
Mahadev came in the form of hair at the confluence of sea and Narmada
भरुच।समुद्र तथा नर्मदा नदी के संगम पर भरुच जिले के भाड़भूत गांव स्थित सोम ऋषि के आश्रम में भगवान महादेव बाल रूप में शिक्षा ग्रहण के लिए आए थे। यहां महादेव ने विभिन्न लीला कर सोम ऋषि को अपना दिव्य दर्शन दिया था। दक्षिण गुजरात का महाकुंभ मेला हर १८ साल के अन्तराल पर यहां लगता है। भरुच में लगने वाला भाड़भूतेश्वर कुंभ मेला सिर्फ अधिक माह में ही लगता है, जो प्रत्येक १८ साल
पर अधिक भादरवा आता है। भरुच जिला मुख्यालय से २० किलोमीटर की दूरी पर भाड़भूत गांव में भारेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। महाकुंभ में यहां दो करोड़ से ज्यादा लोग आते हैं।
एक दंत कथा के अनुसार भगवान भोलेनाथ बालस्वरुप में नर्मदा नदी किनारे सोम ऋषि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण के लिए आए थे, लेकिन ऋषि उन्हें पहचान नहीं सके। सोम ऋषि के आश्रम में ही भोलेनाथ रुके और यहां काफी लीला की। इस स्थान पर महादेव ने अपना असली स्वरुप धारण कर सोम ऋषि को दर्शन दिया था। उस दौरान भगवान ने कहा कि उनके अदृश्य होते ही यहां एक शिवलिंग अपने आप बनेगा। इस शिवलिंग का जो मनुष्य भादरवा माह में दर्शन करेगा उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी और उसकी मनोकामना पूर्ण होने के साथ-साथ उसे एक हजार यज्ञ करने का भी पुण्य मिलेगा।
वायु पुराण के रेवाखंड में है वर्णन
वायु पुराण के रेवा खंड के 70 वें अध्याय में भाड़भूतेश्वर महादेव का वर्णन है। यहां सोम ऋषि अपना आश्रम बनाकर रहते थे और बालकों को शिक्षा देते थे। सोम ऋषि के यहां स्वयं भोले शंकर बटुक (बालरुप) में आकर वेदों का ज्ञान प्राप्त किया था। वे जब वेदों के ज्ञान के लिए यहां पहुंचे थे, तब भाद्रपक्ष चल रहा था। इसलिए जब भी पंचाग गणना के अनुसार जिस साल में दो भाद्रपद माह आते हैं, यहां लोक मेला लगता है।
भरुच से २० किमी की दूरी
भाड़भूत स्थित भारेश्वर महादेव मंदिर की दूरी भरुच जिला मुख्यालय से २० किलोमीटर है। भरुच से महादेव मंदिर जाने वाले श्रद्धालुओं को स्थानीय बस, टैक्सी, जीप, ऑटोरिक्शा लगातार मिलती रहती है। भारेश्वर महादेव मंदिर के पास ही नर्मदा माता का भी प्राचीन मंदिर भी हैं।
भगवान महादेव ने नर्मदा नदी में डुबा दिया था सहपाठियों को
कथानुसार ऋषि सोम के यहां विद्या ग्रहण के लिए आने वाले हर बटुक को सभी काम करने होते थे। काम का बंटवारा नंबर के अनुसार होता था। कुछ बटुक भोजन बनाते थे और बाकी लकड़ी काटने जंगल में जाते थे। इसी क्रम में बटुक रूप में आए भगवान भोलेनाथ का नंबर भोजन तैयार करने का आया। उन्होंने रसोई में जाकर कामधेनू का स्मरण कर चुटकियों में भोजन तैयार कर दी और अन्य बटुकों के साथ लकड़ी काटने के लिए जंगल में चले गए। सहपाठियों ने जब महादेव को अपने साथ लकड़ी काटते देखा तो कहा कि यदि रसोई तैयार नहीं हुई तो तुम्हें नर्मदा में फेंक देंगे। यह सुन भगवान भोले ने कहा कि यदि भोजन तैयार हो गई होगी तो तुम सबके साथ मैं भी ऐसा ही करुंगा। इसके बाद सभी बटुक आश्रम लौटे, रसोई तैयार देख सभी ने प्रेम से पेट पूजा की। अगले दिन शर्तों के अनुसार बटुक रुप महादेव ने अन्य सहपाठी बटुकों को बांध-बांध कर नर्मदा मैय्या की गोद में फेंक दिया। यह जानकर गुरु सोम ऋषि नाराज हुए और कहा कि अब वे बटुकों के माता-पिता को क्या जवाब देंगे, उन्हें ब्रह्महत्या का पाप भी लगेगा। भोले बाबा को ऋषि का दु:ख सहन नहीं हुआ। उन्होंने नदी तट पर जाकर सभी सहपाठियों को नदी से बाहर निकाल कर किनारे रख दिया और ऊपर घास-फूस डाल दी। वहां से सभी सहपाठी बटुक सही सलामत जीवित निकले। बाद में इसी स्थान पर स्वयं भू-शिवलिंग प्रगट हुआ। तभी भोले बाबा ने प्रगट होकर कहा कि जहां मैंने घास-फूस रखी है वहां शिवलिंग प्रगट हुआ है। यह भारेश्वर के नाम से विख्यात होगा। यहां जो श्रद्धा-भक्तिभाव से पूजन करेगा उसे भोग-मोक्ष दोनों की प्राप्ति होगी।
Published on:
22 Aug 2018 10:24 pm
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