
इंसान अपने बुरे कर्म और गुनाहों से जब कठिनाई में फंस जाता है तो ईश्वर को दोष देता है। काल, कर्म और भगवान को दोष लगाना ठीक नहीं। जीवन मिला है तो प्रभु का स्मरण करो। सत्संग करो तभी जीवन की नदिया पर होगी। यह बात पूर्व प्रधान न्यायाधीश अरुण सिंह ने वरदान होटल के पिपलेश्वर धाम में आयोजित श्री राम कथा हनुमान गाथा के तीसरे दिन कही। सुंदरकांड का वर्णन करते हुए राम भक्त हनुमान और माता सीता के प्रसंग सुनाए। उन्होंने कहा कि भगवान हनुमान को जीवन में कभी अहंकार नहीं हुआ तभी तो वह राम के दुलारे थे। उन्होंने कहा सीता के बिना लक्ष्मी मिलना असंभव है और जब लक्ष्मी मिलती है तो शक्ति अपने आप आ जाती है यानी लक्ष्मी और शक्ति चाहिए तो सीता का स्मरण करना होगा। उन्होंने कहा रावण अभिमानी था। मानव शरीर में या तो अभिमान रहेगा या भगवान। ईश्वर को पाना है तो अभिमान को त्यागना होगा। जीवन में सुंदर होना श्रेष्ठ है लेकिन अच्छे लोगों की संगत करो सत्संग करना सर्वश्रेष्ठ है।
उन्होंने आगे कहा कि जिस इंसान में विचार विश्वास और वैराग्य की क्षमता है वही हनुमान है। जीवन में सब कुछ पाना है तो विद्या बहुत जरूरी है। सुंदरकांड के प्रत्येक पात्र की व्याख्या करते हुए उन्होंने मानव जीवन में सीख लेने की बात कही। राम का ज्ञान, भारत का त्याग, लक्ष्मण का वैराग्य शत्रुघ्न का प्रेम और हनुमान से सेवक बनने की बिंदुवार व्याख्या करते हुए उन्होंने अंत में कहा कि कलयुग केवल नाम अधारा सुमर सुमर नर उतर ही पारा।
समापन पर कथा के आयोजक आरके सबलोक व उनके परिवारजनों ने आरती में सहभागिता की। कार्यक्रम में अंकलेश्वर दुबे, विपिन दुबे, मधुसूदन खेमरिया, ललित अग्रवाल, जमील खान, महेश नेमा, मनोरमा गौर डॉ. सुरेश चंद्र रावत आदि मौजूद रहे।
Published on:
09 Dec 2025 05:17 pm
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