
नीम करोली बाबा आरती और मंत्र
Neem Karoli Baba: भारत महान साधु संतों की धरा है, यहां समय-समय पर अनेक संत हुए हैं, जिन्होंने लाखों लोगों के कष्ट दूर किए हैं। इन्हीं में से एक है नीम करोली बाबा, जिन्हें उनके तमाम भक्त हनुमानजी का अवतार भी बताते हैं। उनके तमाम भक्त कुछ गुरु के रूप में तो कुछ भगवान के रूप में उनकी पूजा करते हैं। भक्तों ने कैंची धाम के इस संत के लिए प्रार्थना गीत भी बनाए हैं। नीब करोरी बाबा की विनय चालीसा काफी मशहूर है। भक्तों का मानना है कि इस प्रार्थना से नीम करोली बाबा उन्हें जीवन की हर परेशानी से मुक्ति दिलाते हैं और हर काम में सफलता का रास्ता दिखाते हैं। उनका कहना है कि नीम करोली बाबा का मंत्र, सारे दुख दूर करने वाला और मनोकामनाएं पूरी करने वाला है।
मैं हूं बुद्धि मलीन अति, श्रद्धा भक्ति विहीन ।।
करू विनय कछु आपकी, होउ सब ही विधि दीन।।
जय जय नीम करोली बाबा, कृपा करहु आवे सद्भावा।।
कैसे मैं तव स्तुति बखानूं। नाम ग्राम कछु मैं नहीं जानूं।।
जापे कृपा दृष्टि तुम करहु। रोग शोक दुख दारिद्र हरहूं।।
तुम्हरे रुप लोग नहीं जाने। जापे कृपा करहुं सोई भाने।।
करि दे अरपन सब तन मन धन, पावे सुख आलौकिक सोई जन।।
दरस परस प्रभु जो तव करई। सुख संपत्ति तिनके घर भरई।।
जैजै संत भक्त सुखदायक। रिद्धि सिद्धि सब संपत्तिदायक।।
तुम ही विष्णु राम श्रीकृष्ण। विचरत पूर्ण कारन हित तृष्णा।।
जैजैजैजै श्री भगवंता। तुम हो साक्षात भगवंता।।
कही विभीषण ने जो वानी, परम सत्य करि अब मैं मानी।।
बिनु हरि कृपा मिलहिं नहीं संता। सो करि कृपा करहिं दुःख अंता।।
सोई भरोसे मेरे उर आयो । जा दिन प्रभु दर्शन मैं पायो।।
जो सुमिरै तुमको उर माही । ताकी विपत्ति नष्ट ह्वे जाई।।
जय जय जय गुरुदेव हमारे। सबहि भांति हम भये तिहारे।।
हम पर कृपा शीघ्र अब करहु। परम शांति दे दुख सब हरहूं।।
रोक शोक दुःख सब मिट जावे। जपे राम रामहि को ध्यावे।।
जा विधि होइ परम कल्याना । सोई विधि आपु देहुं वारदाना।।
सबहिं भांति हरि ही को पूजे। राग द्वेष द्वन्दन सो जूझे।।
करें सदा संतन की सेवा। तुम सब विधि सब लायक देवा।।
सब कुछ दे हमको निस्तारो । भवसागर से पार उतारो।।
मैं प्रभु शरण तिहारी आयो। सब पुण्यन को फल है पायो।।
जयजयजय गुरु देव तुम्हारी। बार बार जाऊ बलिहारी।।
सर्वत्र सदा घर घर की जानो । रखो सुखों ही नित खानों।।
भेष वस्त्र हैं, सदा ऐसे। जाने नहीं कोई साधु जैसे।।
ऐसी है प्रभु रहनी तुम्हारी । वाणी कहो रहस्यमय भारी।।
नास्तिक हू आस्तिक ह्वे जाए। जब स्वामी चेटक दिखलावे।।
सब ही धरमन के अनुनायी। तुम्हे मनावे शीश झुकाई ।।
नहीं कोउ स्वार्थ नहीं कोई इच्छा। वितरण कर देउ भक्तन भिक्षा।।
केही विधि प्रभु मैं तुम्हें मनाऊं। जासो कृपा प्रसाद तव पाऊं।।
साधु सुजन के तुम रखवारे। भक्तन के हो सदा सहारे।।
दुष्टऊ शरण आनी जब परई । पूरण इच्छा उनकी करई।।
यह संतन करि सहज सुभाउ। सुनि आश्चर्य करई जनि काउ।।
ऐसी करहु आप दया।निर्मल हो जाए मन और काया।।
धर्म कर्म में रुचि हो जावे। जो जन नित तव स्तुति गावे।।
आवे सद्गुन तापे भारी। सुख संपत्ति सोई पावे सारी।।
होइ तासु सब पूरण कामा। अंत समय पावे विश्रामा।।
चारी पदारथ है, जग माही। तव कृपा प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं।।
त्राहि त्राहि मैं शरण तिहारी । हरहु सकल मम विपदा भारी।।
धन्य धन्य बढ़ भाग्य हमारो। पावे दरस परस तव न्यारो।।
कर्महीन अरु बुद्धि विहीना। तव प्रसाद कछु वर्णन कीन्हा।।
श्रद्धा के यह पुष्प कछु, चरणन धरि सम्हार।।
कृपासिंधु गुरुदेव प्रभु। करि लीजे स्वीकार।।
Updated on:
14 Jul 2024 06:28 pm
Published on:
11 Jul 2023 04:09 pm
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