25 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

कब है पापमोचनी एकादशी, जानें डेट और मुहूर्त

एकादशी व्रत भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा से समस्त पापों का नाश हो जाता है। यह एकादशी होलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के बीच आती है। आइये जानते हैं कि कब है पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi 2023)।

2 min read
Google source verification

image

Pravin Pandey

Feb 26, 2023

ekadashi.jpg

ekadashi

पापमोचनी एकादशीः पापमोचनी एकादशी तिथि (Papmochani Ekadashi 2023) की शुरुआत 17 मार्च को दोपहर 2.06 पीएम से हो रही है और यह तिथि 18 मार्च 11.13 एएम पर संपन्न हो रही है। उदया तिथि में यह व्रत 18 मार्च को रखा जाएगा। इस व्रत के पारण का समय द्वादशी के दिन 19 मार्च सुबह 6.27 बजे से सुबह 8.51 बजे के बीच होगा।


पापमोचनी एकादशी का महत्वः पापमोचनी एकादशी से तात्पर्य है पाप नष्ट करने वाली एकादशी। इस दिन विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पुरोहितों के अनुसार इस व्रत को रखने वाले शख्स को व्रत के दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से व्यक्ति ब्रह्म हत्या, स्वर्ण चोरी, मदिरापान, भ्रूण नष्ट करने जैसे जघन्य पापों से मुक्त हो जाता है। यह भी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से भक्त के घर में सुख संपत्ति आती है। एकादशी तिथि को जागरण से कई गुना फल प्राप्त होता है।

ये भी पढ़ेंः Holashtak 2023: इन दो घटनाओं के कारण होलाष्टक अशुभ, करना चाहिए ग्रह शांति उपाय

पापमोचनी एकादशी पूजा विधिः प्रयागराज के आचार्य प्रदीप पाण्डेय के अनुसार पापमोचनी एकादशी पर इस विधि से पूजा करनी चाहिए।


1. एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान ध्यान के बाद पूजा का संकल्प लें।
2. भगवान विष्णु की षोडषोपचार पूजा करें।
3. भगवान को धूप, दीप, चंदन, फल अर्पित करें।


4. जरूरतमंदों और भिक्षुकों को भोजन कराएं और दान दें
5. पापमोचनी एकादशी के दिन रात्रि जागरण कर भगवान का ध्यान करना चाहिए।
6. द्वादशी के दिन पारण करना चाहिए।

ये भी पढ़ेंः Maihar Sharada Mata Mandir: इस मंदिर के रहस्य कर देंगे हैरान, मंदिर खुलने से पहले न जाने कौन करता है पूजा?

पापमोचनी एकादशी व्रत कथा

कथा के अनुसार अतीत में चैत्ररथ नाम का सुंदर वन था। इसमें च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या करते थे। वहीं इस वन में देवराज इंद्र देवताओं, अप्सराओं, गंधर्व कन्याओं के साथ विचरण करते थे। कथा के अनुसार इस दौरान कामदेव ने मंजू घोषा नाम की अप्सरा को ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए भेजा। अपने नृत्य, गीत से मंजू घोषा ने मेधावी ऋषि का ध्यान भंग कर दिया, वो अप्सरा पर मोहित भी हो गए और काफी समय तक साथ समय बिताते रहे। कई वर्षों बाद अप्सरा ने जाने की अनुमति मांगी तो ऋषि को अपनी गलती का आभास हुआ और क्रुद्ध होकर उन्होंने मंजू घोषा को पिशाचिनी होने का शाप दे दिया।

इस पर अप्सरा क्षमा मांगने लगी और इसके प्रायश्चित का उपाय पूछा। इस पर उन्हों पापमोचनी एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। इसके बाद मेधावी ऋषि पिता च्यवन के पास पहुंचे। यहां उन्होंने कहा कि पुत्र तुमने यह ठीक नहीं किया। ऐसा कर तुमने भी पाप किया तुम भी इस व्रत को रखो। इस व्रत के प्रभाव से अप्सरा श्राप और मेधावी ऋषि पाप मुक्त हुए।