
नीम करोली बाबा हर संकट में भक्तों की मदद करते थे, यहां पढ़िए बाबा के ऐसे ही दो किस्से।
न जाने कहां गई गुफाः बाबा का भक्त
बाबा नीम करोली के एक भक्त के अनुसार करीब चार दशक पहले वो रात में कहीं जा रहे थे। इस दौरान वे रास्ता भटक गए। उस समय घनघोर अंधेरा था। वे कुछ समझ नहीं पा रहे थे तभी उनको एक गुफा दिखाई दी। गुफा से रोशनी बाहर आ रही थी। इस भक्त का कहना था कि हिम्मत करके वे गुफा के पास गए तो देखा गुफा में महाराजजी बैठे हुए थे।
महाराजजी ने उन्हें भोजन कराया और कहा कि तू रास्ता भटक गया है, तुझे उस तरफ जाना है। भक्त के अनुसार बाबा नीम करोली के कहे अनुसार वो 15 -20 कदम आगे गए तो जिस गांव में उन्हें जाना था, वह गांव मिल गया। लेकिन जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो वहां न तो गुफा थी और न ही महाराजजी। उसका कहना है कि ये बाबा की लीला है।
भगवान राम और शबरी भेंट सरीखी यह कहानी
नीम करोली बाबा की एक और कहानी भक्त सुनाते हैं। एक भक्त का कहना है कि नैनीताल जिले में भवाली के पास भूमियाधार में नीम करोली बाबा का एक छोटा आश्रम है, जिसके चारों ओर अधिकांशतः अनुसूचित जाति के परिवार रहते हैं। एक दिन बाबा अपने इस आश्रम में आए तो अनुसूचित जाति का एक व्यक्ति साफ गिलास में श्रद्धा से बाबा के लिए गर्म दूध लाया, लेकिन जिस कपड़े से दूध का बर्तन ढंका था। वह मैला था, कपड़ा इतना मलिन था कि उसे देखकर किसी की दूध पीने की इच्छा न करे।
लेकिन बाबा प्रेम से लाए गए इस दूध के लिए उतावले हो गए और उससे गिलास लिया और कपड़े की तरफ ध्यान दिए बगैर बड़े प्रेम से उस गरीब को निहारते हुए पूरा दूध गटक गए। बाबा की नजर भक्त की भावना पर थी। ये कहानी भगवान राम और शबरी के भेंट सरीखी लगती है। जब वनवास के दौरान भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे।
यह मिलती है सीख
बाबा नीम करोली ने इस घटना से सिखाया कि छोटे बड़े की सोच ठीक नहीं है। मनुष्य की प्रेम और भावना सबसे महत्वपूर्ण होती है, भगवान श्रद्धा, प्रेम और भक्ति के भूखे हैं। भगवान को बाहरी आडंबर नहीं व्यक्ति की भावना से प्रेम होता है और उसके आगे वो कुछ नहीं देखते। इसलिए व्यक्ति को बाहरी आडंबर की जगह श्रद्धा और प्रेम से भगवान का स्मरण करना चाहिए।
Updated on:
06 May 2023 12:39 pm
Published on:
06 May 2023 12:30 pm
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