पुलवामा हमले में शामली के दो लाल शहीद हुए थे। इस हमले में शहीद हुए प्रदीप और अमित के परिजनों की आंखें आज भी नम हैं। फरवरी माह आते ही इनकी आखें भर आती हैं। 14 फरवरी को पूरे सम्मान के साथ दोनों शहीदों की प्रतिमाओं का माल्यार्पण किया जाएगा दोनों के नमन किया जाएगा।
पुलवामा हमले से कुछ ही दिन पहले प्रदीप छुट्टी लेकर घर आए थे। उनके तहेरे भाई की शादी थी। रिश्तेदारों ने छुट्टी बढ़वाने के लिए कहा था लेकिन पुलवामा हमले से दो दिन पहले ही प्रदीप ने दोबारा ड्यूटी ज्वाइन कर ली थी। इसी तरह से अमित भी करीब 20 दिन पहले ही छुट्टी काटकर ड्यूटी पर लौटे थे। दोनों के परिवार वालों ने कभी सोचा नहीं था कि उनके बेटे आतंकी हमले में शहीद हो जाएंगे। इनके परिवार वालों का कहना है कि दोनों की कमी तो कभी भी पूरी नहीं हो सकती लेकिन उन्हें गर्व है कि उनके बेटें देश की सेवा करते हुए शहीद हुए हैं।
वर्ष 2003 में भर्ती हुए थे प्रदीप
उत्तर प्रदेश के शामली जिले के गांव बनत के रहने वाले प्रदीप कुमार का चयन वर्ष 2003 में सीआरपीएफ में हुआ था। जब पुलवामा हमला हुआ तो प्रदीप की डयूटी श्रीनगर में थी। प्रदीप की पत्नी कामिनी बेटे सिद्धार्थ और दुष्यंत के साथ गाजियाबाद में रहती थी। प्रदीप छुट्टी लेकर गांव आए थे उनके तहेरे भाई की शादी थी। पुलवामा हमले से सिर्फ दो दिन पहले 12 फरवरी को वह वापस ड्यूटी पर चले गए थे। इधर घर में शादी का माहौल था और श्रीनगर से प्रदीप के शहीद होने की खबर पहुंची। पूरा गांव दुख में डूब गया और रात 11:00 बजे तक प्रदीप के घर पर बड़ी संख्या में ग्रामीण इकट्ठा हो गए। इस एक खबर को सुनकर पूरे परिवार की आंखे भर आई थी। प्रदीप के परिजनों की आखें आज तक नहीं सूखी और रह-रहकर भर आती हैं।
वो दिन याद करके आज भी रो पड़ते हैं परिजन
आज भी प्रदीप के परिजन उस दिन को याद करके रो पड़ते हैं। उन्हे याद है जब एक फोन कॉल ने जैसे उनकी खुशियों की दुनिया ही छीन ली थी। प्रदीप के पिता का कहना है कि बेटे की कमी तो कभी पूरी नहीं हो सकती लेकिन उन्हें इस बात का फक्र है कि उनका बेटा देश की सेवा करते हुए शहीद हुआ है। बेटे का नाम आते ही पिता जगदीश और माँ सुरेंता की आंखें भर आती हैं। दोनों अंदर ही अंदर रो पड़ते हैं। मां कहती हैं कि बेटा जब छुट्टी पर आता था तो कश्मीर और सेना की कहानियां सुनाया करता था। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन उनके बेटे की भी शहादत की खबर आएगी।
2017 में भर्ती हुए थे अमित कोरी
अमित वर्ष 2017 में सीआरपीएफ में भर्ती हुए थे। पुलवामा हमले से करीब 20 दिन पहले ही अमित छुट्टी काटकर वापस ड्यूटी पर लौटे थे। अमित के परिवार में उनके चार भाई और एकलौती बहन हैं। अमित अपने परिवार में सबसे छोटे थे। उनकी शादी भी नहीं हुई थी। जब अमित के शहीद होने की खबर घर पहुंची तो पूरे परिवार में कोहराम मच गया। रात होने तक रिश्तेदार और शहर के लोग उनके घर पर पहुंच गए थे। उस दिन के बाद से आज तक परिवार अमित को याद करके रोता रहता है।
मां उर्मिला और पिता सोहनपाल की आंखों में हैं अमित
शहीद अमित कोरी के भाई प्रमोद, अर्जुन, सुनील और अनिल चारों अपने-अपने कार्यों में दिनभर व्यवस्त रहते हैं लेकिन भाई को आज तक भूल नहीं पाए। एक भाई को अमित के स्थान पर सरकारी नौकरी शामली तहसील में ही मिली है। पिता सोहनपाल और मां उर्मिला की आंखें कभी भी भर आती हैं। फरवरी का महीना तो जैसे नम आखोंं में ही बीतता है। उनका कहना है कि जिस दिन अमित के शहीद होने की खबर मिली थी उस दिन को जीवनभर नहीं भूल पाएंगे।
14 फरवरी को करेंगे श्रद्धासुमन अर्पित
पुलवामा हमले में शहीद हुए प्रदीप और अमित कोरी की प्रतिमाओं पर 14 फरवरी को माल्यार्पण होगा। हवन पूजन किया जाएगा और पूरे सम्मान के साथ देश के इन दोनों अमर शहीदों को याद किया जाएगा। शामली में दोनों की प्रतिमाएं लगी हुई हैं। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी बरसी पर दोनों शहीदों की प्रतिमाओं पर लोग अपने श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे।