
High Court forbids any action and demolition in Slum areas
सूरत।शहर के स्लम क्षेत्रों की जमीनों पर पीपीपी के तहत आवास बनाने की योजना को झटका लगा है। इस योजना को लेकर कांग्रेस नेता रिजवान उस्मानी की ओर से दायर पिटीशन पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय की बैंच ने स्लम क्षेत्रों में किसी भी तरह की कार्रवाई या डिमोलिशन करने पर रोक लगा दी है।
सूरत मनपा ने शहर के स्लम क्षेत्रों में रहने वालों को पक्के आवास देने के उद्देश्य से उसी जगह पीपीपी के तहत आवास बनाने की योजना शुरू की है। इस योजना के तहत टी.पी.स्कीम नंबर 7 में गांधीनगर, चिमनी टेकरा, जूना डिपो, इस्लामपुरा, जवाहरनगर, नेहरूनगर, सलीमनगर, गौसिया मस्जिद झोपड़पट्टी, आंबेडकरनगर, अनवरनगर, उमियानगर, विवेकानंदनगर, नवी कॉलोनी पद्मानगर, बाखड़ मोहल्ला, हलपतिवास, ख्वाजानगर में आवास बनाने का फैसला किया गया, लेकिन कांग्रेस नेता रिजवान उस्मानी ने यह कहते हुए कि इन जगहों पर पीपीपी, मुख्यमंत्री गृह आवास योजना लागू नहीं की जा सकती, उच्च न्यायालय में पिटीशन दायर कर योजना पर रोक लगाने की मांग की थी।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से दलीलें पेश की गईं कि गुजरात सरकार के नियमों के मुताबिक १०० फीसदी स्थानीय निवासी प्राथमिक सुविधाओं से वंचित हों, तभी गुजरात स्लम एरिया एक्ट १९७३ की धारा ११ के तहत सिर्फ राज्य सरकार कोई कार्रवाई कर सकती है। दलीलें सुनने के बाद उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस आर.आर.सुभाष रेड्डी और विपुल एम.पंचोली ने स्टेटस को यथावत रखने का आदेश देते हुए कहा कि सूरत मनपा स्लम क्षेत्रों में किसी भी तरह की कार्रवाई और डिमोलिशन नहीं करे।
यह है पीपीपी मॉडल
मनपा प्रशासन के कई प्रोजेक्ट्स पीपीपी मोड पर चल रहे हैं। पीपीपी मॉडल में जमीन मनपा प्रशासन मुहैया कराता है और निजी बिल्डर उस पर निर्माण कराता है। पीपीपी मोड पर बन रहे आवासों में जमीन का एक हिस्सा बिल्डर अपने लिए रखता है और बाकी हिस्से पर अपने खर्च से मल्टी स्टोरी बिल्डिंग तैयार करता है। इसमें बने आवासों को लाभार्थियों को आवंटित कर दिया जाता है। इसका बड़ा फायदा यह है कि मनपा को आवास निर्माण पर कोई राशि खर्च नहीं करनी पड़ती और बिल्डर को बची जमीन के कॉमर्शियल इस्तेमाल के लिए मनपा को कोई राशि नहीं देनी पड़ती।
Published on:
25 May 2018 10:12 pm
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