
The sweetness of Sohar songs engulfs in flute tunes
सतना. बांसुरी की मधुर धुन का कौन दीवाना नहीं है। जब कही मधुर बांसुरी बजती है मन अपने आप वहीं खीचा चला जाता है। यह वाद्ययंत्रों में काफी लोकप्रिय वाद्ययंत्र है। जिसे हर कोई बजा भी नहीं सकता। इसके लिए निरतंर अभ्यास की जरुरत है। पर आज हम आपको एेसे शख्स से मिलाने जा रहे हैं जिन्होंने बांसुरी बजाना सीखा नहीं बल्कि ईश्वर की कृपा के कारण उनमे यह गुण अपने आप विकसित हो गया। ग्राम खगेहरा के 36 वर्षीय रामप्रकाश पटेल 15 साल से बांसुरी बजा रहे हैं। वे सोहर, लोकगीतों, भजन, फिल्मी गीतों को बांसुरी की धुन से निकालते हैं। सोहर गानों में निपुण राम प्रकाश पटेल बताते हैं। कि दस साल की उम्र से बच्चों वाली बांसुरी बजाना शुरू कर दिया था। उस बांसुरी से जबजब अच्छी धुन निकले तो आस पास के लोग कहने लगे कि मुझे बांसुरी बजाना सीखना चाहिए। मैं आर्थिक रूप से कमजोर था तो किसी से सीख नहीं पाया। पर ललक थी बांसुरी बजाने की। 16 साल की उम्र में खुद से बांसुरी बनाई। इसके बाद सोहर गीतों को बांसुरी की धुनों से निकालने लगा। बाजी बाजी बधाईया दूर, कशौल्या घर राम भायो, एक फूल फूला हो काशी, दूसरा वनराशी, शंकर जी के मंदिर जाते गौरा जी से मांगते वरदान जैसे सोहर और लोकगीतों को बांसुरी से सुनाते हैं। जिन्हें लोग काफी पसंद करते हैं। इसके अलावा वे खुद से गाना लिखते हैं और खुद से ही उनकी धुन निकालते हैं।
एेसे मिली पहचान
रामप्रकाश कहते हैं कि बांसुरी ने उन्हें पहचान दिलाई है। गांव, शहर के स्कूलों और सार्वजनिक मंच में उन्हें बांसुरी का प्रस्तुतिकरण के लिए बुलाया जाता है। इसके अलावा वे यूट्यूब पर भी समय समय पर बांसुरी बजाते हुए अपने वीडियों अपलोड करते हैं। जिससे उनकी पहुंच दूर तक बनी।
Published on:
25 Sept 2019 01:50 pm
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