5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

नवरात्रि : भविष्यपुराण में भी है मां दुर्गा के इस देवी स्वरूप का वर्णन

- देवी मां पार्वती की बहन हैं नंदा देवी... - मानसखण्ड के अनुसार मां नंदा के दर्शन मात्र से ही ऐश्वर्य के साथ ही होती है सुख-शांति की प्राप्ति

6 min read
Google source verification
A goddess temple of shakti peeth who is the sister of maa parvati

A goddess temple of shakti peeth who is the sister of maa parvati

चैत्र नवरात्रि का पर्व इन दिनों जारी है। इन 9 दिनों तक देवी मां के विभिन्न स्वरूपों को पूजा जाता है। ऐसे में आज आपको मां दुर्गा के एक ऐसे स्वरूप के बारे में बता रहे हैं, जिनको बुराई के विनाशक के रूप में जाना जाता है। इनकी उपासना के संबंध में धार्मिक ग्रंथों, उपनिषद और पुराणों में भी प्रमाण मिलते हैं। इन्हें नव दुर्गा के रूप में से एक बताया गया है। भविष्यपुराण में जिन दुर्गा के बारे में बताया गया है,उनमें महालक्ष्मी , नंदा, क्षेमकरी, शिवदूती, महाटूंडा, भ्रामरी, चंद्रमंडला, रेवती और हरसिद्धी हैं।

इन्हीं में से एक नंदा देवी (दुर्गा का अवतार) देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित प्रसिद्ध और विख्यात मंदिर “Nanda Devi Temple , Almora !! (नंदा देवी मंदिर !!)” में विराजमान है |

जानें कौन हैं नंदा देवी..
लोक इतिहास के अनुसार नंदा गढ़वाल के राजाओं के साथ-साथ कुंमाऊ के कत्युरी राजवंश व चंद शासकों की भी ईष्टदेवी थी। ईष्टदेवी होने के कारण नन्दादेवी को राजराजेश्वरी कहकर सम्बोधित किया जाता है। नन्दादेवी को पार्वती की बहन के रुप में देखा जाता है, परन्तु कहीं-कहीं नन्दादेवी को ही पार्वती का रुप माना गया है। नन्दा के अनेक नामों में प्रमुख हैं शिवा, सुनन्दा, शुभानन्दा, नन्दिनी।

MUST READ : नवरात्रि (सप्तमी तिथि) मां कालरात्रि - जानें मां काली की शक्ति पीठ और उनकी मौजूदगी के प्रमाण

अल्मोड़ा में नंदादेवी की पूजा तारा शक्ति के रूप में होती है। यह पूजा तांत्रिक विधि से होती है और चंद शासकों के वंशज ही इस पूजा को कराते हैं। चंद शासकों के वंशज नैनीताल के पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा और उनके परिवारजन नंदाष्टमी के मौके पर परंपरा के मुताबिक तांत्रिक पूजा करवाते हैं।

बता दें कि ज्योतिष, तंत्र और मंत्र तीनों विधाओं से उत्तराखंड का जनजीवन और संस्कृति बहुत प्रभावित रही है। जानकारों के मुताबिक कत्यूरी और चंद राजा तंत्र विद्या में पारंगत माने जाते थे। कत्यूरी और चंद शासनकाल में देवी को युद्ध देवी के रूप में पूजने की परंपरा काफी प्रचलित रही है। स्व. राजा आनंद सिंह तंत्र विद्या में काफी पारंगत माने जाते थे।

बताया जाता है कि उनके निधन के बाद नंदादेवी की पूजा पद्धति में काफी परिवर्तन आ चुका है लेकिन आज भी चंद शासकों के वंशज ही आज भी नंदाष्टमी के मौके पर परंपरा के मुताबिक तांत्रिक पूजा करवाते हैं। यह पूजा तारा यंत्र के सामने होती है। बताया जाता है कि यह यंत्र राज परिवार के पास ही है और राज परिवार इसे अपने साथ ही लेकर आता है।

MUST READ : कोरोना को लेकर भारत में 14 अप्रैल तक का लॉकडाउन, जानिये इस दिन क्या है खास

दरअसल जानकारों के अनुसार तारा की उपासना मुख्यत: तांत्रिक पद्धति से होती है। इसे आगमोक्त पद्धति कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि बौद्ध धर्म में तारा के माध्यम से ही शक्ति का प्रवेश हुआ। तिब्बत में उन्हें तारा धारणी का नाम दिया गया है। यह माना जाता है कि नंदा-सुनंदा की चोटी का स्वरूप नंदादेवी की चोटी के स्वरूप से आया।


नंदा देवी मंदिर की स्थापना का पौराणिक इतिहास ! (LEGENDARY HISTORY OF ESTABLISHMENT OF NANDA DEVI TEMPLE)
नंदा देवी मंदिर के पीछे कई ऐतिहासिक कथा जुडी है और इस स्थान में नंदा देवी को प्रतिष्ठित (मशहूर) करने का सारा श्रेय चंद शासको का है। कुमाऊं में माँ नंदा की पूजा का क्रम चंद शासको के समय से माना जाता है। किवदंती व इतिहास के अनुसार सन 1670 में कुमाऊं के चंद शासक राजा बाज बहादुर चंद बधाणकोट किले से मां नंदा देवी की सोने की मूर्ति लाये और उस मूर्ति को मल्ला महल (वर्तमान का कलेक्टर परिसर, अल्मोड़ा) में स्थापित कर दिया, तब से चंद शासको ने मां नंदा को कुल देवी के रूप में पूजना शुरू कर दिया।

इसके बाद बधाणकोट विजय करने के बाद राजा जगत चंद को जब नंदादेवी की मूर्ति नहीं मिली तो उन्होंने खजाने में से अशर्फियों को गलाकर मां नंदा की मूर्ति बनाई। मूर्ति बनने के बाद राजा जगत चंद ने मूर्ति को मल्ला महल स्थित नंदादेवी मंदिर में स्थापित करा दिया। सन 1690 में तत्कालीन राजा उघोत चंद ने दो शिवमंदिर मौजूदा नंदादेवी मंदिर में बनाए, जो वर्तमान में चंद्रेश्वर व पार्वतीश्वर के नाम से जाने जाते हैं। सन 1815 को मल्ला महल में स्थापित नंदादेवी की मूर्तियों को कमिश्नर ट्रेल ने चंद्रेश्वर मंदिर में रखवा दिया।

MUST READ : नवसंवत्सर 2077-ये हैं 25 मार्च से दिसंबर 2020 तक के समस्त शुभ मुहूर्त

मां नंदा के नाम से हैं कई चोटियां और नदियां
समूचे उत्तराखंड को एक सूत्र में पिरोने मां नंदा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नंदादेवी की पूजा समूचे उत्तराखंड में होती है। उन्हें उत्तराखंड की देवी मां का दर्जा प्राप्त है। पुराणों में हिमालय की पुत्री को नंदा बताया गया है। जिनका विवाह शिव से होता है। देवी भागवत में नंदा को शैलपुत्री के रूप में नौ दुर्गाओं में एक बताया गया है।

जबकि भविष्य पुराण में उन्हें सीधे तौर पर दुर्गा कहा गया है। नंदादेवी के नाम से हिमालय की अनेक चोटियां हैं। इनमें नंदादेवी, नंदाकोट, नंदाघुंटी, नंदाखाट आदि चोटियां हैं। इसके अलावा नंदाकिनी, नंद केसरी आदि नदियों के नाम भी नंदा देवी के नाम से हैं। उन्हें पर्वत राज हिमालय की पुत्री तथा उमा, गौरी और पार्वती के रूप में माना जाता है।


नंदा देवी मंदिर की मान्यता (BELIEFS OF NANDA DEVI TEMPLE)
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार एक दिन कमिश्नर ट्रेल नंदादेवी पर्वत की चोटी की ओर जा रहे थे, तो अचानक रास्ते में बड़े ही रहस्यमय ढंग से उनकी आंखों की रोशनी चली गयी। लोगों की राय(सलाह) पर उन्होंने अल्मोड़ा में नंदादेवी का मंदिर बनवाकर उस स्थान में नंदादेवी की मूर्ति स्थापित करवाई, तो रहस्यमय तरीके से उनकी आँखो की रोशनी लौट आई। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि राजा बाज बहादुर प्रतापी थे।

जब उनके पूर्वज को गढ़वाल पर आक्रमण के दौरान सफलता नहीं मिली , तो राजा बाज बहादुर ने प्रण किया कि उन्हें युद्ध में यदि विजय मिली, तो वो नंदादेवी की अपनी ईष्ट देवी के रूप में पूजा करेंगे। कुछ समय के बाद गढ़वाल में आक्रमण के दौरान उन्हें विजय प्राप्त हो गयी , और तब से नंदा देवी को ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता है। मानसखण्ड में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि मां नंदा के दर्शन मात्र से ही मनुष्य ऐश्वर्य को प्राप्त करता है तथा सुख-शांति का अनुभव करता है।

मां नंदा के नाम से हैं कई चोटियां और नदियां
समूचे उत्तराखंड को एक सूत्र में पिरोने मां नंदा की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नंदादेवी की पूजा समूचे उत्तराखंड में होती है। उन्हें उत्तराखंड की देवी मां का दर्जा प्राप्त है। पुराणों में हिमालय की पुत्री को नंदा बताया गया है। जिनका विवाह शिव से होता है। देवी भागवत में नंदा को शैलपुत्री के रूप में नौ दुर्गाओं में एक बताया गया है।

जबकि भविष्य पुराण में उन्हें सीधे तौर पर दुर्गा कहा गया है। नंदादेवी के नाम से हिमालय की अनेक चोटियां हैं। इनमें नंदादेवी, नंदाकोट, नंदाघुंटी, नंदाखाट आदि चोटियां हैं। इसके अलावा नंदाकिनी, नंद केसरी आदि नदियों के नाम भी नंदा देवी के नाम से हैं। उन्हें पर्वत राज हिमालय की पुत्री तथा उमा, गौरी और पार्वती के रूप में माना जाता है।


नंदा देवी मंदिर की मान्यता (BELIEFS OF NANDA DEVI TEMPLE)
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार एक दिन कमिश्नर ट्रेल नंदादेवी पर्वत की चोटी की ओर जा रहे थे, तो अचानक रास्ते में बड़े ही रहस्यमय ढंग से उनकी आंखों की रोशनी चली गयी। लोगों की राय(सलाह) पर उन्होंने अल्मोड़ा में नंदादेवी का मंदिर बनवाकर उस स्थान में नंदादेवी की मूर्ति स्थापित करवाई, तो रहस्यमय तरीके से उनकी आँखो की रोशनी लौट आई। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि राजा बाज बहादुर प्रतापी थे।

जब उनके पूर्वज को गढ़वाल पर आक्रमण के दौरान सफलता नहीं मिली , तो राजा बाज बहादुर ने प्रण किया कि उन्हें युद्ध में यदि विजय मिली, तो वो नंदादेवी की अपनी ईष्ट देवी के रूप में पूजा करेंगे। कुछ समय के बाद गढ़वाल में आक्रमण के दौरान उन्हें विजय प्राप्त हो गयी , और तब से नंदा देवी को ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता है। मानसखण्ड में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि मां नंदा के दर्शन मात्र से ही मनुष्य ऐश्वर्य को प्राप्त करता है तथा सुख-शांति का अनुभव करता है।

अल्मोड़ा स्थित नंदा देवी का मंदिर उत्तराखंड के प्रमुख मंदिरों में से एक है | कुमाऊं में अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, सोराग, कर्मी, पोंथिग, कपकोट तहसील, चिल्ठा, सरमूल आदि में नंदा देवी के मंदिर स्थित हैं। अल्मोड़ा में मां नंदा की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तांत्रिक विधि से करने की परंपरा है। पहले से ही विशेष तांत्रिक पूजा चंद शासक व उनके परिवार के सदस्य करते आए हैं।