दरअसल, नासा की कैलिफोर्निया स्थित जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (जेपीएल) ने चंद्रयान-1 को जमीनी राडार तकनीक से ढूंढने में कामयाबी हासिल की है। फिलहाल चंद्रयान, चंद्रमा की सतह से 200 किमी ऊपर चक्करलगा रहा है। नासा ने चंद्रयान-1 के साथ अपने एक रोबॉटिक यान लूनर रिकॅनसेंस ऑर्बिटर (एलआरओ) को भी खोज लिया है। वैज्ञानिकों ने एक नए ग्राउंड रडार की मदद से दोनों यानों को खोज निकाला।
वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रयान-1 को खोजना ज्यादा बड़ी चुनौती थी क्योंकि अगस्त-2009 में ही यह खो गया था और उसका आकार किसी स्मार्ट कार के मुकाबले आधा है। दरअसल, चंद्रयान-1 का आकार 1.5 मीटर के क्यूब (घनाकार) जितना है। इस लिहाज से चंद्रयान-1 को पहचानना और मुश्किल काम था।
जेपीएल में राडार वैज्ञानिक मरीना ब्रोजोविच के मुताबिक ‘हमने नासा के लूनर रिकॅनसेंस ऑर्बिटर (एलआरओ) को ढूंढ निकालने में कामयाबी हासिल की है। इसरो का भेजा गया यान चंद्रयान-1 भी चांद की कक्षा में चक्कर लगाते हुए पाया गया है। एलआरओ को ढूंढना हमारे लिए थोड़ा सरल था क्योंकि हम मिशन के नेविगेटर्स के साथ काम कर रहे थे। चंद्रयान का पता लगाना कठिन रहा क्योंकि इससे अगस्त 2009 से संपर्क टूटा हुआ था।’
ऐसे खोजा गया लुप्त यान चंद्रयान-1 की खोज के लिए अंतर्ग्रहीय रडार का इस्तेमाल किया गया। ये रडार धरती से करोड़ों किमी दूर धूमकेतुओं को देखने में इस्तेमाल होते हैं। हालांकि,चंद्रयान को खोजने के बाद वैज्ञानिकों को यकीन ही नहीं हुआ कि इतने छोटे आकार का कोई ऑब्जेक्ट चंद्रमा के आसपास हो सकता है। चंद्रमा की धरती से दूरी करीब 3 लाख 8 4 हजार किमी है।
इतनी दूरी पर पहुंचे चंद्रयान को खोजने के लिए नासा ने कैलिफोर्निया स्थित गोल्डस्टोन गहन अंतरिक्ष संचार परिसर के 70 मीटर ऊंचे एंटीना का इस्तेमाल किया। एंटीना ने चंद्रयान-1 की खोज के लिए चंद्रमा की तरफ ताकतवर माइक्रोवेव बीम भेजीं। इसके बाद पश्चिमी वर्जीनिया स्थित 100 मीटर ऊंचे ग्रीन बैंक टेलीस्कोप को चंद्रमा की कक्षा से चंद्रयान-1 की मौजूदगी की तरेंगे मिलीं।
संपर्क टूटने से पहले लगाए 3400 चक्कर गौरतलब है कि इसरो से संपर्क टूटने के पहले चंद्रयान-1 ने चांद की कक्षा के करीब 3400 चक्कर लगाए थे। इसरो ने इसे 22 अक्टूबर 2008 को श्रीहरीकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी सी-11 से छोड़ा था। यह 12 नवंबर 2008 को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया और 15 नवंबर को चंद्रयान-1 से निकलकर मून इम्पैक्ट प्रोब (एमआईपी) चांद की धरती से जा टकराया था। मगर, 29 अगस्त 2009 को इसका इसरो से अचानक संपर्क टूट गया था।