6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

किस देवता की करनी चाहिए कितनी परिक्रमा, गलती पर नहीं मिलेगा फल

अक्सर आप लोगों को देवी देवताओं की परिक्रमा करते देखे होंगे, लेकिन इस पूजा का खास नियम है, जिसे कम लोग ही जानते हैं। इसे सबको जानना चाहिए, तभी आपकी पूजा संपूर्ण होगी तो आइये जानते हैं किस देवता की करनी चाहिए कितनी परिक्रमा..

2 min read
Google source verification

image

Pravin Pandey

Aug 21, 2023

parikrama.jpg

यहां जानिए परिक्रमा का सही नियम

भारतीय धर्म ग्रंथों में सभी देवी-देवता की पूजा के खास नियम बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है देवी देवताओं की परिक्रमा का नियम। इस परिक्रमा का अर्थ है मंदिर के गर्भगृह के चारों ओर ईश्वर की ओर अपना दाहिना अंग किए हुए घूमना। इन ग्रंथों में स्पष्ट रूप से परिक्रमा की संख्या बताई गई है। पूजा की इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए इस नियम का पालन जरूरी है तो आइये जानते हैं अलग-अलग देवी देवताओं की परिक्रमा की संख्या के बारे में..

परिक्रमा का सही नियम
महर्षि योगी आश्रम प्रयागराज के आचार्य प्रदीप पाण्डेय के अनुसार शिवलिंग की परिक्रमा को छोड़कर बाकी सभी मंदिर और देवी-देवता की परिक्रमा करने की प्रक्रिया समान है। सभी की परिक्रमा में आपको गर्भगृह से परिक्रमा शुरू करके चारों ओर घूमते हुए फिर गर्भगृह पर पहुंचना होता है, जबकि शिवलिंग की परिक्रमा करते समय सोमसूत्र को लांघे बिना, फिर उल्टे मुड़ जाना होता है। इसके अलावा सभी देवताओं की परिक्रमा की अलग-अलग संख्या भी निर्धारित है। आइये जानते हैं..

ये भी पढ़ेंः शनि की असीम कृपा पाते हैं 8, 17 और 26 तारीख को जन्मे लोग, होते हैं ये छुपे हुए गुण

शिवलिंगः आधी परिक्रमा (सोमसूत्र को लांघे बिना)
मां दुर्गाः एक परिक्रमा
भगवान गणेशः तीन परिक्रमा
हनुमानजीः तीन परिक्रमा
भगवान विष्णुः चार परिक्रमा
भगवान सूर्यः सात परिक्रमा
पीपल का पेड़ः 108 परिक्रमा


भगवान श्रीराम या श्रीराम दरबारः चार परिक्रमा
श्रीकृष्ण या राधा-कृष्णः चार परिक्रमा
भगवान विष्णु के अन्य अवतारः चार परिक्रमा


नोटः आचार्य प्रदीप के अनुसार धर्म ग्रंथों में जिन देवी-देवताओं की परिक्रमा का उल्लेख नहीं है, उनकी आप तीन परिक्रमा कर सकते हैं।

आत्म परिक्रमा
आचार्य प्रदीप पाण्डेय के अनुसार कई मंदिरों या गर्भगृह में प्रदक्षिणा पथ या परिक्रमा मार्ग नहीं बना होता हैं। ऐसी स्थिति में आप गर्भगृह के सामने खड़े होकर दक्षिणावर्त गोल घूमें, इसे आत्म परिक्रमा कहा जाता है। यह भी इष्ट की परिक्रमा मान ली जाती है।