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सरकारी फरेब: मुफ्त का दावा, फिर भी कट रही जेब

सरकारी फरेब: मुफ्त का दावा, फिर भी कट रही जेब

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सरकारी फरेब: मुफ्त का दावा, फिर भी कट रही जेब

काउंटर पर लगी मरीजों की भीड़।

भरतपुर. पत्रिका. राजस्थान सरकार भले ही आत्ममुग्धता में अपनी निशुल्क दवा योजना को देश में सर्वश्रेष्ठ बताकर पीठ थपथपा लेए प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की दशा बहुत ही दयनीय है। नेशनल हेल्थ अकाउंट ;एनएचएद्ध द्वारा हाल की रिपोर्ट यह खुलासा करती है। देश में हर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिदिन सरकार 4.8 रुपए खर्च करती हैए राजस्थान के लिहाज से हिसाब लगाएं तो यह खर्च में मात्र 3.75 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन है। स्वास्थ्य पर किए जा रहे कुल खर्च में सरकार की हिस्सेदारी करीब 40.2 फीसदी है जबकि लोग अपनी जेब से इस पर 49.6 फीसदी खर्च कर रहे हैं।
भारत उन पिछड़े देशों में एक है जहां स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी खर्च सबसे कम है। हमारे संविधान के अनुसार स्वास्थ्य सेवाएं राज्य सरकार का दायित्व हैं। इस लिहाज से आकलन करें तो राजस्थान हर मामले में देश के औसत खर्च से कहीं अधिक पिछड़ा हुआ है। राजस्थान उन राज्यों में शुमार है जहां आधारभूत ढांचे की कमीए अस्पतालोंए मेडिकल कॉलेज आदि में प्रशिक्षित स्टाफ का अभावए विशेषज्ञ डॉक्टर के दशकों से पद नहीं भरने या संसाधन होते हुए भी उनका उपयोग नहीं होनेए गुणवत्तापूर्ण उपचार नहीं होने के कारण बीमारी पर खर्च अधिक है। यह राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। स्वास्थ्य पर कुल खर्च बढ़ाने के लिए राज्य सरकार का खर्च बढ़ाना जरूरी है।

बीपीएल की तरफ धकेल रहा इलाज का खर्च
बीमारी पर ज्यादा खर्च का सीधा संबंध गरीबी से है। इससे आमजन की जेब पर पडऩे वाले भार से सामाजिक.आर्थिक संतुलन भी गड़बड़ा रहा है। एक अध्ययन के अनुसार सिर्फ बीमारी पर होने वाले खर्च की वजह से हर साल सात फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे ;बीपीएलद्ध चली जाती है। बढ़ते चिकित्सा खर्च की वजह से हर साल 23 फीसदी बीमार लोग अपना सही इलाज नहीं करा पा रहे हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर ही ज्यादा ध्यान दिया जाए तो भी आम आदमी की जेब पर भार नहीं पड़ेगा और उसे गरीबी की रेखा से नीचे जाने से रोका जा सकेगा।


अब मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना का सहारा
राजस्थान में अब मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत सरकार आमजन को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ देने का दावा कर रही है। हालात यह है कि अस्पताल में भर्ती होने वाले हर मरीज के रजिस्ट्रेशन कर लाभान्वितों का आंकड़ा बढ़ाने का काम जरूर किया जा रहा हैए जबकि पूर्व में ही दवाइयां व उपचार अन्य निरूशुल्क योजना में शामिल हैं। अजमेर के जेएलएन मेडिकल कॉलेज समेत राज्य के तमाम अस्पतालों के यही हाल हैं।


कुछ फैक्ट
स्वास्थ्य सेवाएं राज्य सरकार का दायित्व हैं। नीतिगत प्रतिबद्धताओं की कमी से इसमें सुधार नहीं हो सका। वर्ष 1990 में स्वास्थ्य पर खर्च जीडीपी का 0ण्9 प्रतिशत थाए जो 2015.16 में बढ़कर 1ण्15 प्रतिशत और वर्ष 2017.18 तक यह 1ण्35 आया है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति ;एनएचपीद्ध 2017 में 2025 तक भारत में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च को जीडीपी का 2ण्5 फीसदी तक पहुंचाने लक्ष्य रखा है। अन्य देशों की तुलना में स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति खर्च में यह प्रदर्शन भी काफी खराब है।
जिन बीमारियों में लोगों को जेब से सबसे ज्यादा खर्च करना पड़ता है उनमें दिल की बीमारियांए कैंसरए दुर्घटनाएं में घायल होने मनोरोग आदि शामिल हैं। केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य योजनाओं के बावजूद हालात में बदलाव नहीं आया।


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