28 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

ऊर्जा, शक्ति के साथ-साथ अच्छे-बुरे में अंतर समझाती है प्रार्थना

हे भगवान! आप ही मेरे लिए शरण हैं, मुझे अन्य कोई शरण ही नहीं है। इसलिए, हे जिनेश्वर! करूणा भाव से मेरी रक्षा करो, रक्षा करो।

3 min read
Google source verification

image

Sunil Sharma

Sep 19, 2017

antarmukhi

antarmukhi

- मुनि पूज्य सागर महाराज

अन्यथा शरणं नास्ति,त्वमेव शरणं मम।
तस्मात्कारुण्य भावेन, रक्ष रक्ष जिनेश्वर॥8॥

अर्थात्- हे भगवान! आप ही मेरे लिए शरण हैं, मुझे अन्य कोई शरण ही नहीं है। इसलिए, हे जिनेश्वर! करूणा भाव से मेरी रक्षा करो, रक्षा करो।

मन-वचन और काय से अपने आप को भगवान को समर्पित करना ही प्रार्थना है। प्रार्थना का कोई धर्म नहीं होता, न ही इसके लिए किसी मन्दिर की आवश्यकता होती है। जहां खड़े होकर बुराइयों के नाश और अच्छे कार्यों के लिए भगवान का स्मरण किया जाए, वही मन्दिर है और वही प्रार्थना स्थल भी। इसके लिए कोई समय भी निश्चित नहीं है, प्रार्थना हर पल करने की प्रक्रिया है। प्रार्थना करने वाले को कण-कण में भगवान का वास दिखाई देता है। प्रार्थना तो गुणों और ऊर्जा को उत्पन्न करने का निमित्त है।

प्रार्थना संसार की वह ताकत है, जिसके द्वारा विफल कार्य को भी सफल किया जा सकता है। प्रार्थना के द्वारा निज शक्ति की पहचान होती है। संसार के सारे विकार भाव जैसे अहंकार, क्रोध, ईष्र्या, आकांक्षा, लोभ, नकारात्मक सोच, कुसंस्कार, जो हमारी ज्ञान शक्ति को नष्ट करते हैं, उन्हें छोडऩे का क्रम प्रार्थना से होता है। जीवन में मान-सम्मान प्रदान करने वाले उपकार गुण का प्रवाह भी प्रार्थना के माध्यम से होता है। जीवन की दैनिक क्रिया में सहजता, सरलता का जन्म प्रार्थना के जरिए ही होता है। प्रार्थना ईश्वर के समक्ष की जाती है, ईश्वर और प्रार्थना दोनों ही कण-कण में विराजमान हैं, पर ऊर्जा का संचार हमारे भीतर होने लगता है। स्वयं को पहचाने का साधन प्रार्थना है।

प्रार्थना के द्वारा संसार का हर कार्य शुभ और सफलता को प्राप्त करता है। जब कोई अधिक बीमार होता है तो डॉक्टर भी यही कहता है कि प्रार्थना ही इन्हें बचा सकती है। मन्दिर, अस्पताल, स्कूल या खेलकूद आदि का स्थान, किसी भी जगह को प्रार्थना स्थल बनाकर जीवन में प्रार्थना का महत्व बताया गया है। जहां संकट आता है, मनुष्य वहीं प्रार्थना करना शुरू कर देता है। हम देखते हैं कि हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में प्रार्थना के माध्यम से सुखद जीवन की कामना करता है। प्रार्थना व्यक्ति के अहंकार को तोडक़र उसे विनयवान बनाने के साथ-साथ अच्छे फैसले लेने की शक्ति प्रदान करती है। हर पल प्रार्थना करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में आगे आने वाली अशुभ घटनाओं के प्रभाव से बच जाता है।

प्रार्थना तो किए गए अशुभ कार्य का प्रायश्चित है, साक्षात ईश्वरीय शक्ति का पुंज है। तंत्र, मंत्र और विद्या की सिद्धि प्रार्थना से होती है, बस वह प्रार्थना जनकल्याण के साथ निस्वार्थ भावना से होनी चाहिए। प्रार्थना दिखाई तो नहीं देती पर उसका फल साक्षात सुख, शांति और समृद्धि के रूप में दिखाई देता है। पूजा, पाठ, जाप आदि जितने धार्मिक अनुष्ठान हैं, वे सब प्रार्थना के अंग हैं। इन के द्वारा भी भगवान की प्रार्थना की जाती है। व्यक्ति प्रार्थना के जरिए मन के विकारों को निकाल कर गुणों का प्रवेश अपने भीतर करवाता है। भगवान से सीधा संपर्क प्रार्थना के द्वारा व्यक्ति कर सकता है, पुण्य को बढ़ा सकता है। प्रार्थना के जरिए भगवान से अपनत्व का अहसास होता है, जिससे हम अपने सारी सुख-दुख का हिसाब उत्सुकता से कर लेते हैं।

मैत्री, करूणा, दया, वात्सल्य का बीजारोपण प्रार्थना से होता है। आत्मा, विश्वास और धर्म की नींव है प्रार्थना। प्रार्थना के बिना धर्म और उसके फल को प्राप्त नहीं किया जा सकता। अंतरंग की आवाज को निकालने का स्त्रोत है प्रार्थना। गलतियों को प्रभु के समक्ष स्वीकारने का साधन है प्रार्थना। प्रार्थना से कर्म इस प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जिस प्रकार से अंजुली में भरा पानी क्षण भर में नष्ट हो जाता है। शुभ संस्कारों का जन्म प्रार्थना से होता है। दया, करूणा, वात्सल्य, प्रेम, उपकार की भावनाओं को बढ़ाती हुई आत्मशक्ति को मजबूत करती है प्रार्थना।

स्याद्वाद और अनेकांत का जन्म प्रार्थना से होता है, जिससे व्यक्ति हर परिस्थिति में हर कार्य को अपने ही कर्म का फल महसूस करता है। प्रार्थना का सबसे बड़ा महत्व यह है कि यह व्यक्ति विशेष की नहीं, व्यक्ति से नहीं बल्कि गुणों के जरिए की जाती है तथा किसी भी जगह को प्रार्थना स्थल बनाया जा सकता है, बस मन में श्रद्धा होनी चाहिए।