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जैविक पद्धति से काले गेहूं की खेती

मालाखेड़ा (अलवर) क्षेत्र के गांव मुंडिया निवासी किसान कमल सिंह ने सामान्य खेती से हटकर जैविक पद्धति से काले गेहूं की खेती शुरू की। लगातार चार साल सफलता अर्जित करने के बाद आज सैकड़ों किसानों को काले गेहूं की खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। साधारण गेहूं से अलग यह अधिक पौष्टिक व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला है। इसका भाव 80 रुपए से लेकर सवा सौ रुपए प्रति किलो तक रहता है।

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Kanchan Arora

Mar 18, 2024

जैविक पद्धति से काले गेहूं की  खेती

जैविक पद्धति से काले गेहूं की खेती

करनाल से लिया प्रशिक्षण
किसान ने बताया, करनाल के कृषि विभाग से काले गेहूं की खेती का प्रशिक्षण लिया और वहीं से 125 रुपए प्रति किलो की दर से बीज लेकर अपने गांव में बुवाई की। इसमें चार बार सिंचाई करनी होती है। वर्तमान में प्रति बीघा 10 से 12 क्विंटल उत्पादन हो रहा है, जो साधारण गेहूं के मुकाबले अधिक है।
वर्मी कंपोस्ट खाद का उपयोग : रासायनिक खाद तथा दवाइयों का उपयोग नहीं किया जाता है। वर्मी कंपोस्ट खाद काम में ली जाती है। किसान के अनुसार, साधारण गेहूं 15 से लेकर 18 रुपए प्रति किलो की दर से बिक रहा है जबकि काले गेहूं की 80 से लेकर सवा सौ रुपए प्रति किलो तक बिक्री होती है।
&काले गेहूं की खेती में सफलता मिलने के बाद मुंडिया, जमालपुर, बिजवार, नरुका, हाजीपुर, झाला टाला, खेड़ली, लक्ष्मणगढ़ के साथ ही राजगढ़ में भी इसकी बुवाई कर के नए किसान जोड़े हैं।
- किसान कमल सिंह
&कमल सिंह काले गेहूं की खेती जैविक पद्धति से करके अन्य किसानों के लिए उदाहरण बन रहे हैं। इन्हें विभाग ने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया है।
- उप निदेशक सूरजभान शर्मा, कृषि विभाग आत्मा योजना, अलवर
&काला गेहूं अधिक पौष्टिक व स्वास्थ्यवर्धक होता है। इस गेहूं में एंथोसाएनिन पिगमेंट की मात्रा 40 से 140 पीपीएम होती है। इस वजह से इसका रंग काला होता है। साधारण गेहूं में एंथोसाएनिन की मात्रा पांच से 15 पीपीएम होती है। यह पिगमेंट एक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट व एंटीबायोटिक है, जो हार्ट अटैक, कैंसर, शुगर, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया जैसे रोगों में काफी कारगर है।
- निदेशक प्रकाश सिंह शेखावत, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर

- अवधेश सिंह