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Kalpvas Ke Niyam: महाकुंभ में तपस्या करेंगी स्टीव जॉब्स की वाइफ, कल्पवास में इन 21 कठिन नियमों को करना होगा फॉलो

Rules Of Kalpawas: प्रयागराज महाकुंभ 2025 इन दिनों देश दुनिया में सुर्खियों में है। युगों पुराने इस आध्यात्मिक मेले में Apple Co Founder Steve Jobs की पत्नी लॉरेन समेत दुनिया के कई दिग्गज यहां कल्पवास करने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन क्या आपको मालूम है कल्पवास के 21 कठिन नियम

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Kalpvas Ke Niyam

Kalpvas Ke Niyam: कल्पवास के नियम

Kalpavasi Meaning: कल्पवास का तात्पर्य एक महीने तक संगम तट पर रहकर वेदाध्ययन और तपस्या करना और कल्पवास करने वाले प्राणी को कल्पवासी कहते हैं। कल्पवास का सबसे कम समय एक रात होती है। इसके अलावा श्रद्धालु तीन रात, तीन महीने, छह महीने, छह साल, बारह साल या जीवनभर कल्पवास कर सकता है।

कब से शुरू होता है कल्पवास (Kalpvas Start Date)

आमतौर पर पौष माह के 11 वें दिन से माघ के 12वें दिन तक लोग कल्पवास करते हैं, जबकि बड़ी संख्या में लोग मकर संक्रांति से पूरे माघ महीने तक कल्पवास करते हैं।  इसीलिए इसे माघ मेले के नाम से भी जानते हैं।

इस साल प्रयागराज महाकुंभ की शरुआत पौष पूर्णिमा 13 जनवरी से होगी और यह 26 फरवरी 2025 महाशिवरात्रि तक चलेगा।

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कल्पवास का महत्व (Kalpvas Ka Mahatv)

मान्यता है कि एक माह के कल्पवास से इतना पुण्य मिलता है जितना एक कल्प में तपस्या से (ब्रह्माजी के एक दिन के बराबर)।  इसके अलावा प्रयागराज में कल्पवास से हर मनोकामना पूरी होती है, व्यक्ति जन्म जन्मांतर के बंधन से मुक्त हो जाता है।

एक मान्यता के अनुसार प्रयागराज में माघ माह में एक माह कल्पवास का इतना पुण्यफल मिलता है, जितना सौ वर्ष तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या से। यह भी मान्यता है कि कल्पवास करने वाला अगले जन्म में राजसी जीवन जीता है और जो मोक्ष पाना चाहता है वह जीवन मरण के चक्र से छूट जाता है।

कल्पवास का धार्मिक इतिहास (Kalpvas Religious History)

कल्पवास के बारे में पद्म पुराण, मत्स्य पुराण, महाभारत और आज के ऐतिहासिक ग्रंथों में विस्तार से मिलता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीनकाल में तीर्थराज प्रयाग में घना जंगल हुआ करता था और यहां भारद्वाज ऋषि का आश्रम था।

कालांतर में इसी के पास यहां सागर से निकले अमृत की बूंद गिरने और गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम होने के कारण ब्रह्माजी ने प्रकृष्टयाग यज्ञ किया था। इस कारण यह तीर्थराज प्रयाग तपोभूमि बन गई। इसके बाद हर साल पौष माघ महीने में साधुओं के साथ गृहस्थ तपस्चर्या और साधना के लिए आने लगे। मान्यता है कि यहां इस समय ब्रह्मा, विष्णु, महेश, रुद्र, यक्ष, देव भी वेश बदलकर निवास करते हैं।

मान्यता है कि यहां एक महीने तक पर्णकुटी और टेंट में निवास कर जमीन पर सोते हुए कठिन तप करने से गृहस्थों का कम समय में ही कल्याण हो जाता है। साथ ही इससे सभी पापों का अंत हो जाता है। 

यहां गृहस्थों को शिक्षा और दीक्षा देने की भी परंपरा है। एक बार कल्पवास शुरू करने पर 12 साल तक इसे करना चाहिए।  पद्म पुराण में कल्पवास के 21 कठिन नियम बताए गए हैं, जिसका पौष माघ की कड़ाके की सर्दी में साधकों को पालन करना पड़ता है। आइये जानते हैं कल्पवास के 21 नियम

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कल्पवास के 21 कठिन नियम (21 Rules Of Kalpvas)

1.इंद्रियों का शमन: संगम किनारे माघ की भीषण सर्दी में झोपड़ी या टेंट में रहते हुए जमीन पर सोते हुए इंद्रियों और इच्छाओं पर नियंत्रण (इंद्रियों का शमन) का कठिन अभ्यास करना। इन दिनों सदाचारी, शांत चित्त और जितेंद्रिय बनने का अभ्यास किया जाता है।

2. सत्यवचन का पालन:  माघ मेले में सत्य का पालन करना, किसी भी परिस्थिति में झूठ नहीं बोलना।

3.  अहिंसा का अभ्यास: सभी प्राणियों पर दयाभाव रखते हुए अहिंसा का पालन करना।

4.  ब्रह्मचर्य का पालनः महाकुंभ मेले में ब्रह्मचर्य का पालन करना। इस समय सफेद और पीले वस्त्र धारण करना चाहिए।

5. व्यसनों का त्याग: यदि व्यक्ति को किसी प्रकार का व्यसन है तो उसे कल्पवास के दौरान छोड़ देना चाहिए।

6. ब्रह्म मुहूर्त में जागना: कल्पवास करने वाले व्यक्ति को भोर में ब्रह्ममुहूर्त में जाग कर पौष, माघ की कड़ाके की सर्दी में संगम स्नान के बाद भगवान भास्कर को अर्घ्य, भगवान विष्णु की पूजा और ईष्ट देव की आराधना करनी चाहिए।

7. नित्य तीन बार पवित्र नदी में स्नान करना: कल्पवास करने वाले व्यक्ति को तीन बार संगम में स्नान कर पूजा अर्चना करना चाहिए।

8. त्रिकाल संध्या का ध्यान: तीन बार स्नान के बाद त्रिकाल संध्या यानी संधिकाल के तीनों मुहूर्त में पूजा अर्चना करनी चाहिए।

9. पितरों का पिण्डदान: प्रयागराज में कल्पवास के दौरान पितरों का पिंडदान जरूर करना चाहिए, इसे पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

10. दान: पद्म पुराण के अनुसार तीर्थराज प्रयागराज में अपना समय तपस्या और आध्यात्मिक चर्चा में बिताना चाहिए। साथ ही जितना संभव हो पात्र व्यक्ति के लिए दान पुण्य करना चाहिए।

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11. अन्तर्मुखी जप: आध्यात्मिक उन्नति के लिए इस समय एकांत में जप करना चाहिए।

12. सत्संग का आयोजनः कल्पवास के दौरान सत्संग करें और उसमें शामिल हों।

13. संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जानाः कल्पवास शुरू करने से पहले एक निश्चित क्षेत्र में ही आने जाने का संकल्प लेना चाहिए और बाद में इसका पालन करना चाहिए।

14. किसी की निंदा न करना: कल्पवास में किसी की निंदा न करें वरना सब पुण्य नष्ट हो जाएगा।

15. साधु-संन्यासियों की सेवा करनाः कल्पवास के दौरान साधु संन्यासियों और सत्पुरुषों की सेवा जरूर करें।

16. जप और संकीर्तन में संलग्न रहना: कल्पवास के दौरान घर गृहस्थी की चिंता को खुद से अलग कर सिर्फ आध्यात्मिक चर्चा और ईश्वर के स्मरण में ही समय बिताना चाहिए।

17. एक समय भोजन करना: कल्पवास के दौरान एक बार ही भोजन करना चाहिए और शरीर को तपाना चाहिए।

18. भूमि शयन करना: कल्पवास के दिनों में भूमि पर ही शयन करना चाहिए। भीषण सर्दी में लोग पुआल वगैरह बिछाकर टेंट आदि में रहते हैं।

19. अग्नि सेवन न कराना।

20. देव पूजन करनाः कल्पवास में अपना सारा समय देव पूजन में ही बिताना चाहिए।

21. मेला क्षेत्र छोड़ने से पहले संकल्प के अनुसार कठिन तप के बाद हवन जरूर करना चाहिए।

नोटः  इन नियमों में से सबसे अधिक महत्वपूर्ण ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान माने गए हैं।