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टिप्पणी: अफसरों की अदूरदर्शिता से सतना मेडिकल कॉलेज का बंटाधार, पढ़ें अब तक का असली सच

टिप्पणी: अफसरों की अदूरदर्शिता से सतना मेडिकल कॉलेज का बंटाधार, पढ़ें अब तक का असली सच

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Real Story of Satna Medical College

Real Story of Satna Medical College

अभिषेक श्रीवास्तव@सतना। किसी अच्छे प्रोजेक्ट का कैसे पलीता लगाते हैं, यह जानना है तो सतना आ जाइए। अफसरों की अदूरदर्शिता और राजनीतिक रसूख ने मेडिकल कॉलेज का ऐसा बंटाधार किया, जिसे अब पैबंद लगाकर भी सही नहीं किया जा सकता। कागजों में जमीन के आवंटन से लेकर प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज का नक्शा तक बन गया, लेकिन वास्तुस्थिति जानने के लिए न तो कोई अधिकारी गंभीर हुआ और न ही किसी राजनेता ने रुचि दिखाई।

हालात यह बने कि जिसे जहां मौका मिला, अपने मन मुताबिक बसेरा बनाता गया। एक चौकोर जमीन की जगह मेडिकल कॉलेज के हिस्से आया तो सिर्फ खनन से खोखला की गई भूमि और आड़ा तिरछा नक्शा। अफसरों की कृपा ऐसी बरसी कि जिसने जो मांगा उसे वह भूमि उपलब्ध करा दी। यह भी नहीं सोचा कि जिस मेडिकल कॉलेज की सतना को सबसे अधिक जरूरत है, उसकी आरक्षित जमीन का क्या हाल होगा।

नतीजतन एक दशक से अधिक समय से आरक्षित जमीन के सबसे अच्छे हिस्से में हाउसिंग बोर्ड की कॉलोनी और स्कूल बन गए। साथ ही जमीन में जो पहले से अवैध कब्जे थे, उन्हें हाल के वर्षों में वैधता प्रदान करते हुए प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत कर दिए गए। बिजली के खंभे भी लग गए। अगर वहां कुछ नहीं हुआ तो सिर्फ मेडिकल कॉलेज को लेकर। भूमि आवंटन के बाद न तो अधिकारी सीमांकन करा पाए और न ही एक अदद बोर्ड लगा पाए।

राजनीतिक रसूख का गठजोड़
दरअसल, अफसरों और राजनीतिक रसूख के इस गठजोड़ ने बहुत सारे खेल किए हैं। इसे ऐसे समझ सकते हैं। 2006 में तत्कालीन जिलाधिकारी ने जनता की मांग पर 52 एकड़ जमीन मेडिकल कॉलेज के लिए आरक्षित कर दी थी। बाद के वर्षों में प्रशासन के पास कई प्रोजेक्ट्स की फाइल पहुंची, जिसे प्रशासन ने उसी आरक्षित भूमि पर बनाने की सहमति दे दी, जबकि अफसरों को साफ पता था कि इतनी बड़ी सरकारी भूमि सिर्फ यहीं बची है। अफसरों ने नेताओं के दबाव में दूसरी सरकारी जमीनों से अतिक्रमण हटाने की बजाय मेडिकल कॉलेज की भूमि ही स्कूल, हाउसिंग बोर्ड और छात्रावास (अब मेडिकल कॉलेज का हिस्सा) को दे दी।

2018 में सतना मेडिकल कॉलेज की स्वीकृति
इसी बीच उसके अंशभाग में पीएम आवास के लिए भी जमीन आवंटित हो गई। अभी यह खेल चल ही रहा था कि 2018 में सतना मेडिकल कॉलेज की स्वीकृति मिल गई। यहीं से अफसर फंसने लगे। कागजों में पहले लगभग 38 एकड़ जमीन मेडिकल को दी गई, फिर डिमांड पर लगभग 8 एकड़ का एक और टुकड़ा दिया गया। लेकिन, यह नहीं बताया कि जो जमीन दी गई है उसका एक हिस्सा अवैध खनन से तालाब बन चुका है। मामले पर पर्दा डालने के लिए वर्क ऑर्डर जारी होने के बावजूद भूमि का सीमांकन भी नहीं किया गया। कागज में भले ही जमीन 46 एकड़ हो, लेकिन भौतिक रूप से 30-35 एकड़ से अधिक नहीं है।

नक्शे में ही परिवर्तन करा दिया
ऐसे में वर्क ऑर्डर के बाद जब मौके पर कार्यदायी संस्था पहुंच चुकी है तो अफसरों का गला सूख रहा है। अब अफसर यह चाहते हैं कि मेडिकल कॉलेज के नक्शे में ही परिवर्तन करा दिया जाए।
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है। यह छोटा मुद्दा नहीं है। मेडिकल कॉलेज सतना की सबसे बड़ी जरूरतों में शामिल है। सभी को पता है कि इसके लिए जनता ने कितना संघर्ष किया है। सिर्फ कुछ को खुश करने के लिए एक बड़ी आबादी के सपने नहीं तोड़े जा सकते। ऐसे में अब वह समय आ चुका है जब इस बंदरबांट का हिसाब जनता को मिले और उसकी वर्षों पुरानी आकांक्षा की पूर्ति हो।