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Surat News : रीढ़ की हड्डी में नस दबने से दिव्यांग हो चुके बच्चे को मिला नया जीवन

न्यू सिविल अस्पताल में ऑर्थो विभाग के डॉक्टरों ने रीढ़ की हड्डी में नस दबने से लगभग दिव्यांग हो चुके भरुच के लडक़े की सफल सर्जरी के बाद 8 महीने बाद फिर से चलने में सक्षम बनाने में सफलता हासिल की है। गुजरात के कई अस्पतालों में इलाज करवाने के बाद रिजल्ट नहीं आने पर किशोर को सूरत सिविल अस्पताल रेफर किया गया था। डॉक्टरों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और पहली बार इस तरह का ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरा किया।

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रीढ़ की हड्डी में नस दबने से दिव्यांग हो चुके बच्चे को मिला नया जीवन

रीढ़ की हड्डी में नस दबने से दिव्यांग हो चुके बच्चे को मिला नया जीवन

भरुच जिला के झगडिय़ा अंधार काचल गांव निवासी कृष्णा नटवर वसावा (13) को छह माह पहले सातवीं कक्षा की परीक्षा के दौरान श्वास चढऩे की तकलीफ हुई। बाद में धीरे-धीरे उसके पैर का हलन-चलन बंद हो गया। बीमारी इतनी बढ़ गई कि उसे पढ़ाई छोडऩी पड़ी। उसे उठाकर शौचालय ले जाने की नौबत आ गई थी। एक स्थानीय अस्पताल में जांच के दौरान रीढ़ की हड्डी में समस्या होना पता चला।

स्थानीय डॉक्टरों ने कहा था कि ऐसे ऑपरेशन लगभग सफल नहीं होते हैं। उन्हें कृष्णा को अहमदाबाद ले जाना चाहिए। उन्होंने इलाज के लिए कई अस्पतालों के चक्कर लगाए। आखिरकार अहमदाबाद के एक डॉक्टर ने कृष्णा को सूरत सिविल अस्पताल के ऑर्थो सर्जन डॉ. हरि मेनन के पास रेफर किया, जिससे परिवार को उम्मीद जगी। पिता नटवर वसावा 29 जुलाई को सिविल लेकर आए। हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. हरि मेनन ने जांच के बाद ऑपरेशन की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ऐसे ऑपरेशन सिर्फ 10 फीसदी सफल होते हैं।

डॉ. हरि मेनन, डॉ. विजय चौधरी, डॉ. शुभदीप मंडल, डॉ. मोनिल यादव, डॉ. आकाश परमार, एनेस्थेसिया विभाग के डॉ. हर्षा पटेल, डॉ. मिताली ने 3 सितंबर को ऑपरेशन किया। करीब 7 घंटे के ऑपरेशन के बाद डॉक्टरों ने कहा कि ऑपरेशन सफल रहा। कुछ दिन बाद कृष्णा को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। घर जाकर बेटे के आत्मविश्वास और डॉक्टर की सलाह के बाद करीब 8 महीने बाद बेटा फिर से चलने-दौडऩे लगा तो परिवार में खुशी के आंसू छलक पड़े।

पैर ने काम करना कर दिया था बंद

ऑर्थो सर्जन डॉ. हरि मेनन ने राजस्थान पत्रिका को बताया कि कृष्णा को कंजेनाइटल किफोसिस वीथ पेरा प्लेजिया बीमारी थी। किशोर के रीढ़ की हड्डी से गुजरने वाली नस दबने से पैर ने काम करना बंद कर दिया। यह समस्या लंबे समय तक रहती तो ऑपरेशन के बाद अच्छा परिणाम मिलना मुश्किल था। यह मामला 8 महीने पुराना था, इसलिए ऑपरेशन का निर्णय किया और उभार के सी आकार को कम करते हुए रीढ़ की हड्डी में नस पर पड़ रहे दबाव को कम किया गया। आमतौर पर प्राइवेट अस्पताल में ऐसे ऑपरेशन का खर्च 3 लाख से ज्यादा होता है, लेकिन सिविल अस्पताल में नि:शुल्क ऑपरेशन किया गया है। यह एक ऐसा ऑपरेशन था जिसमें मासूम बच्चे के साथ भावनाएं जुड़ी हुई थीं। उसे फिर से दौडऩे के लिए तैयार करना एक चुनौती थी।

सिविल के डॉक्टरों ने दी नई जिंदगी

कृष्णा कृष्णा ने चलने-फिरने में सक्षम होने के बाद कहा कि वह अधूरी पढ़ाई पूरी करना चाहता है। मेरी जिंदगी विकलांगता की ओर चली गई थी, डॉक्टरों ने नई जिंदगी देकर चलने-फिरने लायक बना दिया। डॉक्टरों से मुझे नया जीवन मिला है। मैं माता-पिता का इकलौता बेटा हूं, उनके सपनों को पूरा करने की जिम्मेदारी है। निजी अस्पतालों के डॉक्टरों ने लाखों का खर्च बताकर और सफलता की गारंटी भी ना देकर परिवार को मानसिक तनाव में डाल दिया था। सिविल डॉक्टरों ने मेरे परिवार को भी नई जिंदगी दी है। परिवार ने आभार व्यक्त किया और कृष्णा जैसे सभी बच्चों के सफल इलाज के लिए भगवान से प्रार्थना की।