
आपने देश-दुनिया के बहुत से म्यूजिम देखे होंगे। जिनमें कला और संस्कृति का बेजोड़ मिश्रण आता होगा। लेकिन सीकर के राजकीय हरदयाल म्यूजियम में कई पुरातत्व महत्व की एेसी चीजें हैं जो दुनिया में कहीं सुनने और देखने को नहीं मिलेगी।
हम बात कर रहे हैं 100 वर्ष पुराने 80 कळी के घाघरे की। रेशम से बने इस घाघरे के नीचे खंडेला के गोटे की कढ़ाई है। भीम द्वारा अश्वस्थामा के वध की प्रतिमा, शिवजी के हाथ में डमरू लेकर पार्वती के साथ नृत्य करते हुए, शीतला माता की नवीं-दसवीं शताब्दी की प्रतिमा और टोपीदार-कारतूस बंदूक के बीच की श्रेणी की बंदूक सहित अन्य कुछ खास चीजें यहां संग्रहित हैं।
दांतारामगढ़ इलाके में मिली शीतला माता की प्रतिभा भी अनूठी है। क्योंकि इतिहासकारों का मत है कि नवीं व दसवी शताब्दी की शीतला माता की प्रतिमा किसी भी म्यूजियम में नहीं है। इससे पता चलता है कि उस दौर में भी शेखावाटी में शीतला माता की पूजा होती थी। कई स्थानों पर शीतला मेले के प्रमाण भी मिले हैं।
भीम के अश्वस्थामा के वध की कहानी तो सभी ने सुनी है लेकिन प्रतिमा किसी ने नही देखी। यह प्रतिमा भी सीकर म्यूजिम में अभी सजाई है। लोहार्गल इलाके में कौरव-पाण्डवों के आने के साथ भीम की प्रतिमा मिलना भी इसका साफ संकते है।
खंडेला के गोटे की है कढ़ाई
100 वर्ष पुराना कपड़ा घर में रखे-रखे ही गलने लग जाता है लेकिन राजकीय संग्रहालय में रखा 80 कळी का घाघरा आज भी बिल्कुल नया लगता है। इसकी खास बात यह है कि यह रेशम से बना है। इसमें खंडेला के गोटे की कढ़ाई है। म्यूजियम की टीम को यह नीमकाथाना से मिला है।
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