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कुल देवता किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति को परेशान नहीं करते : मुनि सुधासागर

भाग्योदय में आयोजित धर्मसभा में निर्यापक मुनि सुधा सागर महाराज ने कहा कि कुल देवता, अपने व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में परेशान नहीं करता। जैनियों के कुल देवता जिनेंद्र देव ही है और कुलगुरु दिगंबर गुरु ही है।

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सागर

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Reshu Jain

Aug 26, 2024

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सागर. भाग्योदय में आयोजित धर्मसभा में निर्यापक मुनि सुधा सागर महाराज ने कहा कि कुल देवता, अपने व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में परेशान नहीं करता। जैनियों के कुल देवता जिनेंद्र देव ही है और कुलगुरु दिगंबर गुरु ही है। मुनि ने कहा कि जिनको पूज्य, आराध्य मानकर अपने कर्मों के क्षय के लिए मोक्ष को प्राप्त करने के लिए पूजता है उसके लिए वो आराध्य देवता है। उन्होंने कहा कि हम जैन हैं इसलिए जिनेंद्र देव की पूजा करना है, हम कुल परंपरा से जिनेंद्र भगवान की पूजा करते आये है, ऐसे भाव से जो पूजा करते है तो वही जिनेंद्र देव, कुल देवता कहलाते है। जैन आगम में साष्टांग नमस्कार का तो उल्लेख मिलता है, दंडवत नमस्कार का नहीं। गवासन से नमस्कार करने पर साष्टांग नमस्कार हो जाता है, यही सर्वश्रेष्ठ है। मुनि ने कहा कि आज विज्ञान उन्हीं चीजों को खोज रहा है जो महावीर भगवान ने छुपा कर रखी थी, क्योंकि वे जानते थे कि इस विधि से तुम विनाश की कगार पर पहुंच जाओगे।

सत्य धर्म सत्य हो यह कोई नियम नहीं है

निर्यापक मुनि सुधासागर महाराज ने कहा कि इस दुनिया में अधर्म भी एक प्रकार का नहीं है, सबके अधर्म अलग- अलग है। इसी तरह हर वस्तु का एवं हर क्रिया का धर्म अलग - अलग है। वस्तु के स्वभाव का नाम धर्म है। सत्य शाश्वत है, अविनाशी है, हमारी जिंदगी का आधार नहीं है। सत्य से जिंदगी नहीं जी जा सकती है। सत्य यदि किसी के लिए विपदा का कारण बनता है उसे असत्य की कोटि में लिया। यदि किसी को सुधारने के लिए असत्य का प्रयोग करना पड़े तो वह सत्य तो नहीं है, लेकिन सत्य धर्म है। सत्य बिल्कुल भिन्न वस्तु है और धर्म बिल्कुल भिन्न वस्तु है।
मुनि ने कहा कि सत्य धर्म सत्य हो यह कोई नियम नहीं है, असत्य भी सत्य धर्म हो सकता है। दुनिया में कितना भी कुछ हो जाए सत्य कभी डिगता नहीं है और धर्म कभी टिकता नहीं है। सत्य का एक ही मुख होता है और धर्म के अनेक मुख होते है। सत्य से कल्याण नहीं है, धर्म से कल्याण है। लोग सत्य की खोज में लगे रहते है जिसे विज्ञान कहते है। जब- जब तुम सत्य की खोज पर जाओगे तुम्हारा विनाश निश्चित है और सत्य की खोज का जो अनुकरण करेगा उसका विनाश निश्चित है। सत्य को खोजना नहीं है सत्य श्रद्धा का विषय है। धर्म श्रद्धा का विषय नहीं है क्रिया का विषय है, अनुभव का विषय है। उदाहरण के लिए सत्य कहता है कि आंख देखने को मिली है तो हम सबकुछ देखेंगे। धर्म कहता है आंख मिली है तो सब कुछ नहीं देखना है, जो देखने योग्य है वही देखना है।