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अपना हरिगढ़ वनक्षेत्र सोरसन से कम नहीं, यहां भी है कृष्ण मृग

झालावाड़. बारां जिले में सोरसन अभयारण्य कृष्ण मृग (ब्लैक बक) यानि काले हिरण के लिए प्रसिद्ध है लेकिन झालावाड़ जिले में हरिगढ़ वन क्षेत्र भी किसी मामले में सोरसन से कम नहीं है। यहां भी कृष्ण मृग (ब्लैक बक) बहुतायत में विचरण करते हैं। यह क्षेत्र कालीसिन्ध नदी के किनारे है तथा इसके दूसरी ओर […]

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  • झालावाड़. बारां जिले में सोरसन अभयारण्य कृष्ण मृग (ब्लैक बक) यानि काले हिरण के लिए प्रसिद्ध है लेकिन झालावाड़ जिले में हरिगढ़ वन क्षेत्र भी किसी मामले में सोरसन से कम नहीं है। यहां भी कृष्ण मृग (ब्लैक बक) बहुतायत में विचरण करते हैं।

झालावाड़. बारां जिले में सोरसन अभयारण्य कृष्ण मृग (ब्लैक बक) यानि काले हिरण के लिए प्रसिद्ध है लेकिन झालावाड़ जिले में हरिगढ़ वन क्षेत्र भी किसी मामले में सोरसन से कम नहीं है। यहां भी कृष्ण मृग (ब्लैक बक) बहुतायत में विचरण करते हैं। यह क्षेत्र कालीसिन्ध नदी के किनारे है तथा इसके दूसरी ओर मुकन्दरा राष्ट्रीय उद्यान का भाग है। यह स्थल पहले से ही वन्यजीवों का विचरण क्षेत्र रहा है जिसका मुख्य कारण है यहां की प्राकृतिक घास और मैदानी इलका। कृष्ण मृग के अलावा यहां नील गाय, जंगली सूअर, लोमड़ी, सियार, खरगोश, जरख आदि वन्यजीव भी पर्याप्त संख्या में मिलते हैं।

यह क्षेत्र झालावाड़ वन मण्डल के अधीन आता है। हरिगढ़ ब्लॉक 3 हजार से ज्यादा हैक्टेयर वन क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां पेड़ों की संख्या कम है तथा घास की अधिकता है जो कृष्ण मृग के लिए उपयुक्त आवास बनाती है। काला हिरण घास भूमि और हल्के वन वाले क्षेत्र में ही मिलता है। यहां कालीसिन्ध नदी उनके लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध कराती है जो कृष्ण मृग वास के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। पिछले कुछ वर्षो में यहां वन विभाग के छोटे-छोटे ग्रास लैंड एरिया भी विकसित किए हैं जिससे उन्हें और भी उपयुक्त वातावरण मिला है और इनकी संख्या में वृद्धि हुई है। कृष्ण मृग वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची-। में संरक्षित है।

हरिगढ़ क्षेत्र भी कंजर्वेशन रिजर्व के रूप में विकसित हो

राजस्थान में कृष्ण मृग तालछापर अभयारण्य चूरू, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर तथा सोरसन कंजर्वेशन रिजर्व में बहुतायत में मिलता है। झालावाड़ से कुछ ही दूरी पर सोरसन अभयारण्य और हरिगढ़ का क्षेत्र मिलता जुलता है। यदि हरिगढ़ क्षेत्र को भी कंजर्वेशन रिजर्व के रूप में विकसित किया जाए तो झालावाड़ जिले में वन्यजीव संरक्षण और वन पर्यटन को पंख लग सकेंगे। यहां पास ही ऐतिहासिक गिद्ध कराई क्षेत्र है जहां सैकड़ों विलुप्त प्राय: गिद्ध अपना निवास बनाए हुए है। वहीं हरिश्चन्द्र सागर बांध से आगे नदी से झरने के रूप में गिरते पानी का दृश्य रोमांचित कर देता है। इस प्रकार उक्त क्षेत्र प्राकृतिक एवं वन्यजीव प्रेमियों तथा शोधार्थियों के लिए उपयुक्त स्थल है जिसे विकसित किए जाने पर जिले में पर्यटन को बढ़ावा मिल सकेगा।

एक्सपर्ट व्यू

इस क्षेत्र को संरक्षित कर विकसित किया जाए

वन विभाग पिछले कुछ वर्षो से हिरणों के लिए उपयुक्त चारागाह विकास के कार्य करा रहा है। सुरक्षा दीवार भी कराई गई है तथा लूज स्टोन, फेंसिंग भी कराई गई है। गिद्ध कराई संरक्षण के लिए दीवार निर्माण तथा बड़े चारागाह विकसित करने के प्रस्ताव भी तैयार कर भिजवाए गए हैं। यदि राज्य सरकार वन विभाग के माध्यम से इस क्षेत्र को संरक्षित कर विकसित करे तथा पर्यटक हट्स तथा इन्टरप्रिटीशन सेन्टर जैसी व्यवस्था उपलब्ध कराए तो काले हिरणों तथा गिद्धों को संरक्षण के साथ-साथ इको-ट्यूरिज्म विकसित होगा। लवकुश वाटिका बड़बेला की तरह एक ओर नवीन पर्यटन स्थल (इको-ट्यूरिज्म) जिले वासियों को मिल सकेगा। बारां जिले के सोरसन की तरह हरिगढ़, हीचर, चलेट, बर्डग्वालिया के आस-पास के वन क्षेत्र को कंजर्वेशन रिजर्व घोषित किया जाए।

  • संजू कुमार शर्मा, सहायक वन संरक्षक, झालावाड़