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BIG NEWS: सजा पूरी होते ही छूट जाता तो आज जिंदा होता रमेश

-सीमा पार जुर्म की सजा जुलाई 2019 में ही हो जाती है खत्म, जीते-जी नहीं छोड़ा तो अब लौटेगी मृतदेह  

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BIG NEWS: सजा पूरी होते ही छूट जाता तो आज जिंदा होता रमेश

BIG NEWS: सजा पूरी होते ही छूट जाता तो आज जिंदा होता रमेश

सूरत. मानवीय स्तर पर भारत और पाकिस्तान के बीच अभी भी कई नियम-कानून में सुधार और उनकी पालना में स्वयं के प्रति सख्ती की बड़ी दरकार है। नियम-कानून में अवहेलना के चलते ही गुजरात के गिरसोमनाथ जिले के पाकिस्तान में कैद मछुआरा रमेश सोया अब जीते-जी घर नहीं लौट पाएगा। उसकी कुछ दिन पहले ही कराची स्थित जेल में बीमारी से मृत्यु हो गई और अब उसके शव को भारत लाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
अरब सागर में मछली पकडऩे के दौरान समुद्र में सीमा सूचकों के अभाव और अधिक कमाई के लालच में भारतीय मछुआरे कब पाकिस्तानी मरीन सिक्यूरिटी के शिकंजे में फंस जाते हैं, पता ही नहीं चलता। इसी तरह से करीब दो वर्ष पहले 5 मई 2019 को साधना नामक बोट (जीजे 25 एमएम 1734) में सवार भारतीय मछुआरे रमेशभाई टाभाभाई सोसा समेत अन्य को पाकिस्तान मरीन सिक्यूरिटी एजेंसी ने सीमा पार के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया था और कराची स्थित जेल में बंद कर दिया। हालांकि रमेश समेत अन्य मछुआरों की सजा कानूनी तौर पर गत 3 जुलाई 2019 को ही समाप्त हो गई थी, लेकिन रिहाई के अभाव में उन्हें कराची जेल में ही रहना पड़ा और पिछले दिनों ही 26 मार्च को भारतीय मछुआरे रमेशभाई सोसा की मृत्यु हो गई। सजा पूरी होने के बाद भी जेल में कैद रहना और बीमारी अथवा अन्य कारणों से भारतीय मछुआरे की मृत्यु होने का यह कोई पहला-दूसरा मामला नहीं बल्कि इससे पहले भी इस तरह के कई मामले पाकिस्तान सरकार के अमानवीय रवैये की वजह से सामने आ चुके हैं। कराची जेल में मृत भारतीय मछुआरे रमेशभाई सोसा की मृतदेह भारत लाने के लिए स्वयंसेवी संगठन सक्रिय हो गए हैं। इसमें शामिल समुद्र श्रमिक सुरक्षा संघ के बालुभाई सोया ने बताया कि फिलहाल रमेशभाई की पहचान के लिए उनके पहचान संबंधी जरूरी दस्तावेज एकत्र कर भारतीय विदेश मंत्रालय को भिजवाए जा रहे हैं। नई दिल्ली से यह कागजात पाकिस्तान सरकार के पास इस्लाामाबाद पहुंचेंगे और वहां से इनकी पुष्टि होने के बाद शव को भारत भेजने की प्रक्रिया प्रारम्भ की जाएगी।


-यह होती है प्रक्रिया


भारत-पाकिस्तान की सीमा में बगैर पासपोर्ट प्रवेश करने के मामले में पहले शिमला समझौता के अनुरूप कार्रवाई होती थी, लेकिन कारगिल युद्ध के बाद दोनों देशों के बीच 2008 के समझौते के अनुरूप कार्रवाई होने लगी है। इसमें दोनों देश प्रत्येक वर्ष एक जनवरी और एक जुलाई को अपने-अपने यहां हिरासत में लिए गए लोगों की सूची सौंपते हैं। सूची में शामिल नागरिकों की राष्ट्रीयता की पुष्टि होने के बाद उनकी रिहाई प्रक्रिया प्रारम्भ की जाती है। आम तौर पर समुद्री सीमा में सीमा पार बगैर पासपोर्ट के पकड़े जाने पर प्राकृतिक सम्पदा चोरी का मामला बनता है और ऐसे मामलों में दो महीने कैद की सजा होती है।


-यह पूरी तरह से अमानवीय


रमेश की सजा 3 जुलाई 2019 को ही पूरी हो गई थी फिर भी उसे रिहा नहीं किया गया और ना ही उसके स्वास्थ्य की देखभाल की गई। नतीजन अब उसकी मृतदेह वो भी लम्बी प्रक्रिया के बाद भारत पहुंचेगी। यह पूरी तरह से अमानवीय है और इस पर अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के साथ-साथ भारत व पाकिस्तान सरकारों को भी गंभीरता से विचारना चाहिए।
जतिन देसाई, सामाजिक कार्यकर्ता, मुंबई।


-इनकी हो चुकी है मृत्यु


मृतक का नाम गांव मृत्यु वर्ष
भगवान नथु वालिया दीव 2001
धीरु भीमा चारणिया काजरड़ी 2002
पुरुषोत्तम बावा वाळा दीव 2004
सीदी नथु दमणिया दीव 2004
वालजी सोमा बामणिया दीव 2005
शांतिलाल मंगल चावड़ा दीव 2006
लखमण काना बारिय सावरकुंडला 2008
भगवान भीखा मजीठिया देलवाड़ा 2008
लाखा रणसी बांभणिया आड़ेसर 2009
छगन सोमा कोटडिय़ा आड़ेसर 2009
रामा काळा वाळा तड़ 2012
किशोर भगवान मकवाणा कोब 2013
दादु नारण मकवाणा घाटवड़ 2013