
जाति प्रमाण पत्रों को लेकर विभाग ने जारी किया था ये आदेश, फिर भी अधिकारी खुद तोड़ रहे कायदे
अजय शर्मा, सीकर.
प्रदेश के जिम्मेदारी अधिकारी खुद सरकारी कायदों को तोडऩे में लगे हुए हैं। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ( Social Justice and Empowerment Department rajasthan ) की ओर से कई बार स्पष्ट आदेश जारी होने के बाद भी प्रदेश में हर साल 45 लाख से अधिक नए जाति व मूल निवास प्रमाण ( Caste Certificate ) पत्र जारी हो रहे हैं। हद तो यह है कि खुद सरकार की भर्ती एजेन्सी व शिक्षण संस्था नौकरी व प्रवेश के नाम पर जाति प्रमाण मांग रहे हैं। जबकि इन विभागों को भी लिखित में सरकार ने आदेश दिए कि जाति प्रमाण पत्रों की वैद्यता ताउम्र रहती है। इस वजह से बेरोजगारों की जेब भी ढ़ीली होने के साथ समय भी बर्बाद हो रहा है। दूसरी तरफ तहसील व एसडीएम कार्यालयों के कर्मचारियों के प्रमाण पत्रों में उलझने की वजह से दूसरे काम प्रभावित हो रहे हैं।
जाति प्रमाण पत्रों को लेकर यह आदेश जारी हुआ
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने 9 सितम्बर को 2015 को लगातार शिकायत मिलने पर जाति प्रमाण पत्रों की वैधता को लेकर आदेश जारी किए। इसमें बताया कि अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए जारी प्रमाण पत्रों की अवधि जीवनभर रहती है। जबकि ओबीसी के लिए जाति प्रमाण पत्र तो एक बार ही जारी किया जाएगा। लेकिन क्रिमीलेयर में नहीं होने संबंधी तथ्य को तीन वर्ष के विधि सम्मत शपथ पत्र के आधार पर मान्यता दी जाएगी। क्रिमीलेयर में नहीं होने संबंध प्रमाण पत्र एक वर्ष के लिए मान्य होगा। एक बार क्रिमीलेयर में नहीं होने के प्रमाण पत्र जारी होने के बाद अगर प्रार्थी आगामी वर्षो में भी क्रिमीलेयर में नहीं है तो सत्यापित शपथ पत्र व पुराने प्रमाण पत्र को ही सही माना जाए।
ऐसे समझे पूरा गणित
प्रदेश में औसतन जारी प्रमाण पत्र: 45 लाख से अधिक
आवेदन पर खर्चा: 150 से 250
समय: पांच से दस दिन
अधिकारी- कर्मचारी प्रभावित: 43 हजार से अधिक
सीकर में दो साल पहले नवाचार
जाति व मूल निवास प्रमाण पत्रों के लिए अभ्यर्थियों के लगातार आवेदन करने पर तत्कालीन लक्ष्मणगढ़ उपखंड अधिकारी अनिल महला ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के नौ सितम्बर 2015 के आदेश का जिक्र करते हुए नवाचार किया था। इसके बाद सीकर जिले सहित कई अन्य उपखंडों में थोड़े हालात जरूर बदले। उन्होंने तहसील, स्कूल-कॉलेजों के संचालक, शिक्षा विभाग, ई-मित्र संचालक सहित अन्य को समाज कल्याण विभाग के आदेशों की पालना के निर्देश दिए थे। इसके बाद लक्ष्मणगढ़ उपखंड क्षेत्र में आवश्यकता होने पर ही आवेदन किया गया। ई-मित्र संचालकों को भी इसकी पालना नहीं करने पर पंजीयन रद्द करने की चेतावनी दी गई।
केवल एक बार ही जनरेट हो
पत्रिका ने इस मामले में कई एक्सपर्ट से भी बातचीत की। एक्सपर्ट ने बताया कि यदि राज्य सरकार जाति प्रमाण पत्र के सॉफ्टवेयर में में इस तरह की व्यवस्था कर दें कि कि एक बार से ज्यादा प्रमाण पत्र जनरेट ही नहीं तो सरकारी महकमों के साथ जनता को राहत मिल सकती है।
लापरवाही: नहीं मिल सकता पुराना रेकार्ड
जाति प्रमाण पत्रों के रेकार्ड संधारण को लेकर भी सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से निर्देश जारी किए हुए है। लेकिन इनकी भी प्रदेश के ज्यादातर तहसील कार्यालय व ई-मित्र सेंटरों में पालना नहीं हो रही है। आदेश में बताया कि तहसील व ई-मित्र कार्यालयों में कम से कम 30 वर्ष तक रेकार्ड रखना अनिवार्य है। लेकिन हालत यह है कि ज्यादातर कार्यालयों में पिछले दो-तीन सालों का रेकार्ड मिलना भी मुश्किल है।
सरकार करें पहल तो मिले राहत: कलक्टर
हां यह सही है कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने जाति प्रमाण पत्रों के संबंध में गाइड लाइन जारी की थी। लेकिन भर्ती एजेन्सी व शिक्षण संस्थाओं की ओर से प्रमाण पत्रों की मांग की जाती है। ऐसे में अभ्यर्थी परीक्षा, नौकरी व प्रवेश से वंचित रहने का तर्क देकर बार-बार चक्कर लगाते है। इस कारण सहानुभूतिपूर्ण रवैया रखते हुए प्रमाण पत्र जारी किए जाते है। सरकार स्तर से इस मामले में सख्ती से पहल हो तो सभी को फायदा मिल सकता है।- सीआर मीना, जिला कलक्टर, सीकर
Published on:
04 Sept 2019 01:35 pm
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