
Holika Dahan Par Kya Karen: होलिका दहन पर क्या करें
Holika Dahan Par Kya Nahi Karna Chahie: फाल्गुन पूर्णिमा पर प्राचीन काल में परिवार की सुख समृद्धि के लिए चंद्रमा की पूजा की जाती थी। वहीं वैदिक काल में नवात्रैष्टि यज्ञ करने की परंपरा थी, इसके अनुसार खेत के अधपके अन्न को यज्ञ में दान किया जाता था और प्रसाद लिया जाता था। इस अन्न को होला कहते हैं। इसी कारण बाद में इसका नाम होलिकोत्सव पड़ गया।
इसके अलावा छोटी होली यानी होलिका दहन का पर्व प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका की कथा से भी जुड़ी हुई है। राक्षस राजा हिरण्यकश्यप के आदेश पर उसकी बहन होलिका जिसे आग में न जलने का वरदान था, अपने भतीजे भक्त प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई थी।
लेकिन भगवान की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका जल गई, उसी की याद में होलिका दहन पर्व मनाया जाता है। इसके अलावा ज्योतिष के लिहाज से भी यह पर्व महत्वपूर्ण होता है, इसी दिन होलाष्टक की समाप्ति होती है। आइये जानते हैं होलिका दहन के दिन क्या अनुष्ठान किए जाते हैं और इस दिन क्या नहीं करना चाहिए ..
परंपरा के अनुसार हर साल फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन किया जाता है। इसके लिए सुबह पूर्व या उत्तर की दिशा में बैठकर होलिका की पूजा की जाती है। साथ ही होलिका दहन के समय अग्नि की परिक्रमा जरूर करनी चाहिए।
अगले दिन होली की राख लाकर एक चांदी की डिब्बी में रखनी चाहिए, साथ ही होलिका की पवित्र आग में जौ, गेंहू की बालियां डालें और कुछ अधजली बालियां घर में साल भर तक रखना चाहिए। मान्यता है कि इससे घर में साल भर तक खुशियां रहती हैं। कुछ लोग व्रत भी रखते हैं।
इसके अलावा होलिका दहन की शाम पूरे परिवार को सरसों के उबटन लगाए जाने की परंपरा है, बाद में उबटन से निकली मैल आदि इकट्ठा कर होलिका में डाल दिया जाता है। मान्यता है कि इससे नकारात्मक शक्तियां परिवार से दूर रहती हैं और जीवन में शुभता आती है।
घर परिवार की समस्याएं दूर हो जाती हैं, होलिका के साथ व्यक्ति के दुख भी दूर हो जाते हैं। होलिका दहन से पहले की पूजा में शामिल होना बेहद शुभ माना जाता है।
होलिका दहन के अनुष्ठान का प्रथम चरण माघ पूर्णिमा से ही शुरू हो जाती है। इस दिन किसी सार्वजनिक स्थल या घर के आहाते में डंडा (कई जगह रेड़ के पेड़ की लकड़ी, धन और पूजा सामग्री गाड़ी जाती है, क्योंकि यह आग में जलती नहीं) गाड़ा जाता है।
फिर लकड़ी, उपले और अन्य चीजें इकट्ठी की जाती है। कई जगहों पर होलिका में भरभोलिए (गाय के गोबर के उपले जिसमें छेद रहता है, इसमें मूंज की रस्सी डालकर माला बनाई जाती है) जलाने की भी परंपरा है।
होलिका में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। मान्यता है कि इससे भाइयों पर लगी बुरी नजर भी जल जाती है।
छोटी होली की दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ किया जाता है, घरों में बने पकवानों का भोग लगाया जाता है और शाम को गेहूं की बालियों और चने के होले को भूना जाता है। साथ ही देर रात तक होली के गीत गाए जाते हैं और नाचते हैं।
1.होलिका दहन से पहले सुबह होलिका पूजन किया जाता है, यह पूजा शुभ मुहूर्त में पूरा कर लेना अच्छा होता है।
2. फाल्गुन पूर्णिमा पर व्रत रखने की भी परंपरा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार घर में सुख-समृद्धि और शांति के लिए होलिका दहन के दिन घर की उत्तर दिशा में घी का दीपक जलाना जाहिए।
3. होलिका दहन की सुबह सरसों, तिल, गोबर के 11 उपले, अक्षत, चीनी और गेहूं के दाने, गेहूं की 7 बालियों से होलिका पूजा करनी चाहिए और 7 परिक्रमा करनी चाहिए। इस दौरान जल अर्पित करना चाहिए। इसके बाद दान करना चाहिए।
4. होलिका दहन के समय भी उसकी परिक्रमा करनी चाहिए।
1.होलिका दहन के दिन भूल से भी किसी को उधार नहीं देना चाहिए। मान्यता है कि इससे घर की उन्नति में बाधा आती है।
2. होलिका पूजा करते समय काले और सफेद रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए। आप पूजा के समय पीले, लाग, गुलाबी आदि रंग के कपड़े पहन सकते हैं।
3. होलिका पूजा में महिलाओं को बाल नहीं बांधने चाहिए यानी खुले बालों से होलिका की पूजा की जाती है। इसके बाद किसी भी समय महिलाएं बाल बांध सकती हैं।
4. होलिका दहन की रात को सड़क पर पड़ी किसी चीज को हाथ या पैर न लगाएं, इस दौरान नकारात्मक शक्तियों से प्रभावित होने का खतरा रहता है।
5. मान्यताओं के अनुसार नवविवाहित लड़की को अपने ससुराल में पहली होली पर होलिका दहन की अग्नि नहीं देखनी चाहिए। इसे शुभ नहीं माना जाता है।
Updated on:
09 Mar 2025 10:41 am
Published on:
04 Mar 2025 02:12 pm
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