सूरतगढ़ थर्मल।होली का त्यौहार नजदीक है, लेकिन अभी तक न तो ग्रामीण अंचल में और न ही शहर में होली का रंग चढ़ता नजर आ रहा है। वक्त के साथ रंगों के इस त्यौहार के रंग भी फीके पड़ने लगे हैं। सालों पहले जो जोश होली को लेकर बसन्त पंचमी से नजर आने लगता था, वह अब होली के दिन भी नजर नही आता।
फाल्गुन की मस्ती अब कहीं पर ढूंढे से भी दिखाई नहीं दे रही है। हालांकि कुछ गांवो में कभी कभार दो चार ग्रामीण चंग बजाते और शहरो में कुछ सांस्कृतिक एवम सामाजिक संस्थाएं चंग धमाल और होली मिलन के नाम पर कार्यक्रम आयोजित करती है, लेकिन इनमें भी होली की मस्ती और मदनोत्सव की खुमारी नज़र नहीं है।
कभी होलिका पर्व की शुरूआत बसंत पंचमी पर हो जाती थी। बसंत पंचमी को होलिका दहन वाले स्थान अथवा गांव की चौपाल में पर डंडा गाड़ दिया जाता था। और रोज रात को होली तक चंग पर पारम्परिक धमाल और गींदड़ नृत्य होता था। अब तो ऐसा लगता है जैसे होली एक रस्म अदायगी हो गई है।
गांव के चौपाल में होली के रसिया इकट्ठा होकर आधी रात तक चंग की थाप पर होली के नृत्य गीत का धमाल मचाते थे, लेकिन अब ये सब किस्सों में ही रह गए है। अब सबकुछ बदल चुका है। होली आएगी और बच्चो की चंद घंटों की मस्ती के बाद चली भी जायेगी।
थर्मल क्षेत्र के नरेंद्र पारीक कहते है कि युवा वर्ग परम्पराओ और संस्कृति से दूर होता जा रहा है। जिस वजह से होली पर्व के प्रति उल्लास कम हो रहा है। जबकि पूर्व में इस त्यौहार के प्रति उमंग और उल्लास होता था। गली मोहल्लों में रसियो की टोली नजर आती थी।
सोमासर के ग्रामीण प्रेम सहारण ने बताया कि होली पर्व मस्ती और उमंग का त्यौहार है। मगर लोग अब होली ही नही सभी त्यौहारों से दूरी बनाते जा रहे हैं। जिसकी मुख्य वजह शराब और नशा। युवाओं को अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए इसमें भाग लेना चाहिए।
जाति धर्म के नाम पर एक-दूसरे के प्रति पनपी कटुता की भावना के चलते त्यौहार सिमटते जा रहै है। जबकि पर्व आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने और पुराने वैर-भाव को भूल एक रंग में रंगने का संदेश देता है।