:
11 Sept 2024 02:02 pm
Published on:
08 Feb 2023 02:24 pm
बड़ी खबरें
View Allधर्म और अध्यात्म
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
