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नए लुक में आएगा चहल चौक, लगाई शहीद मेजर की प्रतिमा

- श्रीगंगानगर में मोहनपुरा के सपूत मेजर हरबंस सिंह चहल की याद में बना यह चौक

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श्रीगंगानगर. हनुमानगढ़ रोड पर चहल चौक स्थित शहीद स्मारक आकर्षण का केन्द्र बन गया है। नगर विकास न्यास प्रशासन ने इस चौक का पुननिर्माण कराया है। हालांकि इस पुननिर्माण से पहले न्यास प्रशासन का दावा ​था कि यह संकरा किया जाएगा ताकि वाहनो की आवाजाही में आसानी हो सके। लेकिन स्ट्रेक्चर को पूर्व की तरह बना दिया गया है। हनुमानगढ़ रोड पर जब तीन साल पहले सीसी रोड बनने से यह मार्ग ऊंचा हो गया था, ऐसे में इस स्मारक को परिजनों ने जिला प्रशासन के सहयोग से इस भव्य और आकर्षण का केन्द्र बनाने के लिए मांग उठाई। कुछ अर्से पहले यूआइटी ने इस चौक की मरम्मत कराई थी, लेकिन अब यह चौक सड़क मार्ग के लेवल तक की स्थिति में आने से चौक की भव्यता खत्म होने लगी। इस चौक पर यातायात पुलिस की ओर से ट्रेफिक लाइट शुरू की गई है, अभी यहां ट्रायल चल रहा है। नियमित होने के बाद यहां यातायात पुलिस ट्रेफिक सिंग्नल की अनदेखी करने वाले वाहनेां पर चालान करेगी।
इसलिए बना था यह चौक
जिले के गांव मोहनपुरा के सपूत मेजर हरबंस सिंह चहल ने देश की सीमा पर रक्षा करते हुए अपनी शहादत करीब 54 साल पहले दी थी। दुश्मन की सेनाओं को आगे नहीं बढ़ने दिया। मेजर चहल वर्ष 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में जम्मू कश्मीर के राजौरी सैक्टर के छम्ब जोड़ियां में दुश्मन के हमले का जवाब देते हुए 14 दिसम्बर 1971 को शहीद हो गए थे। उनकी याद में यहां हनुमानगढ़ रोड पर 28 जुलाई 1987 को किया गया था। आदमकद प्रतिमा लगाने के अनावरण कार्यक्रम में तब राज्य मंत्री हीरालाल इंदौरा और तत्कालीन कलक्टर रामलुभाया अतिथि थे। मल्टीपरपज स्कूल के पास रेलवे फाटक अब आरयूबी स्थल पर मेजर के नाम का शिलालेख लगाया था लेकिन कोई उखाड़ ले गया।
मेजर के नाम मार्ग का नाम भी पर अब गुमनाम
इस संबंध में सात साल पहले मेजर चहल की धर्मपत्नी बलजीत कौर ने तत्कालीन जिला कलेक्टर ज्ञानाराम को ज्ञापन भी दिया था। मल्टीपर्पज स्कूल से तीन पुली की ओर से जाने वाले इस मार्ग का नाम वर्ष 1974 में राज्य सरकार के निर्देश पर स्वर्गीय मेजर हरबंस सिंह चहल मार्ग रखा गया था। इसका एक शिलालेख रेलवे लाइन के पास लगा हुआ था। वर्ष 2013 में अण्डरब्रिज बनाते समय यह शिलालेख हटा दिया गया। अण्डरपास बनने के लंबे अर्से बाद भी उस शिलालेख को वापस नहीं लगाया गया। यहां तक कि अण्डरब्रिज के पास लगे साइन बोर्ड में भी इसका उल्लेख तक नहीं किया गया है।