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राजस्थान में कचरे से बन रही रोज 200 यूनिट बिजली, इस शहर में लगाया प्लांट; ऐसे तैयार होती है खाद व बिजली

राजस्थान में गीले कचरे को रिसाइकिल कर बिजली और जैविक खाद का उत्पादन किया जा रहा है। इससे हर माह छह हजार यूनिट बिजली मिल रही है।

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आबू रोड़ शहर के ब्रह्माकुमारीज संस्थान ने ऊर्जा के क्षेत्र में एक नया कदम आगे बढ़ाया है। संस्थान के सभी परिसरों से निकलने वाले गीले कचरे को रिसाइकिल कर बिजली और जैविक खाद का उत्पादन किया जा रहा है। इससे जहां हर माह छह हजार यूनिट बिजली मिल रही है, वहीं डेढ़ लाख लीटर जैविक खाद का उत्पादन हो रहा है। इस संयंत्र की स्थापना में जर्मनी के इंजीनियर बीके क्लॉस पीटर का विशेष योगदान रहा। वहीं संस्थान के सोलर प्लांट के इंजीनियर्स की टीम से इसे आकार दिया। इस तरह का राजस्थान में पहला प्लांट बताया जा रहा है।

3.5 टन गीला कचरा प्रतिदिन रिसाइकिल

संस्थान के बीके योगेंद्र भाई ने बताया कि संयंत्र में तीन से साढ़े तीन टन गीले कचरे को रोजाना रिसाइकिल करने की क्षमता है। यहां प्रतिदिन हजारों लोगों के लिए भोजन बनता है। संयंत्र को इसी हिसाब से डिजाइन किया गया है कि भोजन से निकलने वाला गीला कचरा (फल, सब्जी का अपशिष्ट) एक दिन में ही रिसाइकिल किया जा सके।

इस संयंत्र की नींव संस्थान की मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी ने रखी थी। प्लांट में गीले कचरे की मशीन से कटिंग की जाती है। फिर मिक्सर की मदद से घोल तैयार किया जाता है। घोल को डाइजेस्टर टैंक में डाला जाता है। जिससे बनी 250-350 क्यूबिक बायो गैस को जनरेटर की मदद से बिजली में बदला जाता है। वहीं रोजाना तीन से चार हजार लीटर लिक्विड (तरल) खाद निकलती है, जिसका उपयोग फसल और सब्जी उत्पादन में किया जाता है।

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ठोस अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र के फायदे

कचरे से मुक्ति

वायु प्रदूषण दूर करने में मदद

तरल खाद व बिजली उत्पादन

रोजगार का सृजन

जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है

घास-पत्तों का भी उपयोग…

इस संयंत्र में गार्डन, पार्क से निकलने वाली घास और पत्तों के कचरे को उपयोग में लाया जाता है। इन पत्तों और घास को अन्य गीले कचरे के साथ ग्राउंड करके लिक्विड तैयार किया जाता है।