
kal bhairav
Baisakh Kalashtami : धर्म ग्रंथों के अनुसार भैरव भगवान शिव के अवतार हैं। हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को इन्हीं बाबा भैरव की पूजा अर्चना की जाती है। धर्म ग्रंथों में काल भैरव के कई स्वरूप माने गए हैं, जिनमें सबसे सौम्य बटुक भैरव और उग्र रूप काल भैरव का है। इन्हें दंडाधिकारी भी कहा जाता है।
मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धा के साथ काल भैरव की पूजा अर्चना करता है, उसके जीवन की बाधाएं, रोग, शोक, दोष दूर हो जाते हैं। अधिकतर काल भैरव की उपासना अघोरी तांत्रिक करते देखे जाते हैं, लेकिन गृहस्थ भी कालाष्टमी की पूजा से लाभ पा सकते हैं।
मान्यता है कि जिन लोगों की कुंडली में राहु, केतु और शनि अशुभ स्थिति में हों, उन्हें कालाष्टमी का व्रत रखकर इस दिन विशेष पूजा करनी चाहिए। इससे अशुभ फल दे रहे ग्रह शुभ फल देने लगते हैं। यह तिथि भैरव से असीम शक्ति प्राप्त करने की तिथि मानी जाती है।
Vaishakh Kalashtami 2023 Date: वैशाख महीने की मासिक कालाष्टमी यानी कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 13 अप्रैल को सुबह 3.44 बजे हो रही है और यह तिथि 14 अप्रैल को सुबह 1.34 बजे संपन्न होगी। कालाष्टमी पर भैरव की रात्रि पूजा का विशेष महत्व है, इसलिए कालाष्टमी व्रत 13 अप्रैल को रखा जाएगा।
अभिजित मुहूर्तः सुबह 11.56 से दोपहर 12.47 बजे तक
अमृतकाल मुहूर्तः सुबह 6.10 से 7.41 बजे तक
कालाष्टमी पर गृहस्थजन साधारण पूजा कर सकते हैं
1. कालाष्टमी के दिन पूजा स्थल को गंगाजल से स्वच्छ कर लकड़ी की चौकी पर भगवान शिव पार्वती की तस्वीर रखें, भैरव बाबा की तस्वीर हो तो उसे भी साथ रख दें।
2. पुष्प, चंदन, रोली अर्पित करें, काल भैरव का ध्यान करते हुए नारियल, इमरती और पान का भोग लगाएं.
3. चौमुखी दीपक जलाकर भैरव चालीसा का पाठ करें।
4. ऊँ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धारणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा मंत्र का रुद्राक्ष की माला से 108 माला जाप करें।
5. रात में भैरवाष्टक का पाठ करें, इस दिन भूलकर भी तामसिक पूजा न करें।
भैरव अवतार की कथा (Kal Bhairav Katha)
एक कथा के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश में श्रेष्ठता का सवाल उठ गया। इस पर सभी देवताओं के साथ बैठक की गई और उत्तर खोजा गया। जिसे भगवान शिव और विष्णुजी ने समर्थन दिया, पर ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इसे भोलेनाथ क्रोधित हो गए, उन्होंने अपने रूप से भैरव को जन्म दे दिया। इस अवतार का वाहन काला कुत्ता था, इसके हाथ में एक छड़ी थी। इसे ही महाकालेश्वर कहा गया।
भैरवजी ने ब्रह्माजी के पांचवे सिर को काट दिया। इसीलिए इन्हें दंडाधिपति भी कहा जाने लगा। इधर, भैरव के विकराल रूप को देखकर देवता घबरा गए, देवता भैरवजी को शांत होने की प्रार्थना करने लगे। ब्रह्माजी ने भी भैरव बाबा से क्षमा मांगी, इसके बाद महादेव मूलस्वरूप में आ गए।
लेकिन ब्रह्माजी का सिर काटने के कारण उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष लगा। कई दिनों तक उन्हें भिखारी जैसे रूप में रहना पड़ा, घूमते-घूमते वे काशी पहुंचे यहां पर उनका प्रायश्चित पूरा हुआ। इससे इनका एक और नाम दंडपाणि पड़ा।
Updated on:
08 Apr 2023 12:14 pm
Published on:
08 Apr 2023 12:13 pm
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