
रामराजा मंदिर ओरछा और अयोध्या श्रीराम मंदिर की अद्बुत कहानी
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान राम के जन्म स्थान अयोध्या और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले के ओरछा शहर का गहरा नाता है। ये दोनों शहर भगवान राम के निवास स्थान बताए जाते हैं। ओरछा को बुंदेलखंड की अयोध्या भी कहा जाता है। मान्यता है कि ओरछा के रामराजा मंदिर में भगवान श्रीराम बालरूप में वास करते हैं और ये यहां के राजा हैं, वहीं अयोध्या में भगवान ने अवतार लिया था। बुंदेलखंड क्षेत्र में इससे संबंधित कई कहावतें प्रचलित हैं। इनमें से एक के अनुसार सर्व व्यापक राम के दो निवास हैं खास, दिवस ओरछा रहत हैं, शयन अयोध्या वास।
किंवदंती के अनुसार भगवान राम दिन में ओरछा में निवास करते हैं और रात में अयोध्या चले जाते हैं । मान्यता है कि ज्योति के रूप में कीर्तमंडली के साथ भगवान श्रीराम को ओरछा के रामराजा मंदिर से हनुमान मंदिर ले जाया जाता है, जहां से हनुमानजी शयन के लिए उन्हें ज्योति के रूप में अयोध्या ले जाते हैं।
रामराजा मंदिर के पुजारी के अनुसार रोज रात में ब्यारी (संध्या) की आरती होने के बाद यहां से ज्योति निकलती है, जो कीर्तन मंडली के साथ पास के ही पाताली हनुमान मंदिर ले जाई जाती है। यहां से हनुमानजी ज्योतिरूप में भगवान को शयन के लिए अयोध्या के श्रीराम मंदिर ले जाते हैं।
ऐसे भगवान राम बने ओरछा के राजा
धार्मिक ग्रंथों और बुंदेलखंड की जनश्रुतियों के अनुसार आदि मनु और सतरूपा ने हजारों वर्षों तक शेषशायी विष्णु को बालरूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की। इस पर विष्णुजी ने प्रसन्न होकर उन्हें त्रेता में राम, द्वापर में कृष्ण और कलियुग में ओरछा के रामराजा के रूप में अवतार लेकर उन्हें बालक का सुख देने का आशीर्वाद दिया। बुंदेलखंड की जनश्रुतियों के अनुसार यही आदि मनु और सतरूपा कलियुग में मधुकर शाह और उनकी पत्नी गणेशकुंवरि के रूप में जन्मे। लेकिन ओरछा नरेश मधुकरशाह कृष्ण भक्त हुए और उनकी पत्नी गणेशकुंवरि राम भक्त। एक बार मधुकर शाह ने कृष्णजी की उपासना के लिए गणेश कुंवरि को वृंदावन चलने को कहा, लेकिन रानी ने मना कर दिया। इससे क्रुद्ध राजा ने उनसे कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपने राम को ओरछा ले आओ।
इस पर रानी अयोध्या पहुंचीं और सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास कुटी बनाकर साधना करने लगीं। इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधनारत थे। संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना दृढ़ से दृढ़तर होती गई। लेकिन कई महीनों तक उन्हें रामराजा के दर्शन नहीं हुए तो वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू में कूद गईं। यहीं जल में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए और रानी ने उन्हें साथ चलने के लिए कहा।
इस पर उन्होंने तीन शर्त रख दीं, पहली- यह यात्रा बाल रूप में पैदल पुष्य नक्षत्र में साधु संतों के साथ करेंगे, दूसरी जहां बैठ जाऊंगा वहां से उठूंगा नहीं और तीसरी वहां राजा के रूप में विराजमान होंगे और इसके बाद वहां किसी और की सत्ता नहीं चलेगी। मान्यता है कि इसी के बाद बुंदेला राजा मधुकर शाह ने अपनी राजधानी टीकमगढ़ में बना ली। इधर, रानी ने राजा को संदेश भेजा कि वो रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं। इस पर राजा मधुकर शाह ने चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया।
रानी की रसोई में मंदिर
कथा के अनुसार जब रानी 1631 ईं में ओरछा पहुंचीं तो शुभ मुहूर्त में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर प्राण प्रतिष्ठा कराने की तैयारी के चलते महारानी कुंवरि गणेश ने शर्त भूलकर भगवान को रसोई में ठहरा दिया। इसके बाद राम के बालरूप का यह विग्रह अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ और चतुर्भुज मंदिर आज भी सूना है। बाद में महल की यह रसोई रामराजा मंदिर के रूप में विख्यात हुई।
यह भी मान्यता है कि ओरछा में विद्यमान यह मूर्ति वही है जिसे श्रीराम के वनवास जाने के बाद माता कौशल्या भोग लगातीं थीं। बाद में जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी। कहा जाता है कि त्रेता में दशरथ और कौशल्या उनका राज्याभिषेक नहीं कर सके थे, उनकी यह इच्छा कलियुग में पूरी हुई।
Updated on:
07 Sept 2023 10:20 pm
Published on:
07 Sept 2023 10:18 pm
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