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Shanidev: त्रेताकालीन शनि देव का एक ऐसा मंदिर जहां के बारे में आज तक कोई ये नहीं जान सका कि आखिर शनि देव यहां आए कैसे?

शनिदेव का रामायणकालीन मंदिर...

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An Special temple of shani dev

देश में वैसे तो कई शनि मंदिर मौजूद हैं। लेकिन Famous Shani Dev Temple शनि देव के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक मंदिर ऐसा भी है जिसे त्रेता युग का माना जाता है, लेकिन Shani dev शनि देव यहां कैसे पहुंचे इस संबंध में कोई सटीक जानकारी नहीं है।

भले ही शनि के यहां पहुंचने के संबंध में कई मान्यताएं हैं, लेकिन सबसे सही कौन सी है इस पर लोगों के अपने अपने मत हैं। इस Shani Dev Temple मंदिर की खास बात ये है कि यहां शनि की जो मूर्ति मौजूद है, उसे Statue of Shani Dev made of meteorite उल्कापिंड से निर्मित माना जाता है।

दरअसल मध्यप्रदेश के ग्वालियर के नजदीक मुरैना के एंती नामक गांव में शनिदेव का एक मंदिर है। शनि को लेकर इस मंदिर का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में शनि की प्रतिमा किसी ने नहीं रखवाई, बल्कि ये स्वयं Shani Dev: Statue made of meteorite आसमान से टूट कर गिरे एक उल्कापिंड से निर्मित है।

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खगोलविदों व ज्योतिषियों का मानना है कि इस मंदिर के एक निर्जन वन में स्थापित होने के कारण special effect of temple इसका विशेष प्रभाव है। ऐसे में यहां हर शनिवार को दूर दूर से भक्तों की भीड़ आती है, लेकिन Shani Amavasya शनि अमावस्या पर तो यहां विशाल मेला लगता है। यह मंदिर और यहां की कहानी बहुत ही खास है। ये दुर्लभ मंदिर कैसे बना? इसकी एक कहानी हम आपको बताते हैं कि आखिर शनिदेव इस पहाड़ी पर आकर क्यों और कैसे बसे?

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कहा जाता है उस समय रावण की कैद में दुर्बल हो चुके शनि देवता ने Bajrangbali बजरंगबली से सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए कहा। इस पर बजरंगबली ने उन्हें लंका से फेंका तो शनिदेव यहां आकर विराजमान हो गए। तबसे ये क्षेत्र शनिधाम के नाम से विख्यात हो गया। हर शनिश्चरी अमावस्या को देश भर से श्रद्धालु अपने कष्टों को लेकर यहां दर्शन करने आते हैं।

हनुमान जी के प्रक्षेपित करने पर शनिदेव यहां आकर गिरे तो उल्कापात सा हुआ, जिसके बाद यहां गड्डा सा बन गया, ये गड्डा आज भी यहां मौजूद है।

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: बताया जाता है कि नासिक के shani shingnapur शनि शिंगणापुर में विराजमान शनि देव की शिला भी इसी पर्वत से ले जाई गई है। इसलिए मुरैना स्थित शनि का ये धाम सबसे प्राचीन माना जाता है।

: पौराणिक ग्रंथों के अनुसार बजरंगबली ने इस मंदिर में शनि की स्थापना की थी। क्योंकि सतयुग में रावण ने शनि देव को बंधक बना लिया था। तब हनुमान जी ने उन्हें कैद से मुक्त कराया था।

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तब शनि देव के कमजोर शरीर के चलते उन्होंने बजरंगबली से उन्हें किसी सुरक्षित स्थान पर रखने की बात कही थी। तब हनुमान जी ने उन्हें मुरैना स्थित पर्वत पर शनि देव को स्थापित किया था।

: बताया जाता है कि जिस वक्त हनुमान जी ने शनि देव की स्थापना की, तभी वहां पास में उल्कापिंड गिरे थे। उसी उल्का से निकलने वाली शिला से शनि देव के विग्रह का निर्माण हुआ। मंदिर के पास उल्कापिंड गिरने से हुए गड्ढे का निशान आज भी मौजूद है।

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: स्थानीय लोगों के मुताबिक शनि धाम के आस-पास लौह तत्वों की भरमार है। यहां जमीन से लोहा निकलता है। चूंकि शनि देव का संबंध लोहे से है, इसलिए इस जगह की विशेष मान्यता है।

: मंदिर के पुजारी के अनुसार शनि मंदिर मुरैना में दर्शन करने से व्यक्ति को सभी तरह के कष्टों से छुटकारा मिलता है। इससे शनि दोष का नकारात्मक प्रभाव भी दूर होता है।

: मान्यता है कि शनि देव के इस चमत्कारिक मंदिर में तेल चढ़ाने और छाया दान करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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फि़लहाल इसकी देख-रेख मुरैना जिला प्रसाशन द्वारा की जाती है। वहीं मान्यताओं के अनुसार इस शनिदेव मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। वहीं यदि बात रियासतकालीन दास्तावेज की करें तो पता चलता है कि 1808 में ग्वालियर के तात्कालीन महाराज दौलतराव सिंधिया ने मंदिर की व्यवस्था के लिए जागीर लगवाई।

फिर तात्कालीन शासक जीवाजी राव सिंधिया ने जागीर को जब्त कर यह देवस्थान औकाफ बोर्ड को सौंप दिया।