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Shani Dev Aarti: क्या है आरती का नियम, पढ़ें- बिगड़े काम बनाने वाली शनि देव की आरती

Shani Dev Aarti: पूजा के बाद आरती (Shani Aarti) गाना जरूरी है, लेकिन इसमें कुछ नियमों का खयाल रखना जरूरी होता है तो यहां जानते हैं कि आरती के नियम (Aarati Niyam) क्या हैं और शनि देव की आरती कौन सी है।

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shani dev ki aarti

shani dev ki aarti: शनि देव की आरती के नियम

शनि देव की महिमा (shani mahima)


नौ ग्रहों में शनि का विशेष महत्व है, ये कर्मफल दाता और दंडाधिकारी हैं। इनका वार शनिवार माना जाता है। कहते हैं कि शनिदेव की कृपा जिस व्यक्ति पर हो जाए, वह रंक से राजा बन सकता है। उसके हर संकट दूर हो जाते हैं।

इसलिए हिंदू धर्मावलंबी शनिवार के दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए पूजा पाठ और तरह-तरह के जतन करते हैं। लेकिन बिना आरती के कोई भी पूजा पूरी नहीं होती तो आइये जानते हैं कि क्या है आरती का नियम और शनि देव की आरती कौन सी है, जिसे पढ़ने किस्मत जाग जाती है।

आरती के नियम और किसका रखें ध्यान

1.आरती किसी देवता की पूजा का ही एक भाग होता है। हर पूजा, जप-तप के बाद इसका गायन करने का नियम है। इसके लिए आरती की थाल सजाई जाती है। इसमें कपूर या घी के दीपक को प्रज्ज्वलित किया जाता है। मंदिर में दीपक से आरती कर रहे हैं तो यह दीपक पंचमुखी होना चाहिए।


2. इस समय भगवान के गुणों का बखान करने वाले गीत (आरती) गाते हुए थाल को इस तरह घुमाया जाता है कि उससे ऊँ की आकृति बने। आरती के वक्त आरती की थाल को आराध्य के चरणों में चार बार, उनकी नाभि की ओर दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार श्रद्धा से घुमाना चाहिए।

3. इसके अलावा थाल से आरती लेते समय सिर ढंका होना चाहिए और दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सिर के मध्य भाग पर लगाना चाहिए। आरती लेने के बाद कम से कम पांच मिनट तक जल का स्पर्श नहीं करना चाहिए।

4. आरती की थाल में दक्षिणा या अक्षत जरूर डालना चाहिए। मान्यता है कि शनिदेव की आरती और श्रद्धा पूर्वक भजन गायन से प्रसन्न होकर शनि देव भक्त की रक्षा करते हैं।

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शनि महाराज की आरती (Shani Ki Aarti)

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव....

श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।
नीलाम्बरधारी नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव....

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव....

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव....

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।