कैसे हुआ सबसे बड़े ग्रह का फैसला, राजा विक्रमादित्य को कैसे मिली शनि पीड़ा से मुक्ति

शनिवार (Shanivar ko shani dev ki puja ) कर्मफलदाता शनिदेव की पूजा का दिन होता है। इसदिन शनि देव की पूजा-अर्चना और दान-पुण्य से कष्ट कम होते हैं। आइये जानते हैं शनि देव की वह कथा, जिसमें राजा विक्रमादित्य ने किया सबसे बड़े ग्रह का फैसला।

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किंवदंती है कि एक बार सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, इन सात ग्रहों और राहु-केतु दो छाया ग्रहों की आपस में विवाद छिड़ गया कि हममें से कौन सबसे प्रभावशाली ग्रह है? जब आपम में कोई निर्णय नहीं हो पाया तो इंद्र की सलाह पर राजा विक्रमादित्य से निष्पक्ष निर्णय की मांग की गई।

इस मांग पर राजा विक्रमादित्य असमंजस में पड़ गए। क्योंकि वे जानते थे, जिस ग्रह को वो छोटा बताएंगे, उम ग्रह का प्रकोप उन्हें सहना पड़ेगा। उन्होंने नवग्रहों के धातु के धातु के अनुसार सोना, चांदी, कांसा, पीतल, शीशा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लोहे के नौ सिंहासन बनवाए। जिममें सोने का सिंहासन सबसे आगे और लोहे का सिंहासन सबसे पीछे रखवाया।
इसके बाद सभी ग्रहों से कहा कि वे अपने-अपने धातु के अनुसार आसन ग्रहण करें, जिसका आसन सबसे आगे वह सबसे बड़ा और जिसका आसन सबसे पीछे होगा वही सबसे छोटा होगा। इस तरह सबसे आगे रखे सोने के सिंहासन पर सूर्य देव विराजमान हुए। इधर लोहे धातु के सिंहासन को सबसे पीछे देखकर शनिदेव क्रोधित हो गए।और विक्रमादित्य को ग्रहों का सिद्धांत बताया कि सूर्य एक राशि पर एक महीना, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक-एक महीने, बृहस्पति एक राशि पर एक वर्ष, राहु और केतु उल्टा चलते हुए अठारह महीने एक राशि में रहते हैं और एक राशि पर ढाई साल और साढ़ेसाती के दौरान एक राशि को साढ़ेसात वर्ष प्रभावित करते हैं। फिर सबसे कम प्रभावी कैसे हुए।
शनि के इस कोप के कारण राजा विक्रमादित्य ने अनेक वर्षों तक शनि पीड़ा का अनुभव किया। बाद में उन्होंने अपने राज्य में ऐलान कराया कि संपूर्ण ग्रहों में शनि श्रेष्ठ और बड़े हैं और शनि की ओर से किया गया उपाय संघर्षों से मुक्ति दिलाता है।
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अभी इन राशियों पर चल रही ढैय्या-साढ़े साती
वर्तमान में कर्क और वृश्चिक राशि वालों पर जहां शनि की ढैय्या चल रही है, वहीं पर कुंभ और मीन राशि पर शनि को साढ़ेसाती का असर है। मान्यता है कि आकाशीय न्यायालय में ढैय्या हो या साढ़ेसाती, ये सब शनि द्वारा रचित कर्मफल विधान हैं, जिसके अनुसार पूर्व में किए गए कर्मों का फल भाग्य के रूप में व्यक्ति के सामने आता है तथा वर्तमान में किए गए शुभ कर्म भविष्य बनाते हैं।

शनिवार पूजा का महत्व
कर्मफल जनित ज्ञात-अज्ञात दोषों से मुक्ति और मनोकामनापूर्ति के लिए शनिवार को पूजा करनी चाहिए। आजीविका में उतार-चढ़ाव, जीवन के संघर्षों में सफलता, रोग-शोक निराकरण के लिए शनिवार की पूजा दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने का अवसर प्रदान करती है।
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