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7 साल पहले भी हुआ मर्जर जारी रहता तो बीएमसी हर साल 250 डॉक्टर्स बना रहा होता

उदासीनता से एक साल भी नहीं चला था जिला अस्पताल और बीएमसी का मर्जरशासन ने आज किया उसे तत्कालीन कमिश्नर डॉ. मनोहर अगनानी ने 2017 में कर दिया थाअभियान: बीएमसी का हो विस्तार

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सागर

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Murari Soni

Feb 24, 2024

7 साल पहले भी हुआ मर्जर जारी रहता तो बीएमसी हर साल 250 डॉक्टर्स बना रहा होता

7 साल पहले भी हुआ मर्जर जारी रहता तो बीएमसी हर साल 250 डॉक्टर्स बना रहा होता


सागर. प्रदेश सरकार द्वारा स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग विगत माह ही मर्ज किया गया है, जबकि सागर के तत्कालीन कमिश्नर डॉ. मनोहर अगनानी ने जिला अस्पताल और बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज को 7 साल पहले ही मर्ज कर दिया था। लेकिन क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की उदासीनता से यह मर्जर एक साल भी नहीं चल पाया था। 2017 में तत्काली संभागायुक्त डॉ. मनोहर अगनानी ने आज की यह समस्या पहले ही भांप ली थी। उन्होंने जिला अस्पताल और बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज को मर्ज करने एक प्रयास किया था, ताकि जिला अस्पताल केवल रेफर केंद्र बनकर न रह जाए। यह मर्जर अस्पताल प्रबंधन को समझ नहीं आया और अपने असतित्व पर संकट देख स्वास्थ्य अधिकारियों ने नेताओं से मिलकर मर्जर प्रक्रिया खत्म कर ली थी। यदि मर्जर जारी रहता तो बीएमसी प्रबंधन एनएमसी (नेशनल मेडिकल कमीशन) को 250 यूजी सीट के लिए जरूरी भवन दिखाने बुला सकता था और बीएमसी को बढ़ी हुई यूजी-पीजी सीटों पर प्रवेश की अनुमति भी मिल जाती। बीएमसी अब तक 400-500 अतिरिक्त डॉक्टर्स बनाकर देश को दे चुका होता।
1 साल चले मर्जर में ऐसी थी व्यवस्थाएं-
मर्जर के बाद दोनों संस्थानाओं की ओपीडी-आइपीडी मर्ज हो गईं थी। इसके लिए 2 यूनिट जिला अस्पताल तो 4 यूनिट बीएमसी की कार्य कर रहीं थीं जो सप्ताह में अलग-अलग दिनों में कार्य करतीं थीं। आने वाले मरीजों का इलाज बीएमसी में होता था। जबकि गायनी, पीडिया विभाग जिला अस्पताल में शिफ्ट कर दिए गए थे। बीएमसी टीचिंग इंस्टीट्यूट होने के कारण कर्मचारियों का संविलियन नहीं हो सकता था लेकिन कार्य मिलकर किया जा रहा था।
गायनी के लिए बीएमसी के डॉक्टर्स व प्रोफेसर कार्य के लिए डफरिन अस्पताल में कार्य करते थे। बच्चों के डॉक्टर्स भी जिला अस्पताल पहुंचते थे। सभी पोस्टमार्टम जिला अस्पताल में होते थे और सभी मुलायजे बीएमसी में होने लगे थे। कमिश्नर के स्थानांतरित होते ही 2018 में यह मर्जर खत्म कर दिया गया और दोनों संस्थानों ने अपने कार्य अलग कर लिए।
मर्जर जारी रहता तो पहले ही मिल जातीं सुविधाएं-
-2019 में एनएमसी ने बीएमसी को 250 यूजी सीटों की मान्यता दी थी, बीएमसी प्रबंधन जिला अस्पताल की बिल्डिंग दिखाकर 2020 में ही 250 यूजी सीटों पर प्रवेश की अनुमति ले लेता।
-जिला अस्पताल भी गिरती हुई मरीजों की संख्या से परेशान न होता और रेफर केंद्र बनकर नहीं रहता।
-बीएमसी के वार्ड जनरल पेंसेंट से भरे न होते। मरीज व जांचों की क्वांटिटी भले न बढ़ती लेकिन क्वालिटी पर कार्य हो रहा होता।
-कैंसर, ब्रेन, हार्ट, स्किन की सुपर स्पेशलिटी सुविधा शुरू हो गई होती। मरीजों को महानगरों की ओर दौड़ें नहीं लगानी पड़तीं।
-केंद्र से राशि 2019 में ही मिल गई थी राज्य की 40 प्रतिशत राशि भी 2020 में ही मिल जाती और बीएमसी में सभी व्यवस्थाएं 4 साल पहले शुरू हो जातीं।
-नए मर्जर से अब हम उन नियमों को जानने का प्रयास कर रहे कि क्या बीएमसी जिला अस्पताल के भवन दिखाकर एनएमसी की टीम का निरीक्षण करा सकती है कि नहीं। ताकि हमें जो 250 यूजी सीटों की मान्यता मिली है उसमें प्रवेश करा सकें।
डॉ. आर एस वर्मा, डीन बीएमसी।