विश्व अस्थमा दिवस का इतिहास अस्थमा दिवस मनाने की शुरुआत 1993 में हुई थी, जब पहली बार ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से इस दिन को मनाया। 1998 में, 35 से अधिक देशों ने विश्व अस्थमा दिवस मनाया, जो बार्सिलोना, स्पेन में पहली विश्व अस्थमा बैठक से जुड़ा था। इस कार्यक्रम के बाद दुनियाभर के देशों में मई महीने के पहले मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन अस्थमा के प्रति लोगों में जागरुकता लाने का प्रयास किया जाता है।
अस्थमा को हल्के में लेना ठीक नहीं पिछले कुछ समय में प्रदूषण और लाइफ स्टाइल में बदलावों की वजह से अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आमतौर पर अस्थमा जैसी सांस से जुड़ी बीमारी को नजरअंदाज किया जाता है और इसका सही तरीके से इलाज भी नहीं किया जाता। खासतौर पर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अस्थमा के मरीजों से कहा जाता है कि यह कोई बीमारी नहीं है, जिसे ठीक करने के लिए इलाज और दवाओं का सहारा लिया जाए। ऐसे में इस दिन को मनाने का उद्देश्य विश्व स्तर पर अस्थमा के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। साथ ही, दुनियाभर में अस्थमा से पीडि़त लोगों को सही इलाज मिल सके, इसके प्रति जागरूकता लाना है।
– डॉ बीआर जांगीड़, वरिष्ठ विशेषज्ञ (श्वास रोग), राजकीय उप ज़िला चिकित्सालय, परबतसर
बच्चों में बढ़ रही है अस्थमा की समस्या बच्चों में अस्थमा की बीमारी दिनों-दिन बढ़ रही है। इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे एलर्जी, बच्चों का एक्सपोजर नहीं होना, अभिभावकों में अस्थमा होना आदि। बच्चों में अस्थमा के लक्षण भी बड़ों से अलग होते हैं। अस्थमा के बचाव के लिए ट्रिगरिंग फैक्टर से बचाव करना होता है। बच्चों में अस्थमा की शिकायत होने पर डॉक्टर को दिखाना चाहिए, ताकि समय रहते उपचार हो सके। अन्यथा यदि 12-13 साल की उम्र में अस्थमा ठीक नहीं होता है तो उम्र भर के लिए बीमारी बन सकता है।
– डॉ. विकास चौधरी, शिशु रोग विशेषज्ञ, जेएलएन राजकीय अस्पताल, नागौर