गंगानगर आगार से इस समय 125 बसों का संचालन किया जा रहा है। इनमें से 25 बसें अनुबंधित हैं। अनुबंधित बसों में रोडवेज का परिचालक सेवाएं दे रहा है, जबकि ड्राइवर अनुबंधित बस के मालिक का है। रोडवेज प्रशासन प्रति किलोमीटर के हिसाब से डीजल खर्च उपलब्ध करवा रहा है। रोडवेज में 50 बसें ऐसी हैं, जो आठ लाख किलोमीटर से अधिक चल चुकी हैं। कई बसें तो ऐसी हैं, जो अब तक 15 लाख किलोमीटर चल चुकी हैं।
यानि कंडम सीमा को यह बसें कभी की पार कर चुकी हैं। रोडवेज में खटारा बसों में सफर करने से यात्री अब बचने लगे हैं और यही वजह है कि प्राइवेट बस सेवाओं में यात्री भार लगातार बढ़ रहा है। जयपुर के लिए रात्रि में जिले भर से लगभग 50 बसें सवारियों को लेकर जा रही हैं। इन प्राइवेट बसों में ऐन वक्त पर सीट या स्लीपर मिलना मुश्किल हो जाता है। राजस्थान रोडवेज की बस शाम साढ़े 5 बजे रवाना होती है।
क्या करते हैं कंडम बसों का?
राजस्थान रोडवेज की कंडम घोषित हो चुकी बसों को अजमेर स्थित रोडवेज के सेन्ट्रल वर्कशॉप में भेजा जाता है। जहां इन बसों को समय-समय पर नीलाम किया जाता है। रोडवेज में नियमानुसार आठ साल अथवा आठ लाख किलोमीटर चलने के बाद कंडम घोषित किया जाता है।
‘रोडवेज के गंगानगर आगार में अन्य आगारों की तुलना में बसों की स्थिति काफी बेहतर है। हां, 3 दर्जन बसें 8 से 12 लाख किलोमीटर तक चलाई जा चुकी हैं।’
– अजय मीणा, प्रबंधक संचालन, राजस्थान रोडवेज, श्रीगंगानगर आगार।