
नक्सलियों ने यहाँ मचाई थी ऐसी तबाही की तेरह साल लग गए उजड़े हुए शिक्षा के मंदिर को आबाद करने में
सुकमा. जिले के जगरगुंडा में नक्सलियों के खिलाफ चलाए गए सलवा जुडूम आंदोलन (Salwa Judum Movement) के दौरान बंद हुए स्कूलों में करीब 13 साल बाद अब जा कर रौनक लौटी है। इलाके (Jagargunda) में एक बार फिर शिक्षा के प्रति जागरूकता देखने को मिल रही है। सलवा जुडूम आंदोलन के समय नक्सलियों (Naxalite) ने पक्के बने स्कूलों और आश्रम की बिल्डिंग को गिरा दिया था।जिसके कारण आसपास के 14 गांव के बच्चों का भविष्य अंधेरों में कहीं खो गया था और उस दौर की पूरी पीढ़ी शिक्षा से वंचित हो गई।
आंदोलन के बाद प्रशासन ने आनन-फानन में स्कूल आश्रमों को सीधे दोरनापाल में शिफ्ट कर दिया। लंबे अंतराल के बाद यहां आए कलेक्टर चंदन कुमार ने आदिवासी बच्चों की शिक्षा पर फोकस किया । उन्होंने बंद पड़े खंडहर हो चुके स्कूल भवनों की जगह नए भवन बनाने की योजना बनाई और 2 महीने में ही यहां स्कूल और आश्रम खड़े कर दिए । अब इन स्कूलों में बच्चों को प्रवेश भी दिला दिया गया है । 24 जून से प्राइमरी से लेकर 12वीं तक के बच्चों का प्रवेश प्रारंभ हो गया है । अबतक लगभग 80 बच्चों ने प्रवेश लिया है।
फिर तैयार हुआ उजड़ा हुआ शिक्षा का मंदिर
जगरगुंडा (Jagargunda) में खंडहर हो चुके भवन फिर से खड़े हो गए हैं। रंग रोगन के साथ शिक्षा का मंदिर फिर तैयार हो चुका है। बच्चों के शोरगुल से परिसर गुंजायमान हो रहा है तो गांव के लोग भी खुश हैं। स्थानीय ग्रामीणों ने कहा कि सब कुछ तबाह हो गया था। अब स्कूल खुल जाने से गांव में रौनक लौट आई है।
पुराने जख्मो के निशाँ दीवारों पर अभी ताजे हैं
सलवा जुडूम (Salwa Judum Movement) शुरू हुआ तो नक्सलियों ने इस आंदोलन से जुड़े अन्य ग्रामीणों की निर्मम हत्या कर दी। जो बच गए वह गांव छोड़कर चले गए। जगरगुंडा आश्रम और शालाओं के एक बड़े केंपस को तहस-नहस कर दिया। आज भी स्कूलों की खंडहर दीवारों पर सलवा जुडूम विरोधी नारे और सलवा जुडूम समर्थकों के खिलाफ चेतावनी लिखी हुई है। स्कूल तोड़ दिए गए तो बच्चे मजबूरी में 55 किलोमीटर दूर दोरनापाल में पढ़ने चले गए।
अघोषित जेल में रहते हैं जगरगुंडावासी
वर्ष 2006 से सलवा जुडूम (Salwa Judum Movement) के बाद जगरगुंडा (Jagargunda) के आसपास के 14 गांव के लोगों को यहां राहत शिविर में रखा गया था। पूरा गांव चारों ओर से कटीले तारों से घिरा हुआ है। गांव में प्रवेश के दो ही द्वार है। जिसमें जवानों का पहरा रहता है। पिछले 13 सालों में यहां लोग खुली जेल में रहने को मजबूर हैं। अभी यहां 22 परिवार रह रहे हैं। कुछ ऐसे परिवार हैं। जो दिन में अपने खेतों में काम करने के बाद नक्सलियों (Naxalite) के डर से शाम को फिर शिविर में लौट आते हैं।
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Published on:
01 Jul 2019 06:39 pm
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